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वाराणसी के ये मुस्लिम कारीगर पीढ़ियों से तैयार कर रहे हैं कन्हैया के मुकुट - कृष्ण जन्माष्टमी

यूपी के वाराणसी में आज गंगा-जमुनी तहजीब कायम है. जिले के कोयला बाजार मोहल्ले में मुस्लिम कारीगर पीढ़ियों से भगवान कृष्ण के लिए मुकुट बनाते आ रहे हैं.

भगवान कृष्ण के लिए मुकुट बनाते हैं मुस्लिम कारीगर.

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Published : Aug 23, 2019, 4:18 PM IST

वाराणसी:हुनर न तो मजहब देखता है और न ही जाति पूछता है... यह कहावत वाराणसी के जरदोजी कारीगरों पर सटीक बैठती है. जरदोजी कारीगर पीढ़ियों से इस कला को आगे बढ़ाते चले आ रहे हैं. वाराणसी के कोयला बाजार मोहल्ले में जरदोजी से भगवान कृष्ण के लिए कई मुस्लिम कारीगर मुकुट बनाते हैं. अपनी बारीक कारीगरी से जन्माष्टमी पर ये कारीगर भगवान कृष्ण को सजाने के लिए कई तरह के वस्त्र, मालाएं और मुकुट बनाते हैं.

भगवान कृष्ण के लिए मुकुट बनाते हैं मुस्लिम कारीगर.


भगवान कृष्ण के लिए मुकुट बनाते हैं मुस्लिम कारीगर-
शहर के मुस्लिम कारीगर सदियों से चल रही जरदोजी की कला को अभी तक जीवित रखे हुए हैं. खास बात यह है कि मुस्लिम कारीगर अपने हाथ से नटखट बाल गोपाल के सिर पर सजाने के लिए मुकुट और जन्माष्टमी पर उनको सजाने के लिए वस्त्र और माला को कारीगरी से सुशोभित करते हैं. सिर्फ बनारस ही नहीं बल्कि इसका उपयोग देश के अन्य शहरों में भी होता है. विदेशों से भी इसके लिए खासतौर पर ऑर्डर आते हैं. मुकुट श्रृंगार का यह काम बनारस में बुनकरों की कला की एक अहम पहचान है. बनारस में आज भी गंगा-जमुनी तहजीब कायम है, जो सदियों से चली आ रही है.

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मुस्लिम कारीगरों का कहना है
मुस्लिम कारीगरों का कहना है कि मेहनत से वे इस काम करते हैं. जब भगवान श्रीकृष्ण इसे धारण करते हैं तो वह मेहनत सफल होती नजर आती है. बनारस के इसी रस से हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल बनी हुई है. इसमें ज्यादातर मुस्लिम बुनकर ही काम करते नजर आते हैं. कारीगर बताते हैं कि मुकुट श्रृंगार का निर्माण मुख्य रूप से जरी से होता है. इसमें कई तरीके के स्टोन आदि का उपयोग किया जाता है. यहां के मुकुट देश के कोने-कोने में मशहूर है.

बनारस से मथुरा, वृंदावन, दिल्ली, आगरा, अयोध्या के साथ ही राजस्थान के कई शहरों में मुकुट बनाकर भेजे जाते हैं. वहीं कारीगरों का कहना है कि 13 से 14 घंटों की कड़ी मशक्कत के बाद हाथ में सिर्फ 200 रुपये आते हैं. अगर इसी तरह के हालात रहे तो आगे आने वाली पीढ़ियों को यह सभ्यता और संस्कृति कारीगरी के रूप में नहीं मिलेगी.

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