वाराणसीः विविधताओं से भरे भारत देश में विभिन्न कला एवं संस्कृति और भाषाएं हैं. यही वजह है कि यह देश विभिन्न संस्कृतियों के संगम का देश कहा जाता है. यहां पर अनेक खेल होते हैं जिनकी अलग-अलग भाषाओं में कमेंट्री होती है. लेकिन कोई यदि यह कहे कि क्रिकेट खेल की कमेंट्री संस्कृत भाषा में होती है, तो आश्चर्य होता है. परंतु यह आश्चर्य काशी के बटुक और आचार्य ने हकीकत में बदल दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने मन की बात में उनके मेहनत-लगन और प्रतिभा की सराहना की है.
ईटीवी भारत ने कमेंट्री करने वाले आचार्य और महाविद्यालय के संयोजक से बातचीत की और इस क्रिकेट मैच का इतिहास जाना. साथ ही प्रधानमंत्री के हौसले के बाद उनकी उम्मीद किस तरीके से उड़ान भरेगी यह भी जानने कि कोशिश की.
10 वर्षों से कर रहे कमेंट्री
संस्कृत में कमेंट्री करने वाले आचार्य ने बताया कि वह पिछले 10 वर्षों से कमेंट्री कर रहे हैं और संस्कृत में कमेंट्री की विधा उन्होंने ही शुरू की हैं. वह अंग्रेजी और हिंदी के शब्दों का संस्कृत में अनुवाद करके कमेंट्री करते हैं. उनका कहना है कि जो बटुक मंत्रोच्चार कर सकते हैं वह चौके और छक्के भी लगा सकते हैं. उन्होंने कहा कि वह अन्य विद्यार्थियों को भी संस्कृत में कमेंट्री करने के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं, जिससे आने वाले समय में भी यह विधा लुप्त न हो. क्योंकि संस्कृत हमारा संस्कार है और मुझे काफी हर्ष है कि प्रधानमंत्री ने इस ओर ध्यान दिया है. हमें उम्मीद है कि आने वाले दिनों में सुविधा का और विकास होगा.
एक नई सोच के साथ शुरू हुआ था ये सफर
बातचीत में शास्त्रार्थ महाविद्यालय के संयोजक पवन शुक्ला ने बताया कि क्रिकेट प्रतियोगिता की सोच अचानक से मन में आ गई कि यदि बटुक एक हाथ में वेद और एक हाथ में कर्मकांड की पुस्तक ले सकते हैं, तो वह चौका छक्का भी जरूर लगा सकते हैं. हमने इसी सोच के साथ क्रिकेट स्पर्धा का आयोजन किया. हालांकि हमारे पास संसाधनों का अभाव है. इसलिए बच्चे अपने परंपरागत वेशभूषा धोती-कुर्ता, त्रिपुंड लगाकर मैदान में मंगलाचरण करते हुए उतरते हैं. हमारे पास पैड और ग्लब्स नहीं होते तो बटुक शॉल लपेट करके यह क्रिकेट खेलते हैं. साथ ही इस क्रिकेट कमेंट्री संस्कृत भाषा में होती है. जिससे हमारी सांस्कृतिक धरोहर बची रहे और यह हर लोगों तक पहुंचे.