वाराणसी: काशी में हो रहे विकास कार्यों ने न सिर्फ यहां की तस्वीर बदली है बल्कि प्रदूषण भी कम हुआ है. जी हां 2014 के मुकाबले 2022 बनारस के लिए एक सुखद अनुभव लेकर आया है, क्योंकि यहां की आबोहवा में बड़ा बदलाव हुआ है. एयर क्वालिटी की मॉनिटरिंग करने वाले चार अलग-अलग सेंटर से सामने आए आंकड़े यह साबित कर रहे हैं कि बनारस की आबोहवा अधिकांश दिनों में ग्रीन जोन के अंदर बनी हुई है. यानी बनारस की हवा में खतरनाक तत्व कम हुए हैं. साथ ही बनारस के प्रदूषण का स्तर में काफी तेजी से सुधरा है.
जानकारी देते हुए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी डॉ कालिका सिंह प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी डॉ. कालिका सिंह ने बताया कि लहुराबीर, भेलूपुर, भोजूबीर और काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ऑटोमेटिक एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग मशीन लगाई गई है. इसमें अलग-अलग दिन के आंकड़े सामने आए हैं, जिसमें बीते लगभग 139 दिनों से बनारस ग्रीन जोन में है. जबकि 91 दिन यलो जोन सेटिस्फेक्ट्री लेवल और सिर्फ लगभग 7 दिन रेड जोन में रहा है. इससे यह साबित हो रहा है कि बनारस मकी एयर क्वालिटी में काफी सुधार हुआ है. डॉ कालिका सिंह का कहना है कि एयर पॉल्यूशन के मामले की मॉनिटरिंग पीएम लेवल की जाती है, जो कि काशी में बेहतर हो गया है. यदि आंकड़ों पर गौर करें तो लहुराबीर स्थित मॉनिटरिंग सेंटर अब तक बीते लगभग 5 महीनों में 87 दिनों तक यानी लगभग 3 महीने तक ग्रीन जोन और लगभग 139 दिनों तक यलो जोन में शामिल रहा, जबकि 2 दिन रेड जोन में रहा.
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भेलूपुर में मॉनिटरिंग सिस्टम में 108 दिन ग्रीन जोन और 105 दिन एलो जोन रहा है. जबकि बीएचयू के मॉनिटरिंग सेंटर पर क्षेत्र के अधिकांश इलाके 139 दिनों तक ग्रीन जोन में और 91 दिनों तक यलो जोन में शामिल है, जबकि सिर्फ 1 रेड जोन में रहा है. यानी अब तक बीते महीनों में लगभग 70% से ज्यादा दिनों तक बनारस ग्रीन जोन में रहा है.
डॉ. कालिका सिंह का कहना है कि वाराणसी में बीते 5 सालों से चल रहे तमाम विकास कार्य लगभग पूरे हो चुके हैं. इनमें श्री काशी विश्वनाथ धाम, रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर, दीनदयाल हस्तकला संकुल, महमूरगंज ओवर ब्रिज, चौकाघाट लहरतारा ओवर ब्रिज का काम फाइनल हो चुका है. इतना ही नहीं बनारस में काफी लंबी चौड़ी सड़क भी पूरी तरह से बन चुकी है. हाईवे और रिंग रोड का निर्माण भी तेजी से हो गया है. जिसकी वजह से ग्रामीण क्षेत्र में भी स्थिति बहुत सुधर चुकी है, जिसकी वजह से धूल का गुबार कम हुआ है और बनारस की हवाओं में प्रदूषण घटा है.
इसके अतिरिक्त गंगा में चलने वाली डीजल की नौकाओं को सीएनजी में कन्वर्ट किया गया है. 350 से ज्यादा नावों को सीएनजी में कन्वर्ट होने से धातु का पॉल्यूशन लेवल भी कम हो गया है. इसके अलावा सड़क पर ऑटो की संख्या कम और ई रिक्शा की संख्या ज्यादा हुई है. इसके अलावा सिटी ट्रांसपोर्ट के लिए अट्ठारह इलेक्ट्रिकल बसें आ गई है, जो काफी बेहतर रिजल्ट दे रही हैं.
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