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'सर्वविद्या की राजधानी' के शिल्पकार महामना की जयंती

देश को बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी जैसा संस्थान देने वाले पंडित मदन मोहन मालवीय की आज जयंती है. 25 दिसंबर, 1861 को प्रयागराज में जन्में महामना ने कलकत्ता यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की. उनका निधन 12 नवंबर, 1946 को हुआ था. आइये, आज उनकी जयंती के मौके पर उनसे जुड़ीं कुछ खास बातें जानते हैं...

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Published : Dec 25, 2020, 12:33 AM IST

Updated : Dec 25, 2020, 2:04 AM IST

स्पेशल रिपोर्ट.
स्पेशल रिपोर्ट.

वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के संस्थापक महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की 25 दिसंबर को जयंती है. आज ऐसा दिन है, जो पूरे विश्व में हर्ष और उल्लास के साथ एक पर्व की तरह मनाया जाता है. प्रभु यीशु मसीह का जन्म आज ही के दिन हुआ था, इसलिए आज का दिन क्रिसमस के रूप में भी मनाया जाता है.

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आज का दिन भारत के लिए भी बेहद खास है. आज भारत माता के ऐसे पुत्र का जन्म हुआ, जिनके जन्म का उद्देश्य मानव कल्याण और जीवन का उद्देश्य राष्ट्र निर्माण रहा. प्रयागराज की पवित्र भूमि में 25 दिसंबर 1861 को एक ब्राम्हण परिवार के घर में महामना पंडित मदन मोहन मालवीय का जन्म हुआ. अपने जीवन काल में उन्होंने शिक्षक, अधिवक्ता, लेखक, पत्रकार और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में मां भारती की सेवा की.

बीएचयू में लगी महामना की मूर्ति

भिक्षाटन कर बनाई सर्व विद्या की राजधानी
मदन मोहन मालवीय ने 1916 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना कर अपने जन्म के उद्देश्य को पूर्ण किया और भारत को ऐसा संस्थान दिया, जो युगों-युगों तक देश के प्रति उनके योगदान को याद दिलाएगा. जब देश अंग्रेजों के चंगुल में था, चारो तरफ भुखमरी थी, उस समय पंडित मदन मोहन मालवीय ने भिक्षाटन करके काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की नींव रखी. महामना प्रयागराज से संकल्प करके निकले और देश के कोने-कोने में घूम कर भिक्षाटन करने के बाद एशिया की सबसे बड़ी आवासीय विश्वविद्यालय का निर्माण किया.

बीएचयू की वर्तमान संरचना
वर्तमान में बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में 16 संस्थान, 14 संकाय, 140 विभाग और चार अंतर अनुवांशिक केंद्र हैं. महिलाओं के लिए महिला महाविद्यालय, 13 विद्यालय, 4 संबंधित डिग्री कॉलेज शामिल हैं. विश्वविद्यालय में 40 हजार छात्र-छात्राएं और तीन हजार शिक्षक हैं.

जब बापू ने कहा 'मैं महामना का पुजारी हूं'
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कई बार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी काशी हिंदू विश्वविद्यालय में आए. स्थापना समारोह से लेकर रजत समारोह तक विश्वविद्यालय में आए एक पत्र में महात्मा गांधी ने लिखा था कि 'बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी आना मेरे लिए एक तीर्थ के समान है, मैं तो महामना का पुजारी हूं'.

महामना एक अधिवक्ता के रूप में
महामना मालवीय ने सन् 1893 में कानून की परीक्षा पास की. वकालत के क्षेत्र में उनकी सबसे बड़ी सफलता चौरी-चौरा कांड के अभियुक्तों को फांसी की सजा से बचाना था. चौरी-चौरा कांड में 170 भारतीयों को फांसी की सजा सुनाई गई, लेकिन मालवीय जी के बुद्धि कौशल ने अपनी योग्यता और तर्क के बल पर 152 लोगों को फांसी की सजा से बचा लिया.

