वाराणसी: चीन के वुहान शहर से फैले कोरोना ने पूरे विश्व के साथ ही देश में भी अपना कहर बरपा रखा है. इस बीमारी से बचने के लिए मोदी सरकार ने लॉकडाउन किया, लेकिन इसके नतीजे बहुतों के लिए अच्छे साबित नहीं हुए. कई के बिजनेस चौपट हो गए तो वहीं बहुतों की नौकरियां तक चली गईं, यहां तक की देश की खातिर कुछ कर गुजरने के लिए दिन-रात पसीना बहाने वाले खिलाड़ियों की किस्मत भी इस संकटकाल में उनसे रूठ गई. मैदान में खेलते हुए मेडल की आस में स्टेट और नेशनल लेवल तक खेलने वाले कई खिलाड़ी प्रैक्टिस छूटने के बाद परिवार की आर्थिक हालत सुधारने के लिए सब्जी का ठेला तक लगाने पर मजबूर हैं.
कोरोना ने बिगाड़ी आर्थिक हालत. ऐसी ही एक बेटी प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी है. वाराणसी की ये होनहार खिलाड़ी अपने सपने को पीछे छोड़कर अब परिवार को मजबूत करने के लिए ठेले पर सब्जी बेच रही है. जिले के डीएलडब्ल्यू के पीछे बसे पहाड़ी गांव के रूद्र नगर इलाके की रहने वाली नेशनल फुटबॉलर श्वेता केसरी इन दिनों सब्जी का ठेला लगा रही हैं.
कोरोना ने छीनी पिता की रोजी
श्वेता 6 साल से फुटबॉल में अपने सपने की तलाश कर रही थी, दो बार नेशनल खेला और एक बार खेलो इंडिया के अंडर 17 टीम की भागीदारी भी थी. 2016 में स्टेट चैंपियनशिप का हिस्सा रहीं और उड़ीसा में भी नेशनल कंपटीशन में हिस्सा लिया. लगातार चल रही अच्छी प्रैक्टिस और नेशनल लेवल पर मिल रहे मौकों से श्वेता को अपना भविष्य साफ दिख रहा था, लेकिन इसी बीच कोरोना के कारण लागू लॉकडाउन की वजह से चावल बेचकर परिवार पालने वाले पिता मुन्ना केसरी का काम धंधा छूट गया. वहीं मां इंदु देवी भी पति का हाथ बढ़ाने के लिए घर पर ही माला गूंथने का काम करती थी, लेकिन बंदी क्या हुई परिवार का यह सहारा भी छूट गया. अचानक से मां-बाप दोनों का हाथ रुक जाने की वजह से श्वेता ने अपने सपने को भूलना ही बेहतर समझा.
नेशनल फुटबॉलर श्वेता केसरी परिवार की मदद के लिए बेच रहीं सब्जी
बिगड़ते हालात और परिवार की आर्थिक स्थिति को देखकर लॉकडाउन की वजह से अपनी प्रैक्टिस छोड़कर घर बैठी श्वेता ने सब्जी बेचने का फैसला किया. पहले वह छोटी टोकरी में घर-घर जाकर सब्जी बेचती थी, लेकिन जब फायदा नहीं हुआ तो एक टूटे ठेले पर ही घर के बाहर सब्जी का स्टाल लगा लिया. श्वेता का कहना है कि इस दौर में पहले परिवार का पेट पालना जरूरी है. खेल आगे होगा या नहीं यह बाद की बात है, लेकिन मां-बाप का साथ देकर परिवार की भूख मिटाना पहले ज्यादा जरूरी है. यही वजह है कि उसने अपने सपने को तोड़कर परिवार का साथ देना ज्यादा बेहतर समझा.
लोगों और सरकार को करनी चाहिए मदद
श्वेता के पिता का कहना है कि लॉकडाउन में परिवार की आर्थिक हालत गड़बड़ हुई तो बेटी ने सहारा दिया है, लेकिन अब सरकार को कुछ करना चाहिए ताकि उसके सपने पूरे हो सकें. वहीं श्वेता को आज इस स्तर पर लाने वाले उसके गुरु और कोच का कहना है कि इस महामारी में यह उम्मीद नहीं थी कि खिलाड़ियों के खेल तक बंद हो जाएंगे. ऐसे में लोगों और सरकार को इन प्रतिभाओं की मदद के लिए आगे आना होगा.