वाराणसी:धर्म नगरी काशी को शिक्षा की राजधानी कहा जाता है. यहां कई ऐसे विश्वविद्यालय हैं, जिनमे पूर्वांचल के विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे है. इन्हीं में से एक विश्वविद्यालय है महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ. जहां लाखों की संख्या में विद्यार्थी प्रतिवर्ष उपाधि हासिल करते हैं. लेकिन, हैरान करने वाली बात यह है कि लाखों की संख्या में विद्यार्थियों को उपाधि देने वाला यह विश्वविद्यालय जुगाड़ पर चल रहा है. यहां शिक्षा के लिए मूलभूत सुविधाओं का अभाव है.
बड़ी बात यह है कि ये आभाव अन्य विभागों के साथ विश्वविद्यालय के सिग्नेचर डिपार्टमेंट ललित कला विभाग(Fine Arts Department of BHU ) में भी नजर आ रहा है. जहां विद्यार्थियों का भविष्य राम भरोसे चल रहा है. क्योंकि संकाय में व्यवहारिक कला, मूर्तिकला और चित्रकला से जुड़े शिक्षक मौजूद नहीं है. यहां विद्यार्थी खुद ही शिक्षक बनके खुद को ही शिक्षा दे रहे हैं.
जानकारी देती संवाददाता प्रतिमा तिवारी महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ पूर्वांचल का सबसे बड़ा व उत्तर प्रदेश के बड़े विश्वविद्यालयों में से एक माना जाता है. इस विश्वविद्यालय में लाखों की संख्या में विद्यार्थी हर साल डिग्रियां हासिल करते हैं. इससे पूर्वांचल के 5 जिलों के 350 महाविद्यालय संबद्ध हैं. यहां खानापूर्ति कर विद्यार्थियों को बस डिग्रियां उपलब्ध कराई जा रही है क्योंकि शिक्षकों की कमी के बाद भी दोबारा नया सत्र शुरू किया जा रहा है लेकिन शिक्षकों की आपूर्ति नहीं की गई हैं. विश्वविद्यालय के इस लापरवाही के कारण कहीं ना कहीं बच्चों का भविष्य अंधकार में जा रहा है.
जुगाड़ पर बच्चों को मिल रहा ज्ञान 9 सालों से शिक्षकों का है अभाव: ललित कला विभाग में शिक्षकों का अभाव एक या दो सालों से नहीं बल्कि 9 सालों से है. 2014 के बाद से यहां शिक्षकों का अकाल पड़ गया. वर्तमान में यह विभाग एक परमानेंट शिक्षक के जरिए संचालित किया जा रहा है, जो इस विभाग के विभागाध्यक्ष भी हैं. संविदा पर 2 शिक्षकों को रखा गया है. जो चित्रकला व व्यवहारिक कला के बच्चों को शिक्षा ग्रहण कराते हैं. छात्रों को पढ़ाने के लिए चार गेस्ट फैकेल्टी को भी रखा गया है लेकिन, गेस्ट फैकेल्टी 6 महीने की होती है और यह रिटायर्ड शिक्षक होते हैं. इस वजह से यह कभी कक्षा में आते हैं कभी नहीं आते है. जबकि इस विभाग में कम से कम 10 शिक्षकों की आवश्यकता है, जो पठन-पाठन के कार्य में मदद कर सकें.
थ्योरी और मूर्ति कला में नहीं हैं एक भी शिक्षक:हैरान करने वाली बात यह है कि यहां पर थ्योरी और मूर्तिकला में एक भी शिक्षक नहीं हैं. प्रैक्टिकल के शिक्षक ही बच्चों को थ्योरी भी पढ़ाते हैं. वह भी कमाइंड क्लास में, क्योंकि शिक्षा के अभाव के कारण फर्स्ट ईयर, सेकंड ईयर, थर्ड ईयर, फोर्थ ईयर व पीजी की कक्षाएं एक साथ ही हॉल में संचालित की जाती है. इससे एक शिक्षक के जरिए सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों को पढ़ाया जा सके. ऐसे में मूर्तिकला के शिक्षकों के अभाव में बच्चे जुगाड़ से मूर्ति कला सीख रहे हैं. यही वजह है कि मूर्तिकला का क्लासरूम पूरी तरह से खंडहर में तब्दील हो चुका है. ऐसे में यदि मानक की बात करें, तो ललित कला विभाग में 15 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक होना चाहिए. यानी कि विश्वविद्यालय में बड़ी मात्रा में शिक्षकों का अभाव है.
