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तिलभर बढ़ता है तिलभांडेश्वर शिवलिंग, जानिए क्या है मान्यता

वाराणसी के भेलूपुर इलाके में स्थित तिलभांडेश्वर महादेव को लेकर मान्यता है कि तिल भर बढ़ता है. सावन के समय यहां कफी संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ती है मान्यता है कि तिलभांडेश्वर महादेव(Tilbhandeshwar Mahadev) मंदिर में दर्शन मात्र से मनुष्य को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है.

तिलभांडेश्वर शिवलिंग
तिलभांडेश्वर शिवलिंग

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Published : Aug 14, 2021, 7:18 AM IST

वाराणसी: बनारस के कण कण में शिव का वास माना जाता है. काशी के 23 हजार मंदिरों में कुछ मंदिरों का विशेष स्थान है. जिनमें काशी विश्वनाथ मंदिर, कर्मदेश्वर महादेव मंदिर, सुमेरू दुर्गा मंदिर, पंचकोशी मंदिर, वाराणसी के गंगा घाट किनारों पर बने हुए मंदिर इत्यादि शामिल हैं. जिनकी अलग ऐतिहासिक कहानी है. वहीं काशी में एक ऐसा शिव मंदिर भी है जिसको लेकर मान्यता है कि यह शिवलिंग तिलभर बढ़ता है. इसका नाम है तिलभांडेश्वर महादेव.

वाराणसी के भेलूपुर इलाके में स्थित तिलभांडेश्वर महादेव(Tilbhandeshwar Mahadev) स्वयंभू हैं. इसे लेकर मान्यता है कि 2000 वर्ष पूर्व दक्षिण भारत के ऋषि विभाण्डक यहां आए थे. प्रतिदिन बढ़ने वाले इस शिवलिंग को देखकर वह आश्चर्यचकित हो गए और यहीं रुक कर कई वर्षों तक साधना की. कालांतर में शिवलिंग की प्रकृति और ऋषि का नाम मिलाकर इनका नामकरण तिलभांडेश्वर रखा गया. जिले के केदारखंड में स्थित तिलभांडेश्वर मंदिर की विशालकाय शिवलिंग अपने इतिहास को स्वयं बयां कर रही है. स्थानीय लोगों के साथ दक्षिण भारत के लोग यहां पर दर्शन पूजन करने जरूर आते हैं. सावन, शिवरात्रि और मकर संक्रांति के समय यहां विशेष प्रकार का अनुष्ठान किया जाता है.

स्पेशल रिपोर्ट
मंदिर के महंत स्वामी शिवानंद गिरी महाराज ने बताया कि प्राचीन काल में इस स्थान पर तिल की खेती होती थी. एक दिन अचानक कुछ लोगों ने देखा कि यहां शिवलिंग प्रकट हुआ है. तब से लोग इस शिवलिंग पर तिल चढ़ाने लगे. श्रृंगी ऋषि के पिता विभाण्डक ऋषि इसी रास्ते से गुजर रहे थे. उन्होंने देखा कि सभी लोग शिवलिंग पर तिल चढ़ा रहे हैं. यह देखकर उनको बहुत ही आनंद आया. तब ऋषि ने कई वर्षों तक यहां घोर तपस्या की और फिर बाद में भविष्यवाणी हुई की शिवलिंग कलयुग में भी हर रोज एक तिल बढ़ता रहेगा.

मान्यता है कि इस शिवलिंग के एक बार दर्शन मात्र से मनुष्य की सभी मनोकामना पूरी होती है और व्यक्ति सुख समृद्धि को प्राप्त करता है.बताया जाता है कि सम्राट अशोक के शासनकाल में बौद्ध धर्म के लोगों ने शिवलिंग की गहराई जानने का प्रयास किया और खुदाई शुरु कर दी. काफी खुदाई के बाद भी उन्हें शिवलिंग के गहराई के बारे में कुछ पता नहीं चल सका और थक हार कर वह वापस चले गए.
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महंत शिवानंद गिरि ने बताया कि मुगलों के बाद अंग्रेजों को शिवलिंग के इस चमत्कार पर विश्वास नहीं हुआ तब काशी के विद्वान ब्राह्मणों के कहानुसार अंग्रेजों ने इसका परीक्षण किया. शिवलिंग को नारे से बांधकर मंदिर के गर्भगृह को सील कर दिया गया. दो दिन बाद जब गर्भ गृह खोला गया तो नारा टूटा हुआ था. तब जाकर अंग्रेजों का भ्रम दूर हुआ.

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