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भीष्म के हर अंग से मिलता है अलग वरदान, पूजा करने से मिलती है मुक्ति - कार्तिक पूर्णिमा में पूजा

शिव की नगरी काशी में एकादशी के बाद कार्तिक पूर्णिमा तक गंगापुत्र भीष्म की पूजा की जाती है. पूजा करने के लिए घाट किनारे मिट्टी की अस्थाई बनी मूर्ति को आकार दिया जाता है. सुबह गंगा स्नान के बाद महिलाएं भीष्ण की पूजा करती हैं.

भीष्म के हर अंग से मिलता है अलग वरदान
भीष्म के हर अंग से मिलता है अलग वरदान

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Published : Nov 30, 2020, 10:26 AM IST

वाराणसी:शिव की नगरी काशी में एकादशी के बाद कार्तिक पूर्णिमा तक गंगापुत्र भीष्म की पूजा की जाती है. पूजा करने के लिए घाट किनारे मिट्टी की अस्थाई बनी मूर्ति को आकार दिया जाता है. सुबह गंगा स्नान के बाद महिलाएं पूजन करती हैं.

भीष्म की होती है पूजा

मान्यता के अनुसार, ऐसा करने से भक्तों को लाभ प्राप्त होता है. जो महिलाएं एक माह तक कार्तिक स्नान नहीं कर पाती है. वह एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा 5 दिन तक मां गंगा में स्नान करने के बाद भीष्म की मूर्ति की पूजा करती हैं. इसे उन्हें पुण्य का लाभ होता है. बनारस की केदार घाट, अस्सी घाट, शीतला घाट, दशाश्वमेध घाट राजेंद्र प्रसाद घाट, पंचगंगा घाट, तुलसी घाट, पांच घाट के किनारे गंगापुत्र भीष्म की प्रतिमा को गंगा माटी से आकार दिया जाता है. जो कार्तिक मास में गंगा स्नान नहीं कर पाते, वह पंचक के पांच दिन स्नान और भीष्म दर्शन कर पूरे मास का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं. कहा जाता है कि भीष्म के शरीर के अलग-अलग अंगों को छूने से अलग-अलग फल की प्राप्ति होती है.

हर अंग से मिलता है वरदान
भक्त विद्या गोवाल ने बताया कि श्रद्धालु एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक गंगा स्नान करते हैं. विभिन्न घाटों पर भीष्म की पूजा करते हैं. मान्यता यह है कि भीष्म की पूजा करने से और इनके शरीर के विभिन्न अंगों को छूने से अलग-अलग वरदान मिलते हैं. एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक स्नान के बाद भीष्म की पूजा करने से फल की प्राप्ति होती है. इनकी पूजा करने से मुक्ति मिलती है.

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