वाराणसी:सात वार नव त्योहारों का शहर बनारस हर पर्व को एक आस्था के साथ मनाता है. ऐसे में 13 अक्टूबर रविवार को शरद पूर्णिमा है. दशहरे से शरद पूर्णिमा तक चन्द्रमा की चांदनी में विशेष हितकारी किरणें होती हैं. इनमें विशेष रस होते हैं. इन दिनों में चन्द्रमा की चांदनी का लाभ लेने से वर्षभर मानसिक और शारीरिक रूप से स्वास्थ्य अच्छा रहता है. प्रसन्नता और सकारात्मकता भी बनी रहती है. हालांकि शरद पूर्णिमा की रात कुछ खास बातों का भी ध्यान रखना चाहिए.
शरद पूर्णिमा पर अश्विनी कुमारों के साथ यानी अश्विनी नक्षत्र में चंद्रमा पूर्ण 16 कलाओं से युक्त होता है. चंद्रमा की ऐसी स्थिति साल में एक बार ही बनती है. वहीं ग्रंथों के अनुसार अश्विनी कुमार देवताओं के वैद्य हैं. इस रात चंद्रमा के साथ अश्विनी कुमारों को भी खीर का भोग लगाना चाहिए. चन्द्रमा की चांदनी में खीर रखना चाहिए और अश्विनी कुमारों से प्रार्थना करना चाहिए कि हमारी इन्द्रियों का बल-ओज बढ़ाएं, जो भी इन्द्रियां शिथिल हो गईं हों, उनको पुष्ट करें. ऐसी प्रार्थना करने के बाद फिर वह खीर खाना चाहिए.
शरद पूर्णिमा पर बनाई जाने वाली खीर मात्र एक व्यंजन नहीं होती है. ग्रंथों के अनुसार ये एक दिव्य औषधि होती है. इस खीर को गाय के दूध और गंगाजल के साथ ही अन्य पूर्ण सात्विक चीजों के साथ बनाना चाहिए. अगर संभव हो तो ये खीर चांदी के बर्तन में बनाएं. इसे गाय के दूध में चावल डालकर ही बनाएं. ग्रंथों में चावल को हविष्य अन्न यानी देवताओं का भोजन बताया गया है. महालक्ष्मी भी चावल से प्रसन्न होती हैं. इसके साथ ही केसर, गाय का घी और अन्य तरह के सूखे मेवों का उपयोग भी इस खीर में करना चाहिए. संभव हो तो इसे चंद्रमा की रोशनी में ही बनाना चाहिए.
क्या करें
- शरद पूर्णिमा की रात में सूई में धागा पिरोने का अभ्यास करने की भी परंपरा है. इसके पीछे कारण ये है कि सूई में धागा डालने की कोशिश में चंद्रमा की ओर एकटक देखना पड़ता है, जिससे चंद्रमा की सीधी रोशनी आंखों में पड़ती है. इससे नेत्र ज्योति बढ़ती है.
- आज के दिनों में काम वासना से बचने की कोशिश करनी चाहिए. उपवास, व्रत और सत्संग करने से तन तंदुरुस्त, मन प्रसन्न और बुद्धि प्रखर होती है.
- शरद पूर्णिमा की रात में तामसिक भोजन और हर तरह के नशे से बचना चाहिए. चंद्रमा मन का स्वामी होता है, इसलिए नशा करने से नकारात्मकता और निराशा बढ़ जाती है.