वाराणसीःकाशी के हस्तशिल्प कलाओं में दक्षिण की कला (art of south) का संगम हो रहा है, जिसकी तस्वीर काशी तमिल संगमम (Kashi Tamil Sangamam) में नजर आ रही है. यहां दक्षिण के कारीगर उत्तर के लोगों को वहां का हुनर सिखा रहे हैं. अब लघु भारत कही जाने वाली काशी में भी तमिलनाडु की प्रसिद्ध मणिक्य माला (manikya mala) तैयार होगी, जिसके लिए दक्षिण भारत से आए कारीगर यहां बीएचयू के स्टूडेंट्स को इसका हुनर सीख रहे हैं. बड़ी बात ये है कि बीएचयू के छात्र तमिलनाडु के इन कला को बड़े ही चाव से सीख रहे हैं.
बता दें कि बीएचयू के एमपी थ्रिएटर मैदान (Mp Theater Ground) में दक्षिण भारत के लघु उद्योगों यानी की हस्तशिल्प कलाओं के कई स्टॉल लगे हुए हैं. इन्हीं में से एक माणिक्य माला का स्टाल भी है. इस स्टॉल के मालिक एस. शंकर लिंगम बीएचयू के छात्रों को ये माला बनाने की ट्रेनिंग दे रहे हैं, जिसे बच्चे भी बेहद चाव से सीख रहे हैं.
ऐसी होती है माणिक्य माला
इस माला को गुलाब की पंखुड़ियों से तैयार किया जाता है. इसमें अन्य पत्ते का भी प्रयोग किया जाता है. खास बात यह है कि, देखने में ये किसी बीड्स या लंबी लाल मोतियों से बना हुआ दिखता है, लेकिन इसे ताजे फूल से बनाया जाता है. तमिलनाडु के पद्मनाभम स्वामी मंदिर संग इसे अन्य मंदिरों में हर दिन चढ़ाया जाता है.
काफी दिक्कतों से होती है तैयार
बीएचयू के विजुअल आर्ट्स डिपार्टमेंट के 6 स्टूडेंट्स बनाने की ट्रेनिंग ले रहे हैं. दो शिफ्ट में एस शंकर लिंगम इसे बनाने का हुनर सीखा रहे है. शंकर लिंगम ने बताया कि उनके परिवार के 25 लोग इस माला को तैयार करते है. उन्होंने बताया कि इस माला को ताजे गुलाब के फूलों के पंखुड़ियों से बनाया जाता है. कई बार ऐसा होता है कि इसे बनाने में गुलाब के कांटे भी उंगलियों में चुभ जाते हैं, लेकिन इन तमाम दिक्कतों के बाद भी कलाकार इसे तैयार करते हैं.
काशी में भी किया जाएगा तैयार
माला बनाने की ट्रेनिंग ले रही बीएचयू की स्टूडेंट ज्योतिका मौर्या ने बताया कि, फिलहाल वो अभी इसके छोटे पैटर्न को बनाने की प्रैक्टिस कर रही हैं. उनके अलावा यहां कुल 6 स्टूडेंट्स हैं, जो इसे बनाने की ट्रेनिंग ले रहे हैं. उन्हें ये सीखने में अच्छा लग रहा है. छात्रों का कहना है कि सीखकर आगे वो इसे काशी में बनाना शुरू करेंगे.
बेहद खूबसूरत होती है ये माला
ये माला बेहद खूबसूरत होती है. गुलाब के ताजे पंखुड़ियों के कारण ये चार से पांच दिनों तक टिक भी जाती है और इसकी खुशबू भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है. इसे बनाने में चंबा फाइवर का इस्तेमाल होता है, लेकिन यहां चंबा फाइवर नहीं है जिसके कारण कपड़े या धागे का इस्तेमाल कर भी इसे तैयार किया जा सकता है.
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