मिट्टी के परीक्षण को लेकर केंद्र सरकार की योजना पर संवाददाता प्रतिमा तिवारी की खास रिपोर्ट. वाराणसी: इन दिनों विश्व के कई देशों में भूकम्प के झटके महसूस किए गए हैं. कई देशों में तो लगातार भूकम्प आने की खबर आम होती जा रही है. कुछ दिन पहले फलीस्तीन में आए भूकम्प ने तो खासा डराया है. ऐसे में भारत सरकार देश के घने और संकरी आबादी वाले शहरों में मृदा यानी स्वायल का रासायनिक टेस्ट करवा रही है. यह टेस्ट इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए करवाया जा रहा है, जिससे कोई भी निर्माण हो तो वह भूकम्प के झटकों को झेल सके.
वाराणसी में केंद्र सरकार ने इसकी जिम्मेदारी बीएचयू के भूभौतिकी विभाग को दी है. वाराणसी उन शहरों में एक है, जिसकी हिमालय से दूरी काफी कम है. वाराणसी गलियों का शहर है और घनी आबादी वाला है. इसकी नजदीकी हिमालय से होने के कारण चिंता इस बात की है कि अगर हिमालय में भूकम्प आता है तो उसका असर वाराणसी में भी देखने को मिलेगा. ऐसे में यहां पर मृदा का रसायन टेस्ट कराने के बाद इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत किया जाएगा.
जांच से पता चलेगा कैसे हो सकते हैं निर्माणः प्रो. उमाशंकर बताते हैं, 'सरकार मिट्टी की जो जांच करा रही है, उसमें मिट्टी की क्षमता पता चलेगी. इसके साथ ही यह भी पता चलेगा कि इस मिट्टी पर किस तरह का निर्माण कार्य किया जा सकता है. जियोफिजिकल सर्वे में हम लोग यही करते हैं कि वहां पर सेस्मोमीटर लगाते हैं. X,Y,Z तीन कंपोनेंट होते हैं. जब धरती लगातार वाइब्रेट करती है तो उसमें लो से हाई फ्रिक्वेंसी होती है. R 0.1Hertz से लेकर R 0.90Hertz बेसिकली बहुत कम फ्रिक्वेंसी तक यह होता है. हमारा प्रयास बहुत ही लो फ्रिंक्वेंसी रहता है, जिसमें वेव जेनरेट होती है. यह काफी हानिकारक होती हैं. इनका प्रोवेकेशन सतह पर होता है.'
गंगा बेसिन में आता है पूरा बनारस क्षेत्रः उनका कहना है, 'ये वेव (तरंगें) निर्माण को नुकसान पहुंचाने में काफी सक्षम हैं. अगर भार परिमाण का भूकंप आता है तो सतही तरंगें बहुत ही खतरनाक हो जाती हैं. यह पूरा क्षेत्र गंगा बेसिन में आता है. बनारस शहर भी इसी क्षेत्र में आता है. अलोवियम सेटिमेंट डिपोजिट, 200 मीटर से लेकर किलोमीटर अलोवियम स्वायल डिपोजिट (लूज स्वायल डिपोडिट) यहां पर होता है. इसके लिए सर्वे किया जा रहा है, जिसमें पता चलता है कि किस प्रकार की मिट्टी की क्षमता है. इसमें यह भी देखा जाता है कि कोई चीज जमीन में बढ़ती जा रही है तो उसकी गति क्या है. बहुत कम गति हो सकती है, मध्यम हो सकती है या तेज हो सकती है.'
बनारस पर पड़ता है हिमालयन रेंज का प्रभावःप्रो. उमाशंकर बताते हैं कि, अगर गति बहुत कम होती है तो लूज स्वायल होती है, मीडियम होती है तो स्टिप सेडिमेंट होती है. अगर बहुत तेज गति है तो हार्ड रॉक होता है. इसलिए मिट्टी को इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के लिए ये सब डाटा सरकार प्रयोग कर सकती है. सिविल इंजीनियर्स, प्लानर्स इस डाटा का प्रयोग करके अपनी प्लानिंग कर सकते हैं. बनारस में भूकंप का केंद्र होने के बहुत चांस नहीं हैं, लेकिन बनारस हिमालय रेंज से बहुत नजदीक है. हिमालयन रेंज में जो भी एक्टिविटी होती है उसका प्रभाव पड़ सकता है. अगर अधिक क्षमता का भूकंप है तो यहां पर महसूस होगा. उसकी एनर्जी यहां तक बढ़ती आएगी. ऐसे में निर्माण को नुकसान पहुंचने का डर रहता है.
बनारस के ज्यादातर हिस्सों में मिट्टी हैः भू-भौतिकी विभाग के प्रोफेसर बताते हैं कि जब तक टूटी हुई चट्टानें दोबारा व्यवस्थित नहीं हो जातीं हैं तब तक समय-समय पर झटके महसूस होते रहते हैं. बनारस और इसके आस-पास के इलाकों में धरती के नीचे की बनावट बेहद ठोस है. यहां के ज्यादातर हिस्सों में मिट्टी है. इसलिए यहां भूकंप के झटके उतने तीव्र महसूस नहीं होते हैं. बनारस हिमालयन क्षेत्र से नजदीक है. ऐसे में वहां पर तीव्रता के साथ आए झटके बनारस में महसूस होते हैं. पूरे देश को भूकंप के लिहाज से 4 सिस्मिक जोन में बांटा गया है. इसको जोन-2, जोन-3, जोन-4 और जोन-5 नाम दिए गए हैं. जोन-5 में आने वाले क्षेत्र भूकंप के लिहाज से सबसे संवेदनशील हैं. जोन-4 में उत्तर प्रदेश आता है.
प्रदेश के जोन-3 में आता है वाराणसी शहरः हिमालय अध्ययन के विशेषज्ञ बताते हैं कि उत्तर प्रदेश को भी भूकंप के लिहाज से जोन में बांटा गया है. इसमें जोन-3 में वाराणसी शहर आता है. इनमें सोनभद्र, चंदौली, गाजीपुर, वाराणसी, जौनपुर, आजमगढ़, गोरखपुर, सुल्तानपुर, रायबरेली, फैजाबाद, मिर्जापुर जिले हैं. विशेषज्ञ बताते हैं कि ये जिले भूकंप की दृष्टि से कुछ कम संवेदनशील जिले हैं. नार्थ-ईस्टर्न जोन और हिमालयन रेंज भूकंप में सबसे अधिक प्रभावित होने वाले क्षेत्र हैं, जो कई बार 8.0 के मैगनीट्यूड तक भी चला जाता है. भारत में होने वाले भूकंप को कुल चार जोन में बाटा गया, जिसमें सिस्मिक जोन 2 से 4 हैं. जब किसी जोन में भूकंप की सिस्मीसिटी या आवृत्ति होती हैं तो उस क्षेत्र को सिस्मिक जोन बना दिया जाता है.
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