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संस्कृत कमेंट्री की पीएम मोदी ने की सराहना, बटुकों की बढ़ी उम्मीदें

यदि कोई यह कहे कि क्रिकेट खेल की कमेंट्री संस्कृत भाषा में होती है, तो आश्चर्य होता है. परंतु इस आश्चर्य को काशी के बटुक और आचार्य ने हकीकत में बदल दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने मन की बात में उनके मेहनत-लगन और प्रतिभा की सराहना की है. पीएम की सराहना के बाद अब बटुकों की और भी उम्मीदें बढ़ गई हैं.

क्रिकेट खेलते बटुक.
क्रिकेट खेलते बटुक.

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Published : Mar 3, 2021, 7:09 PM IST

वाराणसीः विविधताओं से भरे भारत देश में विभिन्न कला एवं संस्कृति और भाषाएं हैं. यही वजह है कि यह देश विभिन्न संस्कृतियों के संगम का देश कहा जाता है. यहां पर अनेक खेल होते हैं जिनकी अलग-अलग भाषाओं में कमेंट्री होती है. लेकिन कोई यदि यह कहे कि क्रिकेट खेल की कमेंट्री संस्कृत भाषा में होती है, तो आश्चर्य होता है. परंतु यह आश्चर्य काशी के बटुक और आचार्य ने हकीकत में बदल दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने मन की बात में उनके मेहनत-लगन और प्रतिभा की सराहना की है.

संस्कृत कमेंट्री की पीएम मोदी ने की सराहना.

ईटीवी भारत ने कमेंट्री करने वाले आचार्य और महाविद्यालय के संयोजक से बातचीत की और इस क्रिकेट मैच का इतिहास जाना. साथ ही प्रधानमंत्री के हौसले के बाद उनकी उम्मीद किस तरीके से उड़ान भरेगी यह भी जानने कि कोशिश की.

क्रिकेट खेलते बटुक.

10 वर्षों से कर रहे कमेंट्री
संस्कृत में कमेंट्री करने वाले आचार्य ने बताया कि वह पिछले 10 वर्षों से कमेंट्री कर रहे हैं और संस्कृत में कमेंट्री की विधा उन्होंने ही शुरू की हैं. वह अंग्रेजी और हिंदी के शब्दों का संस्कृत में अनुवाद करके कमेंट्री करते हैं. उनका कहना है कि जो बटुक मंत्रोच्चार कर सकते हैं वह चौके और छक्के भी लगा सकते हैं. उन्होंने कहा कि वह अन्य विद्यार्थियों को भी संस्कृत में कमेंट्री करने के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं, जिससे आने वाले समय में भी यह विधा लुप्त न हो. क्योंकि संस्कृत हमारा संस्कार है और मुझे काफी हर्ष है कि प्रधानमंत्री ने इस ओर ध्यान दिया है. हमें उम्मीद है कि आने वाले दिनों में सुविधा का और विकास होगा.

एक नई सोच के साथ शुरू हुआ था ये सफर
बातचीत में शास्त्रार्थ महाविद्यालय के संयोजक पवन शुक्ला ने बताया कि क्रिकेट प्रतियोगिता की सोच अचानक से मन में आ गई कि यदि बटुक एक हाथ में वेद और एक हाथ में कर्मकांड की पुस्तक ले सकते हैं, तो वह चौका छक्का भी जरूर लगा सकते हैं. हमने इसी सोच के साथ क्रिकेट स्पर्धा का आयोजन किया. हालांकि हमारे पास संसाधनों का अभाव है. इसलिए बच्चे अपने परंपरागत वेशभूषा धोती-कुर्ता, त्रिपुंड लगाकर मैदान में मंगलाचरण करते हुए उतरते हैं. हमारे पास पैड और ग्लब्स नहीं होते तो बटुक शॉल लपेट करके यह क्रिकेट खेलते हैं. साथ ही इस क्रिकेट कमेंट्री संस्कृत भाषा में होती है. जिससे हमारी सांस्कृतिक धरोहर बची रहे और यह हर लोगों तक पहुंचे.

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जगी है एक नई उम्मीद
उन्होंने बताया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ के बाद एक नई उम्मीद जगी है कि आगामी आने वाले दिनों में खेल मंत्रालय से संपर्क साधेगा और इसके विकास की ओर ध्यान देगा. उन्होंने बताया कि संस्कृत महाविद्यालयों में सरकार के द्वारा क्रीड़ा की अनुमति नहीं होती है. उम्मीद है कि आने वाले दिनों में इस ओर भी ध्यान दिया जाएगा. हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सहयोग के लिए उन्हें कोटि-कोटि धन्यवाद देते हैं.

पीएम ने की थी सराहना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते रविवार को मन की बात कार्यक्रम में भाषाओं पर बात करते हुए सबसे पहले तमिल भाषा को सीखने को लेकर अपने अनुभव को साझा किया और फिर एक संस्कृत का ऑडियो जारी कर केवड़िया में सरदार पटेल के बारे में संस्कृत में गाइड द्वारा बताने की जानकारी साझा की. इसके बाद उन्होंने एक ऑडियो सुनाया जिसमें संस्कृत में कमेंट्री थी. पीएम मोदी ने इस दौरान बनारस में हुई संस्कृत क्रिकेट प्रतियोगिता के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि यह कमेंट्री संस्कृत में की जा रही है. इस विधा को लेकर उन्होंने सभी को धन्यवाद दिया.

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खेल मंत्रालय और प्राइवेट संस्थान इस बारे में भी सोचें
उन्होंने कहा कि हमने देखा है कि जिन खेलों में कमेंट्री शामिल है. उनका प्रचार-प्रसार बहुत तेजी से हो रहा है. हमारे यहां बहुत सारे ऐसे खेल हैं जिनमें कमेंट्री का कल्चर नहीं है और यही वजह है कि वह विलुप्त हो रहे हैं. तो इस ओर भी लोगों को ध्यान देना चाहिए. उन्होंने कहा कि मैं खेल मंत्रालय और प्राइवेट संस्थान के सहयोगियों से इस बारे में सोचने का आग्रह जरूर करूंगा, जिससे कि इस विधा का विकास हो सके.

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