वाराणसीः ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी प्रकरण को लेकर मामला न्यायालय में है. 30 मई को न्यायालय मुस्लिम पक्ष की ओर से दायर की गई 7 रूल 11 की याचिका पर सुनवाई करेगा. सोमवार को ये साफ हो जायेगा कि ये मुकदमा आगे सुनवाई योग्य है कि नहीं. लेकिन इन सबके बीच एक नया मामला सामने आ गया है. वाराणसी के मुस्लिम बाहुल्य इलाके लोहता क्षेत्र के रहने वाले मुख्तार अहमद अंसारी ने इस पूरे मामले में जमीन का एक हिस्सा ही गायब होने की बात कही है. उनका कहना है कि कमीशन की रिपोर्ट में मस्जिद की कुल जमीन 10.5 बिस्वा बताई गई है. जबकि 1883 के दस्तावेज में मस्जिद की कुल जमीन करीब 11 बिस्वा थी तो बाकी की जमीन कहां गई.
मियां और हिंदू पक्ष के लोग स्पष्ट करें. हालांकि इस पूरे मामले पर फोन पर बातचीत करने के दौरान अंजुमन इंतजामिया या मस्जिद कमेटी के सेकेंडरी एसएस यासीन ने बताया कि उनका दावा बिल्कुल गलत है क्योंकि बेड कटिंग के अंदर बाउंड्री में मौजूद जमीन ही अंजुमन इंतजामियां की है. जबकि उस हिस्से में कुछ अन्य प्रॉपर्टी भी अंजुमन के पास थी. जिसमें से एक बड़ा हिस्सा एक्सचेंज के रूप में हाल ही में प्रशासन को दिया गया है. जिसके बदले में हमें दूसरे स्थान पर जमीन भी मिली है.
मुख्तार अहमद अंसारी का कहना है कि वर्ष 1883 के रेवेन्यू रिकॉर्ड के अनुसार ज्ञानवापी मस्जिद की जमीन 31 बिस्वा थी. अभी जो कमीशन की कार्रवाई हुई है, उसके मुताबिक ज्ञानवापी मस्जिद की जमीन 10.05 बिस्वा ही है. ऐसे में बाकी जमीन कहां गई, यह अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी स्पष्ट करे. इसके अलावा मुख्तार अहमद अंसारी का यह भी कहना है कि राखी सिंह सहित पांच महिलाओं ने मां शृंगार गौरी प्रकरण को लेकर मुकदमा दाखिल किया तो उसमें आराजी संख्या 9130 का जिक्र किया. मगर, रकबा का उल्लेख नहीं किया. उन्होंने ऐसा क्यों किया ? इसलिए इस मुकदमे में पक्षकार बनने के लिए जिला जज की अदालत में उन्होंने प्रार्थना पत्र दिया है. मुख्तार का कहना है की राखी सिंह का मुकदमा सुनवाई योग्य है या नहीं है यह तो सोमवार को पता चलेगा. लेकिन हम भी इस मामले में पक्षकार बनकर सारी चीजें स्पष्ट करना चाहते हैं.
मुख्तार अहमद अंसारी 130 साल पहले के पुराने दस्तावेज के जरिए यह दावा कर रहे हैं कि जब अदालत द्वारा गठित कमीशन की रिपोर्ट आई तो पता लगा कि ज्ञानवापी मस्जिद की लगभग साढ़े दस बिस्वा जमीन है. हमने इससे संबंधित कागजात का मुआयना शुरू किया. हमें नकल मिली तो पता लगा कि ब्रिटिश हुकूमत के दौरान वर्ष 1883 में आराजी नंबर 9130 यानी ज्ञानवापी मस्जिद की जमीन लगभग 31 बिस्वा थी. इस पर हमने अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के लोगों से कहा कि आप लोग स्थिति स्पष्ट करें, जो बात अवाम को बतानी चाहिए, वह आप लोग बताते नहीं हैं, जो नहीं बताना चाहिए, वह बताते हैं. उन लोगों को हमारी बात बहुत खराब लगी और हमें गद्दार कहा गया. कहा गया कि भाजपा वालों से पैसा लेकर सवाल कर रहे हों. इसके अलावा भी और बहुत कुछ अनाप-शनाप हमें कहा गया. उनके अनाप-शनाप कहने से हमें बहुत असर नहीं पड़ा. मुख्तार अहमद अंसारी का कहना है कि हमने इसके लिए काफी प्रयास किया. पहले नगर निगम गए फिर कचहरी जाकर पुराने नक्शे की मांग की काफी जद्दोजहद के बाद हमें पुराने दस्तावेज हाथ लगे हैं. नक्शा नहीं मिला क्योंकि वह काफी पुराना होने की वजह से फट गया था लेकिन जो दस्तावेज हमारे पास है. उनके मुताबिक पुराने समय के दस्तावेज की जमीन और अब की जमीन में अंतर बताया जा रहा है रकबा नंबर का जिक्र भी नहीं किया जा रहा है, जो बिल्कुल गलत है.
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वहीं मुख्तार अहमद अंसारी के आरोपों को लेकर अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के ज्वाइंट सेकेट्री एसएम यासीन से बात करने पर उन्होंने कहा की ज्ञानवापी परिसर में जितनी भी बैरिकेडिंग है उतनी ही जमीन हमारे पास है. हमारे पास ज्ञानवापी परिसर में 2500 स्क्वॉयर फीट से ज्यादा का एक प्लाट है. इसके अलावा ज्ञानवापी परिसर में ही हमारे पास 1400 स्क्वॉयर फीट का एक अन्य प्लॉट है. ज्ञानवापी परिसर स्थित 1700 स्क्वॉयर फीट का एक अन्य प्लॉट हमने आपसी सहमति से मंदिर प्रशासन से एक्सचेंज किया है. इसके अलावा बाकी हम यह नहीं बता सकते हैं कि 100 साल पहले क्या था, मस्जिद की जमीन तो वर्ष 1937 में ही सिकुड़ गई थी. मुख्तार अहमद अंसारी किस जमीन की बात कर रहे हैं, हम नहीं जानते हैं, इस बारे में वही जानते होंगे. उनके सारे आरोप निराधार हैं. अभी इस मसले पर बयान देने के लिए बहुत सारे लोग सामने आएंगे.