वाराणसीः काशी को गंगा-जमुनी तहजीब का शहर यूं ही नहीं कहा जाता है. यहां सभी त्योहार एकता की तस्वीर दिखाते हैं. जहां मुस्लिम परिवार पूर्वांचल का सबसे बड़ा रावण का पुतला तैयार करता है. ये अद्भुत तस्वीर बरेका की रामलीला (Bareka Ramleela) और खास तौर पर दशहरा में नजर आती है. बनारस के बरेका में सबसे बड़ा रावण दहन होता है. यह बेहद ऐतिहासिक माना जाता है.
वाराणसी में बरेका की रामलीला की खासियत जानें बता दें कि पुतलों को तैयार करने वाला मुस्लिम परिवार लगभग 3 पीढ़ियों से इस काम को कर रहा है. पूरे परिवार के महिला-पुरुष संग कुल 15 लोग लगे हुए हैं. इस परिवार की खासियत यह है कि यह मुस्लिम परिवार न सिर्फ इन पुतलों को तैयार करता है बल्कि अपने बच्चों को भी एकता का पाठ पढ़ाता है. यही वजह है कि उस परिवार के हर बच्चे को राम और रावण की कहानी पता है. यह मुस्लिम परिवार शांति और सौहार्द का संदेश समाज को दे रहा है.
तीन पीढ़ियों से चला आ रहा ये काम
महिला कारीगर सलमा ने बताया कि हम लगभग पांच साल से ये काम कर रहे हैं. ये हमारी तीसरी पीढ़ी है. इस सवाल पर कि परिवार चलाने के साथ-साथ कैसे इस जिम्मेदारी के निभा ले रही हैं. उन्होंने कहा, 'परिवार साथ है तो सब हो जाता है. सलमा ने कहा कि पुतला बनाने के काम में हमें बहुत खुशी मिलती है और कभी भी किसी भी बात की परेशानी नहीं आई है. जो काम खुशी और मन से किया जाए तो वो काम आसानी से हो जाता है.
2004 से इस काम में लगा है अयान
सलमा के बेटे अयान ने बताया कि वह इस काम में साल 2004 से लगा है. अयान ने बताया कि रावण ने सीता का हरण कर लिया था. इसलिए हर साल पुतला दहन किया जाता है. उन्होंने बताया कि वह अपनी पढ़ाई जारी रखने के साथ ही इस काम को करते हैं. इसे बनाने में उन्हें खुशी मिलती है.
70 फीट का रावण, 50 फीट का मेघनाद
इसबार के मेले में रावण दस मुख का तैयार किया जा रहा है. जो लगभग 70 फीट का होगा. इसे लगभग दो लाख रुपये की लागत से तैयार किया जा रहा है. इसे तैयार करने में लगभग दो से ढाई महीने का समय लगता है. बता दें कि कुंभकर्ण लगभग 50 से 60 फीट का तैयार किया जा रहा है. वहीं, लगभग 50 फीट का मेघनाद का पुतला भी तैयार किया जा रहा है.
हिंदूऔर मुसलमान बांटा हुआ नहीं है
सलमा आगे बताती हैं कि इस काम में हमारा मनोरंजन भी होता और ज्ञान भी मिलता है. हमारे बच्चे भी इसके बारे में जानते हैं. ये भी खुशी से इस काम में साथ देते हैं. अगर हमारे घर के बच्चों से पूछेंगे तो वे इसे कहानी की तरह बता देंगे. उन्होंने कहा कि हिंदू और मुसलमान बांटा हुआ नहीं है. हिंदू को मुसलमान के हर कार्यक्रम में समर्थन करना चाहिए. मुसलमान का भी यही कर्त्वय होता है कि हिन्दुओं के कार्यक्रमों में सम्मिलित रहें उनका सम्मान करें.
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दो साल बाद होगा मेला का आयोजन
बरेका में हर साल दशहरा मेला का आयोजन किया जाता है. इसमें हजारों लोगों की भीड़ जुटती है. कोरोना संक्रमण के कारण पिछले दो साल से यहां पर दशहरा का मेला आयोजित नहीं हो सका था. एक बार फिर यहां रौनक लौट आई है. दशहरा मेला के लिए मुस्लिम कारीगर पुतला तैयार कर रहे हैं. बांस व लकड़ी से रावण, कुंभकर्ण व मेघनाद का पुतला तैयार किया जा रहा है.
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