वाराणसी:हुनर न तो मजहब देखता है और न ही जाति पूछता है... यह कहावत वाराणसी के जरदोजी कारीगरों पर सटीक बैठती है. जरदोजी कारीगर पीढ़ियों से इस कला को आगे बढ़ाते चले आ रहे हैं. वाराणसी के कोयला बाजार मोहल्ले में जरदोजी से भगवान कृष्ण के लिए कई मुस्लिम कारीगर मुकुट बनाते हैं. अपनी बारीक कारीगरी से जन्माष्टमी पर ये कारीगर भगवान कृष्ण को सजाने के लिए कई तरह के वस्त्र, मालाएं और मुकुट बनाते हैं.
भगवान कृष्ण के लिए मुकुट बनाते हैं मुस्लिम कारीगर-
शहर के मुस्लिम कारीगर सदियों से चल रही जरदोजी की कला को अभी तक जीवित रखे हुए हैं. खास बात यह है कि मुस्लिम कारीगर अपने हाथ से नटखट बाल गोपाल के सिर पर सजाने के लिए मुकुट और जन्माष्टमी पर उनको सजाने के लिए वस्त्र और माला को कारीगरी से सुशोभित करते हैं. सिर्फ बनारस ही नहीं बल्कि इसका उपयोग देश के अन्य शहरों में भी होता है. विदेशों से भी इसके लिए खासतौर पर ऑर्डर आते हैं. मुकुट श्रृंगार का यह काम बनारस में बुनकरों की कला की एक अहम पहचान है. बनारस में आज भी गंगा-जमुनी तहजीब कायम है, जो सदियों से चली आ रही है.