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11 महीने मां गंगा की गोद में समाया रहता है काशी का यह मंदिर, जानिए क्या है इतिहास... - काशी के अद्भुत मंदिर

धर्म और आध्यात्म की नगरी काशी में एक ऐसा मंदिर है, जो गंगा के पानी और बालू से ढका रहता है. साल में सिर्फ कुछ दिनों के लिए ही इस अद्भुत मंदिर के गर्भगृह दर्शन हो पाते हैं, क्योंकि हमेशा यह मंदिर गंगा की गोद में ही समाया रहता है, तो आइए आज आपको कराते हैं काशी के पौराणिक मंदिर के गर्भ गृह के दर्शन.

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रत्नेश्वर महादेव मंदिर

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Published : Jun 3, 2023, 9:48 PM IST

1 महीने के लिए बाबा भोलेनाथ भक्तों को दर्शन देते हैं .

वाराणसीःभोलेनाथ की नगरी काशी जिसके बारे में यह कहा जाता है कि यहां कण-कण में शिव विराजते हैं और यहां के मंदिरों की ऐतिहासिकता और इसकी प्रमाणिकता अपने आप में सब कुछ बयां करती है. अद्भुत और अदम्य रूप में काशी आज भी न जाने कितने रहस्यों को अपने में समेट कर रखे हुई है और ऐसा ही एक रहस्य काशी के उस 400 साल से ज्यादा पुराने मंदिर में मिलता है, जिसे रत्नेश्वर महादेव या काशी करवट मंदिर के नाम से जाना जाता है.

काशी के मणिकर्णिका और सिंधिया घाट के बीच में बसे इस मंदिर का जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने ट्वीट में किया और आज हम आपको उस मंदिर के इस अद्भुत गर्भगृह के दर्शन करवाने जा रहे हैं, जिसका दर्शन असंभव है. या यूं कहिए साल में सिर्फ कुछ दिनों के लिए ही इस अद्भुत मंदिर के गर्भगृह दर्शन हो पाते हैं, क्योंकि हमेशा यह मंदिर गंगा की गोद में ही समाया रहता है.

रत्नेश्वर महादेव मंदिर का गर्भगृह

400 साल से ज्यादा है पुराना
दरअसल, काशी के 400 साल पुराने इस रत्नेश्वर महादेव मंदिर को लेकर कई दंत कथाएं जुड़ी हैं. अपने आप में वास्तुकला की अलौकिक सुंदरता के साथ यह मंदिर लोगों को अपनी ओर खींचने का काम करता है, लेकिन यहां आने वाले लोगों को यहां विराजमान भगवान भोलेनाथ के दर्शन नहीं होते, क्योंकि वह हमेशा गंगा की गोद में या फिर मिट्टी में ही दबे रहते हैं.

ये है कहानी
वर्तमान समय में मंदिर में पूजा पाठ करने वाले पुजारी दीपक आचार्य का कहना है कि ऐसी कहानी प्रचलित है कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करने वाली माता अहिल्याबाई होल्कर ने इस मंदिर को श्राप दिया था. जिसके पीछे की वजह यह है कि उनकी दासी रत्नाबाई ने इस मंदिर का निर्माण 400 वर्ष पूर्व करवाया. मंदिर की सुंदरता को देखकर अहिल्याबाई ने इस मंदिर का नाम अपने अनुसार रखना चाहा था, क्योंकि इस मंदिर के ठीक सामने तारकेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था. उस वक्त अहिल्याबाई होल्कर की बातों को नजरअंदाज करके गंगा की तलहटी के नजदीक बनाए गए.

इस मंदिर का नाम अपने नाम पर रत्नेश्वर महादेव रख दिया, जिससे नाराज अहिल्याबाई होल्कर ने उन्हें यह श्राप दिया कि तुमने जिस इच्छा से इस मंदिर का निर्माण कराया था, उसकी पूर्ति नहीं होगी और यह मंदिर हमेशा पानी में डूबा रहेगा. सिर्फ कुछ समय के लिए यहां भक्तों को बाबा भोलेनाथ के दर्शन होंगे और ऐसा हुआ भी. निर्माण के बाद यह मंदिर हमेशा गंगा की तलहटी में डूबा रहा और चैत्र नवरात्रि के बाद भीषण गर्मी पड़ने पर जब गंगा में पानी कम होता है. तब इस मंदिर के दर्शन होते हैं. यूं कहें कि 11 महीना तो यह मंदिर पूरी तरह से पानी में होता है. सिर्फ 1 महीने के लिए बाबा भोलेनाथ भक्तों को दर्शन देते हैं और इस मंदिर का गर्भगृह इतना सुंदर है कि जिसे देखकर आप भी आश्चर्यचकित हो जाएंगे.

अद्भुत है मंदिर
40 फीट ऊंचा यह मंदिर गुजरात शैली के अनुसार बनवाया गया था, जिसकी भव्यता और डिजाइन अपने आप में अद्भुत है. इस मंदिर को काशी करवट के नाम से भी जाना जाता है. सबसे बड़ी बात यह है कि यह मंदिर लगभग 9 डिग्री से ज्यादा झुका हुआ है. जिसके बारे में कहा जाता है कि पीसा की मीनार से भी ज्यादा यह मंदिर टेढ़ा है, लेकिन आज तक न मंदिर गिरा है और न ही धंसा है.

पीएम भी कर चुके हैं जिक्र
सबसे बड़ी बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी खुद अपने ट्विटर हैंडल पर 2021 में तस्वीरें साझा करके इस मंदिर की पौराणिकता की बात बताई थी. उसके बाद उम्मीद जगी थी कि यह मंदिर एक बार फिर से अपने नए रूप में सामने आएगा. विश्वनाथ मंदिर में धाम के निर्माण के दौरान इस मंदिर के द्वार की रूपरेखा तैयार हुई, लेकिन आज तक यह मंदिर अपने कायाकल्प का इंतजार कर रहा है.

पीएम मोदी का ट्वीट

हालात यह हैं कि आकाशीय बिजली की चपेट में आ चुके मंदिर की दीवारें छीन हो चुकी हैं और गंगा की लहरों को चलते-चलते यह मंदिर अब धीरे-धीरे जर्जर हो रहा है, लेकिन मंदिर की भव्यता और सुंदरता देखकर हर कोई यहां आता है और भगवान के दर्शन करना चाहता है. जो भाग्यशाली हैं, उन्हें दर्शन मिलते हैं नहीं तो बाबा हमेशा पानी में ही डूबे रहते हैं. फिलहाल इस वक्त गर्भगृह की भव्यता और सुंदरता देखते ही बन रही है जहां दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग पहुंच रहे हैं.

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