वाराणसी:सनातन धर्म में हर पर्व और त्यौहार का अलग महत्व है. इन सबके बीच दो ऐसे पर्व होते हैं, जो सनातन धर्म में शुभ और मांगलिक कार्यों के कृत्यों को निर्धारित करते हैं. यह पर्व हैं देवशयनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी. इसे देव उठनी या फिर प्रबोधनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि भगवान श्री हरि विष्णु आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को क्षीरसागर में विश्राम करने के लिए चले जाते हैं और चार माह तक विश्राम करने के बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे देवोत्थान एकादशी के नाम से जाना जाता है, उस दिन निंद्रा से जागते हैं.
देवोत्थान एकादशी के दिन होता है तुलसी और शालिग्राम का विवाह
इसके बाद शुभ कार्यों का दौर शुरू होता है. इस दिन को इसलिए भी विशेष माना जाता है. क्योंकि आज ही के दिन शालिग्राम और तुलसी का विवाह संपन्न कराया जाता है. आइए जानते हैं इस खास दिन का महत्व और कैसे करें शालिग्राम और तुलसी का पाणिग्रहण संस्कार.
शुक्रवार 8 नवंबर को प्रबोधिनी एकादशी का पर्व मनाया जा रहा है. इस खास दिन को लेकर पुराणों में एक कथा वर्णित है जिसकी वजह से आज ही के दिन शालिग्राम और तुलसी के विवाह की रस्म को निभाया जाता है.
यह है इस पर्व की पौराणिक कथा
इस बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी ने बताया कि शास्त्रों में वर्णित है कि देवोत्थान एकादशी भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप और देवी वृंदा यानी तुलसी के विवाह का दिन है. इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु चार माह की निंद्रा के बाद जागते हैं. आज के बाद से शुभ और मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है. इसके पीछे एक कथा वर्णित है यह कथा है दैत्य जालंधर और उनकी पत्नी वृंदा से जुड़ी. शास्त्र अनुसार सती धर्म का पालन करने वाली वृंदा की वजह से जालंधर का अंत मुश्किल था. इसलिए भगवान श्री हरि विष्णु ने जालंधर का रूप धरकर वृंदा का सतीत्व भंग करने के लिए उन्हें स्पर्श किया और देवताओं से युद्ध कर रहे जालंधर की मृत्यु हुई.
इसे भी पढ़ें:- जौनपुर: एकादशी व्रत पर छाया महंगाई का साया, दो गुने दाम पर बिक रहे सामान
इससे क्षुब्ध होकर वृंदा ने श्री हरि विष्णु को पत्थर के होने का अभिशाप दिया, लेकिन जब भगवान श्री हरि विष्णु अपने असली रूप में आए तो वृंदा को बहुत पश्चाताप हुआ. तब श्री हरि ने उन्हें यह वरदान दिया कि अपने पति के साथ सती होने के बाद वह तुलसी के रूप में पूजी जाएगी. वृंदा के अभिशाप से पत्थर में बदल चुके श्री हरि विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को श्री हरि विष्णु के साथ संपन्न कराया जाएगा.
तुलसी पूजन के बिना अधूरी होती है श्री हरि विष्णु की पूजा
इससे सुहागिन महिलाओं का सुहाग बना रहेगा और भगवान हरि विष्णु ने तुलसी के रूप में पूजे जाने वाले वृंदा के बिना अपनी कोई भी पूजा संपन्न न होने का भी वरदान दिया. इसके बाद तुलसी के बगैर भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा पूरी नहीं मानी जाती है.
आज से शुरू होंगे मांगलिक कार्य
ज्योतिषाचार्य पवन त्रिपाठी का कहना है कि आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि से कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि तक चातुर्मास के दौरान श्री हरि विष्णु के निद्रा में होने की वजह से कोई शुभ या मांगलिक कार्य नहीं होता. श्री हरि विष्णु के निद्रा से उठने के साथ ही उनका विवाह तुलसी के साथ संपन्न कराया जाता है. इसके साथ ही मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है.