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बच्चों के लिए खतरा बने मोबाइल फोन, मायोपिया छीन रही है आंखों की रोशनी

अगर आपके बच्चे भी मोबाइल फोन, टैबलेट या लैपटॉप में खोए रहते हैं तो यह खबर आपके लिए है. छोटे बच्चे मायोपिया का शिकार ( Facing the Myopia Epidemic) बन रहे हैं और उनकी नजरें कमजोर हो रही हैं. आप खुद बच्चों में मायोपिया के लक्षण पर गौर करें और दिक्कत समझते ही उपाय शुरू करें. पढ़ें रिपोर्ट

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Etv Bharat Facing the Myopia Epidemic

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Published : Nov 30, 2022, 8:10 PM IST

वाराणसी :कोरोना की लहर के बाद स्कूल में ऑनलाइन क्लासेस की शुरुआत की गई. ऑनलाइन क्लास के कारण बच्चे मोबाइल, लैपटॉप और टैबलेट जैसे गैजेट्स को ऑपरेट करना सीख गए. कोरोना के दौर के बाद तो स्कूल तो खुल गए मगर मोबाइल फोन देखना बच्चों की आदत बन गई. एलकेजी से लेकर अपर क्लास तक के बच्चे इन गैजेट्स के आदी बन गए. इन गैजेट्स से निकलने वाली रोशनी बच्चों की आंखों के लिए घातक बन गई है. इन दिनों में बच्चों में आंखों से संबंधित प्रॉब्लम मायोपिया की शिकायत बढ़ गई है.

मायोपिया छीन रही है आंखों की रोशनी
दरअसल, ऑनलाइन क्लासेस से बच्चों की स्क्रीन टाइम बढ़ गई और उनमें मायोपिया एपेडेमिक( Facing the Myopia Epidemic) की समस्या शुरू हो गई. मायोपिया आंखों से संबंधित बीमारी है. जिसमें बच्चों को दूर की चीजें धुंधली दिखने लगती हैं. साथ ही उनके सिर में दर्द होने के साथ कई तरीके की समस्याएं शुरू हो जाती हैं.


क्या है मायोपिया एपेडेमिक :इस बारे में एएसजी हॉस्पिटल के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर प्रत्यूष रंजन ने बताया कि मायोपिया एक ऐसी स्थिति है, जिसमें पास की चीज हो तो साफ दिखाई देती हैं, लेकिन दूर की वस्तुएं धुंधली नजर आती हैं. यह धुंधलापन तेजी से बढ़ सकता है. उम्र बढ़ने पर स्थिति और भी ज्यादा खराब हो सकती है. उन्होंने बताया कि यह रिफ्रैक्टिव एरर के सबसे सामान्य रूप की बीमारी है. उम्र के साथ यह बीमारी बढ़ती जाती है. लेकिन, यदि सही समय पर इसका उपचार किया जाए तो इसे ठीक भी किया जा सकता है.

साउथ ईस्ट एशियन ट्रेड में मायोपिया ज्यादा : एएसजी हॉस्पिटल के डॉक्टर प्रत्यूष रंजन ने बताया कि आमतौर पर ये बीमारी हर जगह है. लेकिन साउथ ईस्ट एशियन ट्रेड इसके लिए जेनिटिकली प्री डिस्पोज हैं, इसलिए इस एरिया में बीते कुछ सालों से मायोपिया तेजी से बढ़ रहा है. इस बीमारी को हम मायोपिया एपिडेमिक कहते हैं, क्योंकि यह हमारे लोकलाइज्ड एरिया में ज्यादा है.


6 महीने में ही बढ़ने लगे चश्मे के नंबर : डॉक्टर प्रत्यूष रंजन ने बताया कि कोरोना के समय लॉकडाउन में लोग घर के अंदर थे और स्क्रीन टाइम बढ़ने लगी. यह स्ट्रेंड स्क्रीन टाइम थी. जिसका परिणाम था कि जो बच्चे चश्मा लगा रहे थे उनके चश्मे का नंबर बहुत तेजी से बढ़ने लगा. यह नंबर 3 से 4 सालों में बढ़ने की उम्मीद थी. बहुत सारे बच्चे में नजर की प्रॉब्लम (children Facing the Myopia Epidemic) दिखने लगी. डॉक्टर ने बताया कि कोरोना के बाद बढ़े केसों को देखते हुए उन्होंने स्कूल हेल्थ आई इनिसिएटिव शुरू किया. जहां वह स्कूलों में बच्चों की आंखों की जांच कर रहे हैं. इसके लिए एक फॉर्म विजन चार्ट बनाया गया है. उन्होंने बताया कि प्रतिदिन वह लगभग 300 से ज्यादा बच्चों की स्क्रीनिंग कर रहे हैं. जांच में यह सामने आया है कि लगभग 40 को नजर की प्रॉब्लम शुरू हुई और चश्मा लगाना पड़ा.

डॉक्टर प्रत्यूष रंजन के अनुसार, मायोपिया का सबसे बड़ा कारण बच्चों का लंबे वक्त तक स्मार्टफोन या फिर कंप्यूटर का प्रयोग करना है. जिससे उनके अंदर निकट दृष्टि दोष विकसित होने लगा है. बढ़े स्क्रीन टाइम मायोपिया के अलावा आंखों को अन्य प्रकार से भी प्रभावित करता है. उससे ड्राई आई, इचिंग, जलन, लालिमा, धुंधलापन जैसी दृष्टि की दिक्कत शुरू हो जाती है.

मायोपिया के लक्षण पर गौर करें...

  • सर दर्द होना
  • दूर की वस्तु का धुंधला दिखना
  • पढ़ते समय मिचली का होना
  • किसी चीज पर ध्यान केंद्रित ना कर पाना
  • पढ़ते लिखते समय ज्यादा झुकना
  • टीवी या गैजेट्स देखने के लिए उसके ज्यादा करीब बैठना.


    कैसे करें बचाव : डॉ रंजन बताते हैं कि एक होम विजन चार्ट के जरिए एक बार बच्चों के आंखों की जांच परिजन स्वयं करें. यदि समस्या आती है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें. इसके साथ ही इससे बचने के लिए स्क्रीन टाइम को कम करना चाहिए . अन्य प्रकार की खेलों में रुचि ज्यादा बच्चों में शुरू करनी चाहिए. बाहर का समय इस दृष्टि दोष से दूर करता है. इसके साथ ही आंखों का हरियाली को देखना भी लाभदायक माना जाता है.

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