वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी बनारस में एक गली है औरंगाबाद. इस गली की ऐतिहासिकता इस बात की है कि इस गली का नाम औरंगजेब के नाम पर है. इतिहासकार बताते हैं कि जब काशी में औरंगजेब आया था, तब इसी इलाके में उसने अपनी सराय बनाई थी. इसके कारण इस इलाके का नाम औरंगाबाद पड़ा.
काशी के औरंगाबाद हाउस से तय होती थी देश की राजनीति सबसे बड़ी बात यह है कि इस गली में एक ऐसा घर है, जिसे अकेले औरंगाबाद हाउस के नाम से जाना जाता है. यह घर और किसी का नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार में रेल मंत्री रह चुके कद्दावर कांग्रेसी नेता पंडित कमलापति त्रिपाठी का है. 1905 में पंडित जी के पिता नारायण पति त्रिपाठी देश की आजादी में अपनी भूमिका की शुरुआत की लेकिन बाद में इसे किस तरह से पंडित कमलापति त्रिपाठी ने देश की आजादी के संघर्ष के साथ देश की सेवा के लिए राजनीतिक पृष्ठभूमि के रूप में परिवर्तित किया, यह पीढ़ी दर पीढ़ी आज भी कायम है.
पंडित कमलापति त्रिपाठी के बाद आज चौथी पीढ़ी लगातार राजनीति में सक्रिय है. लेकिन एक वक्त वह भी था, जब औरंगाबाद हाउस से पूर्वांचल के साथ यूपी और पूरे देश की राजनीति की धुरी तय होती थी, क्या है इस औरंगाबाद हाउस का इतिहास और क्यों राजनैतिक दृष्टि से इसे माना जाता है बेहद खास, जानिए इस खास खबर में-
दरअसल, वाराणसी में पंडित कमलापति त्रिपाठी के आवास को औरंगाबाद हाउस के रूप में जाना जाता है लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि इस घर में 1920 से लेकर अब तक लगातार राजनीति के अलावा देश की आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इतना ही नहीं, औरंगाबाद हाउस से पंडित कमलापति त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, देश के रेल मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहे. उनके बेटे लोकपति त्रिपाठी पौत्र राजेश पति त्रिपाठी और वर्तमान में प्रपौत्र ललितेश पति त्रिपाठी लगातार सक्रिय राजनीति में महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए जनप्रतिनिधि के रूप में चुने गए.
निष्ठा से किया सबने काम
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के राजनीति विभाग के प्रोफेसर सतीश राय बताते हैं कि देश की आजादी में महत्वपूर्ण रोल निभाने वाला औरंगाबाद हाउस बीते 70 सालों से ज्यादा वक्त से कांग्रेस की राजनीति करता आया है. देश बदला, देश के हालात बदले, कितनी नई पार्टियां आईं लेकिन इस परिवार से जुड़ा कोई भी व्यक्ति अपनी निष्ठा और पार्टी कार्य से विपरीत कभी नहीं गया. आज भी लगातार पंडित कमलापति त्रिपाठी की चौथी पीढ़ी ललितेश पति त्रिपाठी के रूप में कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता और देश की राजनीति में महत्वपूर्ण रोल निभा रही है.
प्रोफेसर राय का कहना है कि 1905 में देश की आजादी की लड़ाई में गोपाल कृष्ण गोखले की अध्यक्षता में कांग्रेस बनारस सम्मेलन के दौरान औरंगाबाद हाउस के कर्ताधर्ता कमलापति त्रिपाठी के पिता स्वर्गीय नारायण पति त्रिपाठी भी जुड़े थे. आजादी की लड़ाई में 27 साल समर्पित करने के बाद कमलापति त्रिपाठी ने देश सेवा की खातिर राजनीति में कदम रखा और कांग्रेस के साथ मिलकर देश बदलने की कवायद शुरू की, 1936 में पहली बार चंदौली से चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की, बताया जाता है कि पंडित कमलापति त्रिपाठी बनारस से चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें चंदौली से टिकट दिया और अपने प्रचार की शुरुआत पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कमलापति त्रिपाठी की खातिर चंदौली से की, जिसके बाद उनको बड़ी जीत हासिल हुई. 1937 में पंडित कमलापति त्रिपाठी ने राजनीति में कदम रखा और उसके बाद लगातार एक के बाद एक इतिहास रचते हुए देश के रेल मंत्री, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके पंडित जी ने ब्राह्मण वोट बैंक को हिट करने का काम किया.
नेताओं का लगा रहता था जमावड़ा
पंडित कमलापति त्रिपाठी के पौत्र पंडित विराट पति त्रिपाठी बताते हैं कि राजनीतिक परिवेश बदलते हैं. उन्होंने अपनी आंखों के आगे देखा है. एक वक्त वह भी था जब इस घर में बड़े छोटे नेताओं का जमघट हमेशा लगा रहता था, कोई न कोई घर के आंगन में पंडित कमलापति त्रिपाठी के नीचे आने का इंतजार करता था.
औरंगाबाद हाउस पीढ़ी दर पीढ़ी सक्रिय राजनीति में भूमिका
- पंडित कमलापति त्रिपाठी उत्तर प्रदेश में गठित पहली विधानसभा में चंदौली से महज 32 साल की उम्र में विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे. 1971 से 1973 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. 1975 से 1977, 1980 से 1981 तक केंद्र सरकार में रेल मंत्री रहे. 1983 से 1987 तक राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनकर कांग्रेस को मजबूती प्रदान की. आजादी के पहले जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और 1964 से 1972 तक कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला.
- दूसरी पीढ़ी के रूप में लोक पति त्रिपाठी ने पंडित कमलापति त्रिपाठी के बेटे होने के नाते इस परिवार की राजनैतिक विरासत को आगे बढ़ाने का काम किया और 1971 से 2001 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के पांच बार सदस्य रहे. एचएन बहुगुणा एनडी तिवारी और श्रीपति मिश्र के सीएम कार्यकाल में लोग पति त्रिपाठी खेल मंत्री सिंचाई मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहे कांग्रेस की केंद्रीय और यूपी वर्किंग कमेटी में सक्रिय रूप से शामिल हैं.
- तीसरी पीढ़ी के रूप में इस परिवार के राजेश पति त्रिपाठी औरंगाबाद हाउस की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का प्रयास किया हालांकि वह सक्रिय राजनीति में बहुत सफल नहीं साबित हुए राजेश पति 1999 में विधान परिषद के सदस्य हैं. कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा और लोकसभा का चुनाव भी लड़ा लेकिन जीत नहीं हासिल हुई, जिसकी वजह से उन्होंने सिर्फ पार्टी से जुड़कर ही काम करने का फैसला लिया.
- वर्तमान में औरंगाबाद हाउस की चौथी पीढ़ी ज्ञानी पंडित राजेश पति त्रिपाठी के बेटे ललितेश पति त्रिपाठी औरंगाबाद हाउस की राजनीतिक विरासत को मजबूती प्रदान करने की कोशिश कर रहे हैं. ललितेश ने 2012 में मिर्जापुर से विधानसभा का चुनाव जीता और 2014 में मोदी लहर के बाद भी 152000 वोट मिर्जापुर लोकसभा सीट से हासिल किया लेकिन वह जीत नहीं पाए. वर्तमान में 2019 लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने ललितेश पर भरोसा जता कर मिर्जापुर से उन्हें एक बार फिर से लोकसभा का टिकट दिया है.