वाराणसी:धर्म नगरी काशी में महाशिवरात्रि की तैयारी जोरो शोरों से तैयारियां की जा रही हैं. वैसे शिवरात्रि नाम में ही रात्रि शब्द जुड़े होने से विशेष महत्व के लिए जानी जाती है, क्योंकि सनातन धर्म में 3 रात्रियों को विशेष महत्व दिया जाता है. इनमें श्री कृष्णा जन्माष्टमी की रात्रि को मोह रात्रि, दीपावली की रात्रि को कालरात्रि और महाशिवरात्रि की रात्रि को महारात्रि के नाम से जाना जाता है. इसमें सबसे सर्वोत्तम शिवरात्रि के रात पड़ने वाली महारात्रि होती है. तो आइए जानते हैं क्या है महाशिवरात्रि पर पूजा विधि और मान्यता...
वैसे तो भगवान शिव की पूजा में तामसी और राजसी पूजन का भी विधान है, क्योंकि शिव को राजा के रूप में जाना जाता है. बहुत जगहों पर शिव का पूजन राजसी तरीके से किया जाता है. इस विधि में एक राजा के लिए की जाने वाली पूजन विधान को लागू किया जाता है. वहीं, तामसी विधि में भोलेनाथ की तंत्र साधना के तहत की जाने वाली पूजा सामग्री को इस्तेमाल किया जाता है. सात्विक विधि में बाबा भोलेनाथ की गृहस्थ जीवन में की जाने वाली पूजा के तहत संकल्प के बाद गणेश पूजन, अंबिका पूजन और फिर बाबा भोलेनाथ का षोडशोपचार पूजन संपन्न कराया जाता है. इसमें स्नान के बाद पंचामृत स्नान दूध, दही, शहद, घी और शक्कर से भोलेनाथ का स्नान किया जाता है, इसके बाद अबीर-गुलाल, चंदन, भस्म इत्यादि से उनका श्रृंगार संपन्न कर उन्हें पुष्प माला और भोग इत्यादि अर्पित किया जाता है.
क्यों चढ़ता है भांग धतूरा और मदार पुष्प
भगवान भोलेनाथ एक ऐसे देवता हैं, जिनको वह सामग्री अर्पित की जाती है जो किसी देवता को अर्पित नहीं की जाती, क्योंकि भोलेनाथ इतने भोले हैं कि वह अपनी पूजन सामग्री में भी कोई महंगी या मुश्किल से मिलने वाली चीजों का इस्तेमाल नहीं होने देते. मदार का वह फूल जो कहीं भी उत्पन्न हो जाता है. धतूरा जो किसी देवता को नहीं चढ़ता और बेलपत्र जो शिव को अति प्रिय मानी जाती है. यह तीन चीजें पूजन सामग्री में जरूर उपलब्ध होनी चाहिए. इनसे भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं. पूजन सामग्री में भस्म के साथ ही चंदन और सबसे महत्वपूर्ण है. भांग शिव को अति प्रिय है, क्योंकि यह मदमस्त रहने का प्रतीक है और भोलेनाथ औघड़दानी होने की वजह से हमेशा मदमस्त रहते हैं. भांग चढ़ाने से भोले अति प्रसन्न होते हैं और हर इच्छा की पूर्ति करते हैं.
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