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यूक्रेन से लौटी काशी की कृतिका ने मतदान के बाद कही ये बड़ी बात... - तिरंगा था हमारा सुरक्षा कवच

लोकतंत्र के महापर्व में अलग-अलग तस्वीरें दिख रही हैं. ईटीवी भारत आज आपको एक ऐसी ही खास तस्वीर से रूबरू कराने जा रहा है. दरअसल, यूक्रेन के खरकीव में फंसी काशी की एक बेटी केंद्र की मोदी सरकार की मदद से घर वापसी कर सकी है. वहीं, दूसरी ओर लोकतंत्र के महापर्व में अपनी हिस्सेदारी दर्ज करा उसने मतदान के जरिए सरकार को धन्यवाद ज्ञापित किया.

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Published : Mar 7, 2022, 4:02 PM IST

वाराणसी: लोकतंत्र के महापर्व में अलग-अलग तस्वीरें दिख रही हैं. ईटीवी भारत आज आपको एक ऐसी ही खास तस्वीर से रूबरू कराने जा रहा है. दरअसल, यूक्रेन के खरकीव में फंसी काशी की एक बेटी केंद्र की मोदी सरकार की मदद से घर वापसी कर सकी है. वहीं, दूसरी ओर लोकतंत्र के महापर्व में अपनी हिस्सेदारी दर्ज करा उसने मतदान के जरिए सरकार को धन्यवाद ज्ञापित किया.

तिरंगा था हमारा सुरक्षा कवच

वाराणसी की रहने वाली ये छात्रा बीते अक्टूबर माह में मेडिकल की पढ़ाई के लिए यूक्रेन गई थी. जहां बीते साल तो सब ठीक था. लेकिन बीते कुछ हफ्तों में वहां का मंजर खौफ की साये में मौत की दस्तक की तरह हो गया था. रूस-यूक्रेन युद्ध की जद में फंसी ये बची वतन वापसी कर अब सुकून की सांस ले रही है. ईटीवी भारत से बातचीत में यूक्रेन से लौटी कृतिका ने बताया कि वहां का माहौल बेहद खतरनाक था. वो भारत सरकार का शुक्रिया अदा करती है कि उसकी सकुशल वतन वापसी हो सकी. इतना ही नहीं उसने आगे बताया कि इंडिया का झंडा ही उसके लिए रक्षा कवच की तरह था.

यूक्रेन से लौटी काशी की कृतिका

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हालांकि उसे कई दिनों तक बंकर में बंद खाने के लिए परेशानी झेलनी पड़ी तो दूसरी ओर बम गोले बरस रहे थे. लेकिन उसने कहा कि हमारी सरकार ने हमारे बारे में सोचा और आज हम अपने वतन में सकुशल वापस लौट आए हैं. कृतिका ने बताया कि वह बीते 5 फरवरी को अपने वतन वापस लौटी. जहां उनका परिवार लखनऊ में रहता है, लेकिन उनका पैतृक आवास वाराणसी में है. वह अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए सोमवार को वाराणसी आई.

मेडिकल फीस कम करें सरकार

कृतिका की मां ने कहा कि मेरी बेटी को सकुशल अपने देश वापस लौटाने के लिए मैं सरकार को धन्यवाद देती हूं. लेकिन आज लोकतंत्र के इस पर्व पर मेरा प्रमुख मुद्दा देश में मेडिकल सीटों को और बढ़ाए जाने और उसकी फीस को कम किए जाने का है. जिससे कि देश में बच्चे पढ़ सके उन्हें यूक्रेन या अन्य देशों में न जाना पड़े.

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