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सर्व सेवा संघ भवन पर नहीं चलेगा बुलडोजर, हाईकोर्ट ने लगाई रोक

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Published : Jun 30, 2023, 7:30 PM IST

Updated : Jun 30, 2023, 9:15 PM IST

वाराणसी के सर्व सेवा संघ भवन के ध्वस्तीकरण के आदेश के खिलाफ गांधीवादी विचारधारा के लोगों ने राजनीतिक दल के नेताओं संग विरोध किया. वहीं, देर शाम को हाईकोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी.

सत्याग्रह के जरिए लोग कर रहे विरोध
सत्याग्रह के जरिए लोग कर रहे विरोध

वाराणसी में प्रदर्शन करते लोग.

वाराणसी:सर्व सेवा संघ भवन के लिए शुक्रवार का दिन काफी गहमागहमी भरा रहा. रेलवे प्रशासन की ओर से यहां शुक्रवार को ध्वस्तीकरण की कार्रवाई करने का आदेश दिया था. वहीं, सैंकड़ो गांधीवादी विचारधारा के लोग और राजनीतिक दल के नेता ध्वस्तीकरण के विरोध में जुट गए. हालांकि, प्रशासन की ओर से ध्वस्तीकरण की कोई कार्रवाई नहीं की गई है. वहीं, मामले में देर शाम हाईकोर्ट के आदेश ने सभी को राहत दी. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सर्व सेवा संघ भवन पर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई पर रोक लगा दी है. इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 3 जुलाई की तिथि निर्धारित की गई है. हाईकोर्ट के फैसले के बाद भवन के गेट पर चल रहा विरोध फिलहाल समाप्त हो गया है. हालांकि, शनिवार को फिर से बुद्धिजीवी वर्ग के लोग एक जुट होकर आगे की रणनीति तैयार करेंगे.


गौरतलब है बीते 2 दिन पहले वाराणसी व रेलवे प्रशासन की ओर से संघ के भवन के ध्वस्तीकरण का निर्देश दिया गया था. जिसके बाद शुक्रवार को भवन को जमीदोंज किए जाने की कार्रवाई होनी थी. जिसका देशभर से गांधीवादी विचारधारा से जुड़े हुए लोग विरोध कर रहे थे. इसी विरोध के क्रम में कांग्रेस नेता अजय राय, समाजवादी पार्टी व आम आदमी पार्टी के नेता संग गांधीवादी विचारधारा से जुड़े छात्र व प्रोफेसरों ने संघ भवन के मुख्य गेट पर सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की. इस दौरान लोगों ने पैदल मार्च के निकाल कर सरकार व जिला प्रशासन के फैसले का विरोध किया.

गांधी वादी विचारधारा समाप्त करने का षड्यंत्रःसर्व सेवा संघ के सत्याग्रह का समर्थन करते हुए कांग्रेस नेता अजय राय ने कहा कि सरकार गांधी वादी विचारधारा को समाप्त करने का यह षड्यंत्र रच रही है. इसी कारण भवन को गिराए जाने की योजना थी. अन्यथा देश की इतनी बड़ी विरासत को इस तरह नष्ट किया जाना इसका कोई अर्थ नहीं है. यह सरकार की कूटनीतिक मंशा को जाहिर करता है.

प्रियंका गांधी ने सोशल मीडिया पर जताया विरोध:इस मामले में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी भी लगातार विरोध कर रही है. उन्होंने सर्व सेवा संघ परिसर को ढहाने की कार्रवाई को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की विरासत पर हमला बताया है. प्रियंका ने कहा है कि संघ आचार्य विनोबा भावे, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री एवं बाबू जगजीवन राम के प्रयासों का परिणाम है. इसका मकसद गांधीजी के विचारों का प्रचार-प्रसार करना था. इन्हीं महापुरुषों के नेतृत्व में यह जमीन भी खरीदी गई थी. आज भाजपाई प्रशासन द्वारा इसे अवैध बताकर कार्रवाई शुरू करना महात्मा गांधी के विचारों और उनकी विरासत पर हमला करने की कोशिश है. प्रियंका गांधी ने कहा कि हम संकल्प लेते हैं कि महात्मा गांधी की विरासत पर हो रहे हर हमले के खिलाफ डटकर खड़े रहेंगे.

