वाराणसीः धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में सावन के माह में भगवान शंकर का दर्शन करने के लिए भीड़ और बढ़ जाती है. इस दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन करने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी लोग आते हैं. काशी में ऐसे बहुत से शिवलिंग है, जिनकी मान्यता अलौकिक है. इन्हीं में एक अति प्राचीन केदार घाट पर स्थित भगवान केदारेश्वर महादेव का मंदिर है. गंगा घाट के किनारे बसा यह मंदिर दक्षिण परंपरा के अनुसार बनी हुई है. हालांकि, यहां दुनियाभर से लोग पहुंचते हैं. लेकिन इनमें सबसे ज्यादा संख्या दक्षिण भारत के श्रद्धालुओं की होती है. मान्यता है कि यहां भगवान शिव अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं. इसके साथ ही इस मंदिर में स्थित शिवलिंग की कहानी बेहद रोचक है.
काशी में तीन खण्डःमाना जाता है कि काशी भगवान शंकर के त्रिशूल पर टिकी है. इसीलिए काशी तीन खंडों में बांटा गया है. ओमकारेश्वर खंड, विशेश्वर खंड, केदारेश्वर खंड. केदारेश्वर खंड में भगवान शंकर का केदारेश्वर मंदिर है. मान्यता है यहां दर्शन करने से भक्तों को उत्तराखंड में स्थित भगवान केदारनाथ के दर्शन का फल मिलता है.
भगवान राम के पूर्वज ने की थी तपस्याःमंदिर के महंत परिवार से जुड़े शुभम मिश्रा ने बताया कि उत्तराखंड में स्थित केदारनाथ में भगवान शिव के पीठ का दर्शन होता है. पशुपतिनाथ में भगवान के सिर का दर्शन होता है और यहां पर उनके कमर से नीचे का भाग स्थित है. शुभम मिश्रा ने बताया कि भगवान राम के पूर्वज राजा मांधाता थे. उन्होंने 100 वर्षों तक हिमालय पर भगवान शंकर के दर्शन के लिए तपस्या की थी. मांधाता की तपस्या के समय एक आकाशवाणी हुई. उनसे कहा गया कि आप काशी में जाकर तपस्या करिए. हम आपको वहीं पर दर्शन देंगे.
खिचड़ी से बना शिवलिंगः शुभम मिश्रा ने बताया कि मांधाता काशी आ गए और यहां पर कई वर्षों तक तपस्या की. वह रोज खिचड़ी बनाते थे और भगवान को भोग लगाते थे और उसके दो भाग करते थे. एक वह खुद ग्रहण करते थे और दूसरा ब्राह्मणों को दान करते थे. एक दिन उन्होंने खिचड़ी बना कर उन्हें ब्राहम्णों को दान की. इस दौरान ब्राह्मण वहां से अचानक गायब हो गए और खिचड़ी का भोग पत्थर में बदल गया. वह बहुत ही परेशान हो गए और रोने लगे. इसके बाद भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया और कहा कि यह पाषाण (पत्थर) जो खिचड़ी से बनी है. वही शिवलिंग है.