वाराणसी:आज शारदीय नवरात्र का सातवां दिन है. नौ दिन की पूजा-पाठ के क्रम में आज देवी के सातवें स्वरूप यानी माता कालरात्रि के दर्शन पूजन का विधान है. माता कालरात्रि का स्वरूप बहुत ही विकराल और रौद्र रूप से भरा हुआ है. आज की रात को महानिशा पूजन के लिए भी जाना जाता है. महानिशा पूजा यानी रात्रि में सिद्धियां प्राप्ति करने के लिए किया जाने वाला पूजन.
राक्षसों के वध के लिए मां कालरात्रि का स्वरूप हुआ था उत्पन्न
पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि माता कालरात्रि का सातवें दिन दर्शन-पूजन करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है. सातवें दिन महासप्तमी होती है. मार्कंडेय पुराण के मुताबिक माता के स्वरूप को चंड-मुंड और रक्तबीज सहित अनेकों राक्षसों का वध करने के लिए उत्पन्न किया गया था. देवी को कालरात्रि और काली के साथ चामुंडा के नाम से भी जाना जाता है. चंड-मुंड के संघार की वजह से मां के इस रूप को चामुंडा कहा जाता है.
रात के समय करें मां काली का पूजन
पंडित पवन त्रिपाठी ने बताया कि कालरात्रि के सातवें स्वरूप के साथ इस दिन का भी नवरात्र में विशेष महत्व है. क्योंकि रात्रि तीन प्रकार की होती है. महारात्रि जिसे शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है. मोह रात्रि जिसे कृष्ण जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है और कालरात्रि जिसे महाकाली की रात्रि के रूप में जाना जाता है. यह रात्रि तंत्र साधना के साथ ही समस्त सिद्धियों को प्राप्त करने की सबसे बड़ी रात्रि होती है. इसलिए मां काली का पूजन रात्रि के वक्त में किया जाना सबसे उत्तम बताया गया है.