जुगाड़ पर बच्चें कर रहे पढ़ाई: शिक्षकों के अभाव पर बच्चों ने बताया कि टीचर ना होने की वजह से हमें बहुत दिक्कत होती है. इसमें ट्यूशन तो नहीं मिल पाता है. इसलिए हम लोगों ने यूट्यूब व गूगल को ही अपना टीचर बना लिया है और उसके जरिए अलग-अलग चीजें बनाना सीखते हैं. यहां भी अगर कोई दिक्कत होती है तो हम अपने क्लासमेट या सीनियर छात्रों से पूछ कर उसे सॉल्व कर लेते हैं. एक छात्रा ने बताया कि उसे अप्लाइड आर्ट में स्पेशलाइजेशन लेना था, लेकिन शिक्षक के अभाव में उसने स्पेशलाइजेशन अप्लाइड आर्ट में नहीं लिया, इसके वजह से वह बेहद दुखी है.
मूलभत सुविधाओं का है अभाव:विद्यार्थियों का कहना है कि मूलभूत सुविधाओं के नाम पर विभाग में खानापूर्ति की गई हैं. अलग-अलग कोर्सों की कक्षाएं यहां पर संचालित की जाती हैं, लेकिन समुचित क्लास रूम की व्यवस्था नहीं है. हम सभी बच्चों के बैठने के लिए टेबल कुर्सियां मौजूद नहीं है. चित्रकला मूर्तिकला, अप्लाइड आर्ट के लिए उपयुक्त सामान भी नहीं है. जिस वजह से हमे खासा परेशानी होती हैं. जुगाड़ पर संचालित हो रहे इस विभाग को 9 साल हो गए हैं. 9 साल में अब तक लगभग 3000 से ज्यादा विद्यार्थियों ने डिग्रियां हासिल की हैं. यदि विभाग की माने तो जो बच्चे यहां सीखकर जाते हैं और उन्हें अच्छा प्लेसमेंट मिलता है. लेकिन शिक्षकों के अभाव के कारण उन्हें वह बारीक जानकारियां नहीं मिल पाती है, जिससे उन्हें सीखना चाहिए.
इन दो प्रमुख डिग्री कोर्सो का होता है संचालन: ललित कला विभाग में फैशन डिजाइनिंग, बी ड्रामा, टेक्सटाइल डिप्लोमा कोर्स संग दो प्रमुख डिग्री कोर्सों का संचालन किया जाता है. जिनमें बीएफए और एमएफए के कोर्स है. बीएफए का कोर्स 4 वर्ष का होता है, जिसमें पहले साल फाउंडेशन पढ़ाया जाता है और बाकी 3 सालों में बच्चे स्पेशलाइजेशन विषय पढ़ते हैं. एमएफए में 2 साल का कोर्स होता है. इन दोनों साल के कोर्स में बच्चे स्पेशलाइजेशन की डिग्री लेते है.
ये है विद्यार्थियों की संख्या:सीटों की बात करें तो वर्तमान समय में ललित कला विभाग में बीएफए की 60 सीटें हैं, जिसमें 25 सीट चित्रकला की है. 11 सीट व्यवहारिक कला की और 5 सीट मूर्तिकला की है. वर्तमान समय में कुल 240 विद्यार्थी बीएफए में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. एमएफ़ए की बात कर ले तो इसमें कुल 40 सीटें हैं. 20 सीटें इस सत्र में बढ़ाई जाएंगी. एमएफए में वर्तमान समय में यहां 80 विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं.
अन्य विभागों के भी खस्ता हालात: विद्यापीठ में ललित कला विभाग हीं नहीं बल्कि म्यूजिक, उर्दू, संस्कृत, राजनीतिक विज्ञान, लगायत अन्य विभागों में शिक्षकों का अभाव है. इन विभागों में एक दो संविदा शिक्षक, 6 महीने के लिए गेस्ट फैकेल्टी को बुलाकर पढ़ाया जा रहा है.
कुलपति का दावा, जल्द दूर होगी शिक्षकों की कमी:इस बारे में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एके त्यागी का कहना है कि राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों के साथ विद्यापीठ में भी शिक्षकों का अभाव है. हम इस अभाव को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं. ललित विभाग में भी शिक्षकों की कमी है. उसको लेकर के शिक्षकों की भर्ती की जा रही है यह अभी प्रक्रिया में है जल्द ही इस प्रक्रिया को पूरा कर शिक्षकों की नियुक्ति की जाएगी, जिससे पठन-पाठन सुचारू रूप से चल सके.
एक नजर बीएचयू के ललित कला विभाग पर :बात यदि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के ललित कला विभाग की करें तो, यहां पर लगभग 600 छात्र बीएफ़ए में और लगभग 200 छात्र एमएफए में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. जिनमें अलग-अलग विभागों में कुल 32 परमानेंट शिक्षकों की नियुक्ति है.हालांकि इन दिनों 10 शिक्षकों को सेवानिवृत्त कर दिया गया है.इनके स्थान पर विश्वविद्यालय शिक्षकों की नियुक्ति का प्रायोजन तैयार कर रहा है.