राष्ट्रीय वाक्य का श्रेय
भारत के राष्ट्रीय आदर्श वाक्य "सत्यमेव जयते" को लोकप्रिय बनाने का श्रेय पंडित मदन मोहन मालवीय को जाता है. "सत्यमेव जयते" हजारों साल पहले लिखे गए उपनिषदों का एक मंत्र है.

चार बार रहे राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष
वल्लभभाई पटेल की तरह ही मदन मोहन मालवीय भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दिग्गज चेहरों में से एक थे. वह चार बार यानी 1909, 1918, 1932 और 1933 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे. महामना ने 1886 में कोलकाता में हुए कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन में ऐसा प्रेरक भाषण दिया कि, वे राजनीति के मंच पर छा गए. उन्होंने लगभग 50 साल तक कांग्रेस की सेवा की. मालवीय जी ने 1937 में सक्रिय राजनीति को अलविदा कहने के बाद अपना पूरा ध्यान सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित किया.

एक पत्रकार के रूप में
मालवीय जी ने सन् 1885 से 1907 के बीच 3 समाचार पत्रों का संपादन किया, जिनमें हिंदुस्तान, इंडिया यूनियन और अभ्युदय शामिल हैं. साल 1909 में 'द लीडर' समाचार पत्र की स्थापना कर इलाहाबाद से प्रकाशित किया.

विधवाओं के पुनर्विवाह का समर्थन
विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद पंडित मदन मोहन मालवीय ने विधवाओं के पुनर्विवाह का समर्थन और बाल विवाह का विरोध करने के साथ ही महिलाओं की शिक्षा के लिए भी काम किया.

भारत माता के इस महान सपूत का निधन 12 नवंबर 1946 को हुआ था. महामना की 153वीं जयंती के एक दिन पहले 24 दिसंबर 2014 को भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया.

आजादी के पहले जान गए देश की परिस्थिति
बीएचयू के विज्ञान संस्थान के डीन प्रोफेसर मल्लिका अर्जुन जोशी ने बताया कि मालवीय जी को एक साधारण नजरिए से नहीं देखा जा सकता है. इतने बड़े विश्वविद्यालय को बनाने के पीछे उनकी बड़ी सोच थी. महामना इस बात को समझ गए थे कि देश तो आजाद हो ही जाएगा. उनकी यह सोच थी कि देश शिक्षित लोगों से बनता है. देश की आर्थिक स्थिति बहुत बुरी है. देश को इससे उबारने का एक ही तरीका है कि यहां के लोग शिक्षित हों, किसी एक चीज से देश का समग्र विकास नहीं होगा या शिक्षा पूरी नहीं होगी.

प्रोफेसर मल्लिका अर्जुन ने बताया कि महामना का वेशभूषा पूरी तरीके से भारतीय था. उनको देखकर अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि उनकी सोच कितनी बड़ी थी. विश्वविद्यालय की स्थापना से पहले मालवीय जी ने बहुत कुछ पढ़ा था. 'आईडी ऑफ यूनिवर्सिटी' नाम की पुस्तक उन दिनों बहुत प्रचलित थी. आज भी सबसे ज्यादा फॉलोअर्स उसके देखे जा सकते हैं. मालवीय जी ने उस दौरान उस पुस्तक का अध्ययन किया था.

विश्वविद्यालय में आज भी विचरण करते हैं 'महामना'
बीएचयू शोध छात्र आकिब अली ने बताया कि हम इस बात को सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं कि जब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था और भुखमरी से लड़ रहा था. उस समय महामना ने इतने बड़े विश्वविद्यालय की परिकल्पना कर दी, आज एक वृहद रूप में साकार हो रहा है. बीएचयू के कण-कण में महामना आज भी जीवित हैं. मालवीय जी ने जिस उद्देश्य से विश्वविद्यालय की स्थापना की थी, यहां के मानस पुत्र व कर्मचारी, प्रोफेसर और छात्र आज भी उनके उद्देश्य को पूरा करने में लगे हैं.

Last Updated : Dec 25, 2020, 2:04 AM IST

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