सरकार पर फर्जी दस्तावेज बनाने का आरोप:सर्व सेवा संघ से जुड़े हुए राम धीरज ने बताया कि सेवा भवन को तोड़ना सरकार की साजिश है. रेलवे से 3 भाग में 1960, 61 और 1970 ने यह जमीन खरीदी गई थी. हमारे पास ट्रेजरी फंड में जमा किए गए पैसों की रसीद व तमाम दस्तावेज है. लेकिन, वर्तमान सरकार व जिला प्रशासन इन दस्तावेजों को मानने से पूरी तरीके से इंकार कर रही है. यही नहीं फर्जी दस्तावेजों को तैयार कर भवन से निकालने का षड्यंत्र भी कर रही है. यह सरकार की सुनियोजित प्लानिंग है कि किस तरीके से गांधीवादी विचार को समाप्त किया जाए. हम डर के साये में जी रहे हैं, कभी भीयह भवन तोड़ा जा सकता है.

एक नजर संघ के स्थापना पर:1948 में सर्व सेवा संघ की स्थापना भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में हुई थी. इसके बाद 1960 में यह जमीन ली गए, जिसके बाद विनोबा भावे, जयप्रकाश नारायण, लाल बहादुर शास्त्री के निर्देशन में लगभग 62 साल पहले सर्व सेवा संघ के भवन की नींव रखी गई. इसका उद्देश्य महात्मा गांधी के विचारों को जन-जन तक पहुंचाना और उनके आदर्शों को स्थापित करना था.

क्या है विवाद:संघ के सदस्यों की मानें तो संघ भवन की स्थापना से लेकर के 2007 तक यहां का वातावरण ठीक था. यहां किसी भी तरीके की कोई समस्या नहीं थी. लेकिन इस बीच रेलवे ने अपने एक प्रोजेक्ट के लिए जमीन की तलाश करना शुरू कर दिया. वहीं, पुराने दस्तावेज मिले हैं, जिसमें सर्व सेवा संघ की नींव रखी गई थी. इस जमीन पर रेलवे का मालिकाना हक बना और उसके बाद रेलवे की ओर से बकायदा इस जमीन को अवैध बताया गया. भवन पर 2007 में ताला लटका दिया गया. इसको लेकर के जिला न्यायालय में न्याय की गुहार लगाई और उसके बाद कोर्ट ने बकायदा एक संचालक मंडल बना दिया. बताया कि मंडल की ओर से फैसला लिया जाएगा कि भवन किसे मिलेगा. उसके बाद से अब तक यहां के भवनों में ताला लगा हुआ है. यहां पर प्रिंटिंग की कार्रवाई नहीं हो रही है. हमने कई बार निवेदन किया कि यहां लाइब्रेरी में रखी गई कई सारी किताबें खराब हो रही है. लेकिन, उसके बावजूद भी हमारी बात सुनी नहीं गई.

2020 में दोबारा शुरू हुआ विवाद:संघ के सदस्यों ने बताया कि हैरान करने वाली बात यह है कि रेलवे को खुद नहीं पता था कि यह उनकी जमीन है. दस्तावेजों के जरिए रेलवे को इस बात की जानकारी दी गई. सदस्यों का कहना है कि 2020 में यह विवाद फिर शुरू हुआ. जब कॉरिडोर को लेकर के विकास की रणनीति बनाई गई. इस विवाद में जिला प्रशासन की ओर से रेलवे के हक में फैसला दिया गया. जबकि हाईकोर्ट में इसको लेकर अर्जी लगाई गई है.


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Last Updated : Jun 30, 2023, 9:15 PM IST

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