वाराणसी:सनातन धर्म में ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है. सनातन धर्म में इसका बहुत महत्व है. हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, इसका प्रारंभ द्वापर युग के महाभारत काल से माना जाता है. इस व्रत में एकादशी के दिन प्रातः स्नान ध्यान करके भगवान विष्णु का प्रीत्यर्थ संकल्प आदि करना चाहिए. संकल्प में कहना चाहिए कि भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के निमित्त व्रत रहूंगा या रहूंगी, जिससे भगवान विष्णु का कृपा प्रसाद प्राप्त हो. ताकि जीवन के समस्त पापों का नाश हो और अमोघ पुण्य की प्राप्ति हो. पुराणों के अनुसार एकादशी का व्रत रहने से जन्म-जन्मांतर तक की पुण्य की प्राप्ति होती है. इसीलिए सनातन धर्म में एकादशी के व्रत का महत्व बताया गया है.
यह है इस व्रत से जुड़ी कथा
निर्जला एकादशी के बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी बताते हैं कि महाभारत काल में जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तो पांडवों के उद्धारणार्थ भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को एकादशी के व्रत की महत्ता बताई. जिसके बाद सभी पांडव तो व्रत के लिए तैयार हो गए, लेकिन भीम ने कहा भगवान मैं 1 दिन भी भूखा नहीं रह सकता. तो किस प्रकार मैं साल के 24 एकादशी व्रत कैसे रहूंगा. तब भगवान श्रीकृष्ण ने भीम को निर्जला एकादशी व्रत रहने को कहा. भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है. मात्र इस दिन जो व्यक्ति व्रत रह ले तो उसे वर्ष की 24 एकादशी का फल प्राप्त हो जाता है. भगवान के कहने पर भीम ने इस व्रत को रखा तभी से इसे भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं. सनातनी जन्म जन्मांतर तक अक्षय पुण्य की प्राप्ति के लिए निर्जला एकादशी का व्रत करने लगे.