वाराणसी:आजादी की लड़ाई में बहुत से क्रांतिकारियों ने अपना खून बहाया. तब जाकर आज हम आजाद भारत में सांस ले पा रहे हैं. गांधी जी ने एक तरफ जहां अहिंसा का नारा दिया तो वहीं भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु और चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों ने गांधी जी के सिद्धांतों से अलग हटकर आजादी पाने के लिए अपने तरीके से संघर्ष किया.
आजादी की लड़ाई में एक नाम आज भी बड़े फक्र और सम्मान के साथ लिया जाता है. यह नाम है चंद्रशेखर आजाद का. आज चंद्रशेखर आजाद की जयंती है. 23 जुलाई 1906 में एमपी में जन्मे चंद्रशेखर आजाद ने धर्म नगरी वाराणसी में न सिर्फ अपनी क्रांति की अलख को जगाते हुए आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाया. बल्कि उन्हें आजाद नाम भी बनारस में ही मिला.
30 मई 1920 को तय हुई थी ये रणनीति
बहुत कम ही लोगों को मालूम होगा कि आजादी की लड़ाई में चंद्रशेखर तिवारी का नाम चंद्रशेखर आजाद इसी वाराणसी में दिया गया है. इतना ही नहीं देश के इतिहास में पहली बार युवा चंद्रशेखर को बारह बेतों की सजा मजिस्ट्रेट ने यहीं सुनाई थी. वाराणसी की सेंट्रल जेल इस वीर सपूत की अमर गाथा को आज भी अपने आप में समेटे है. महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के प्रो. सतीश राय बताते हैं कि चंद्रशेखर तिवारी की ओर से ही 30 मई 1920 को काशी में कांग्रेस के अधिवेशन में असहयोग आन्दोलन की रणनीति तय हुई थी.
इस वजह से पड़ा आजाद नाम
उन्होंने बताया कि पहले असहयोगी के रूप में चन्द्रशेखर तिवारी हुए. वह अपने कुछ साथियों के साथ रणवीर संस्कृत विद्यालय के गेट पर लेट गए और कहा कि जिसे भी विद्यालय में जाना है वह उनके ऊपर से होकर जायेगा. ब्रिटिश सैनिकों और अधिकारियों को यह बात काफी बुरी लगी. असहयोग आन्दोलन में सबसे पहले पकड़े जाने के बाद जब ब्रिटिश हुकूमत के मजिस्ट्रेट ने चन्द्रशेखर तिवारी से उनका नाम पूछा तो उन्होंने अपना नाम चीखकर पहली बार आजाद बताया और यहीं से उनका नाम आजाद पड़ गया.
इसी स्थान पर आजाद को मारे गए थे कोड़े. सम्मेलन में मिला सम्मान
नाराज मजिस्ट्रेट ने उन्हें 15 बेतों की सजा सुनाई और सजा का स्थान चुना गया सेंट्रल जेल का मैदान. युवा चंद्रशेखर को ब्रिटिश सैनिक जब-जब बेत मारते उनके मुंह से आजाद-आजाद का नारा निकलता था. बस यहीं से रिहा होने के बाद जब चंद्रशेखर आजाद ने वाराणसी में आयोजित एक क्रांतिकारी सम्मेलन में हिस्सा लिया. इस सम्मेलन में उन्हें लोगों ने आजाद कहकर बुलाया. मासूम और नन्हे से बालक के हौसले का हर कोई मुरीद हो गया और उन्हें आजाद नाम से एक नई पहचान मिली.
सीएम योगी ने किया था प्रतिमा का अनावरण. यादों को सहेज कर रखा गया
सेंट्रल जेल के अधिकारियों का कहना है कि आज वह जगह जहा चंद्रशेखर आजाद को बेत मारा गया था, बंदियों के लिए यादगार और अपराध के रास्ते को छोड़ देश के प्रति जज्बा पैदा करता है. सेंट्रल जेल में प्रवेश के साथ ही बाईं तरफ दीवार में चंद्रशेखर आजाद को दी गई सजा का जिक्र करते हुए शिलापट्ट लगा हुआ है. उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण होने के साथ ही इस स्थान की विशेष देखभाल की जाती है. हाल ही में सेंट्रल जेल के अंदर चंद्रशेखर आजाद की भव्य प्रतिमा भी लगाई गई है. इसका अनावरण खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया था.