वाराणसी: धनत्रयोदशी और धन्वंतरी जयंती को पूरे देश में मनाया जा रहा है. लोग अपने घर में शुभ की आस के लिए माता लक्ष्मी की प्रतिमाओं के साथ सोना, चांदी, पीतल, तांबा और स्टील के बर्तन खरीद कर ला रहे हैं. वहीं इन सबके बीच धर्म नगरी काशी में शुक्रवार के दिन ऐसी परंपरा का निर्वहन किया जाता है. जो सिर्फ और सिर्फ काशी में ही निभाई जा सकती है.
माता अन्नपूर्णा का मंदिर खुला. यह परंपरा है माता अन्नपूर्णा की स्वर्णमयी प्रतिमा का दर्शन दीपावली के पहले धनतेरस के दिन श्री काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ दूर स्थित माता अन्नपूर्णा के दरबार में न लक्ष्मी माता और मां अन्नपूर्णा से भिक्षा मांग रहे देवाधि देव महादेव की उस अद्भुत प्रतिमा के दर्शन होते हैं. इस मंदिर को सिर्फ साल में 4 दिन के लिए आम भक्तों के लिए खोला जाता है.
महादेव ने माता अन्नपूर्णा से मांगे थे
ऐसी मान्यता है कि देवा दी देव महादेव माता अन्नपूर्णा के आगे भिक्षा लेने जाते हैं और फिर काशी के लोगों का पेट भरते हैं. इसी मान्यता के साथ दीपावली के पहले धनतेरस के दिन से लेकर दीपावली के अगले दिन अन्नकूट तक मां अन्नपूर्णा की स्वर्ण प्रतिमा के दर्शन की मान्यता काशी में है. वहीं मंदिर के महंत रामेश्वर पुरी माता का खजाना भक्तों में बांट रहे हैं.
भक्तों में खजाने का होता है वितरण
बताया जा रहा है कि माता के खजाने के रूप में उस पैसे का वितरण किया जाता है, जो अब चलन में नहीं है. यानी 50 पैसे के सिक्के भक्तों में लावा और मीठे बताशे के साथ बांटे जाते हैं. ऐसा माना जाता है कि मां का यह खजाना घर में रखने से दरिद्रता दूर होती है और मनुष्य धन-धान्य से परिपूर्ण होता है.
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