जानकारी देते जनसंपर्क अधिकारी संदीप श्रीवास्तव वाराणसी: देश को आजादी मिली 75 साल से ज्यादा का वक्त भी चुका है. 15 अगस्त 1947 को मिली आजादी के बाद भले ही अंग्रेजी हुकूमत की निशानियां और यादें धीरे-धीरे मिट रही हो. लेकिन, अभी भी वाराणसी के नगर निगम में अंग्रेजी हुकूमत और उससे जुड़ी यादें देखने को मिलती है. इन्हें नगर निगम वाराणसी ने बड़े ही सुरक्षित तरीके से संभाल कर रखा हुआ है. यह स्मृतियां 1922 से लेकर 1976 तक के वह दस्तावेज हैं, जो आजादी के पहले लोगों के मकानों के असेसमेंट के बाद तैयार किए गया था. ऐसे 300 से ज्यादा असेसमेंट रजिस्टर और अन्य कागजी दस्तावेज इस अभिलेखागार में आज भी गठरियों में बांधकर इधर-उधर रखे मिल जाएंगे. अब इसे डिजिटल करने की प्लानिंग की जा रही है. ताकि इन्हें भविष्य में सुरक्षित रखा जा सके.
1922 से लेकर 1976 के हैं दस्तावेज वाराणसी विश्व के सबसे पुराने और जीवंत शहर के रूप में जाना जाता है. वाराणसी ऐसी जगह है, जहां आजादी की लड़ाई लड़ने वाले मतवालों ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण समय बिताया था. चाहे चंद्रशेखर आजाद हों या महात्मा गांधी या फिर अन्य स्वतंत्रता सेनानी. इन सभी ने बनारस से इस लड़ाई को आगे बढ़ाने का काम किया था. अंग्रेजी हुकूमत के समय बनारस को महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता था. बनारस से आसपास के जिलों को भी अंग्रेजी हुकूमत मुख्यालय के रूप में संचालित करने का काम करते थे. यही वजह है कि नगर निगम में आज भी अंग्रेजों की दखल देखने को मिलती है.
आज भी सही सलामत हैं दस्तावेजः नगर निगम अभिलेखागार के रिकॉर्ड कीपर मुमताज अहमद ने बताया कि बनारस में नगर निगम का यह स्थान आजादी के पहले की चीजों को आज भी संजोकर रखे हुए है. 1922 से लेकर 1976 तक के वह तमाम दस्तावेज यहां पर मौजूद हैं, जो अंग्रेजी हुकूमत के समय तैयार किए गए थे. सबसे बड़ी बात यह है कि सभी दस्तावेज बिल्कुल सही कंडीशन में हैं. उनको अब डिजिटल रूप में तैयार किया जा रहा है, क्योंकि बड़े बड़े गट्ठर में और अलग से रखे हुए रजिस्टर के एक-एक पन्नों को खोलकर उसमें से जानकारियां हासिल करना मुश्किल हो रहा है.
रिकॉर्ड को डिजिटल फार्मेट में किया जा रहा सुरक्षित डिजिटल रूप में किया जा रहा स्टोरः मुमताज अहमद के अनुसार, काफी पुराने होने की वजह से इनके पन्ने या तो दीमक खा रहे हैं या इनमें सीलन लग रही है, जिससे ये खराब हो रहे हैं. इसलिए इन को सुरक्षित रखने और लोगों की मदद करने के लिए इन सारी चीजों को अब डिजिटल फॉर्मेट में तैयार किया जा रहा है. ताकि, अंग्रेजी हुकूमत की यादें सुरक्षित रहें और लोगों के दस्तावेज को सुरक्षित तरीके से डिजिटल करके कंप्यूटर में स्टोर करने के बाद उसे ऑनलाइन किया जा सके.
102 से अधिक फाइलों को किया जा चुका है डिजिटल 102 से अधिक रजिस्टर हो चुके हैं डिजिटलः वहीं, नगर निगम के जनसंपर्क अधिकारी संदीप श्रीवास्तव ने बताया कि वाराणसी नगर निगम में बहुत पुराने दस्तावेज मौजूद हैं. ऐसे लगभग 346 रजिस्टर हैं. इनमें से 102 से ज्यादा रजिस्टर को डिजिटल करने का काम किया जा चुका है. बाकी, रजिस्टर और अभिलेखागार में रखें मकानों के एसेसमेंट पेपर और अन्य दस्तावेज को निकालकर डिजिटलाइजेशन का काम करवाया जा रहा है. इसके लिए खास टीम को लगाया गया है. ताकि, इन पन्नों को अलग करते समय यह सुरक्षित रहें.
पन्नों को खोलकर उसमें से जानकारियां हासिल करना होता है मुश्किल. पब्लिक के लिए किया जाएगा ऑनलाइनः जनसंपर्क अधिकारी के अनुसार, अंग्रेजों के समय में जो मकान थे. उनका एसेसमेंट होने के बाद हाउस टैक्स से लेकर उन मकानों का पीला कार्ड रूप. जो उस वक्त तैयार होता था. सभी दस्तावेज कानूनी तौर पर बेहद जरूरी माने जाते हैं. ऐसे में जिनके घरों या प्रॉपर्टी का विवाद है या फिर जो लोग कार्यों के लिए इन दस्तावेजों को जरूरी मानते हैं. वह आज भी नगर निगम में आकर इनकी तलाश करते हैं. जब उन्हें अभिलेखागार से यह पुराने दस्तावेज मिलते हैं, तो वह बेहद खुश हो जाते हैं. इसलिए इनको सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी हमारी है. इसको डिजिटल तरीके से तैयार करके जल्द ही ऑनलाइन किया जाएगा. ताकि पब्लिक को अंग्रेजों के समय के इन दस्तावेजों का लाभ मिल सके.
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