वाराणसी: जिले में कुम्हारों की तादात काफी संख्या में है. ये कुम्हार कुल्हड़, दीया, झंजर, मटका, मिट्टी के बर्तन बनाकर अपना गुजारा करते हैं. लॉकडाउन की वजह से इनके द्वारा बनाए गए मिट्टी के बर्तन मार्केट में नहीं जा पा रहे हैं. जिससे इनकी रोजी-रोटी पर संकट खड़ा होने लगा है.
अप्रैल और मार्च के महीने में कुम्हार ज्यादा संख्या में मिट्टी से बर्तनों को बनाते हैं, लेकिन इस लॉकडाउन में जो दिया दूसरों के जीवन में प्रकाश फैलाते हैं, वह इनके घरों और आंगन में अंधकार फैला रहे हैं. हमेशा चलने वाले इनके चाक के पहिए थम गए हैं. ये कुम्हार आस लगाए बैठे हैं कि कब लॉकडाउन खत्म हो ताकि दिए बिक सकें.
बनारस में मिट्टी के कुल्हड़ की सबसे ज्यादा खपत मानी जाती है. सुबह होते ही यहां लोग मिट्टी के कुल्हड़ में चाय पीते हैं. गर्मी का समय आते ही मिट्टी के कुल्हड़ में बनारस की फेमस लस्सी पिया जाता है. इसके साथी गर्मी बढ़ते ही लोग विशेष मौके पर सतुआ संक्रांति पर ब्राह्मणों को मिट्टी झांझर दान देते हैं. शिवालयों में भगवान शिव के ऊपर मिट्टी के झांझर में जल भरकर रखा जाता है.