वाराणसी: कहते हैं इंसान मुसीबतों से घिरा हो तो उसे कई बार रास्ते नजर नहीं आते, लेकिन इन मुसीबत के समय लिए गए कुछ फैसले इंसान की जिंदगी को कई बार बदल देते हैं. ऐसा ही कुछ लगभग 28 साल पहले अमृतसर, पंजाब से बनारस आए जूडो कोच लाल कुमार के साथ भी हुआ है. जब 1980 से लेकर 1995 के दौर में पंजाब में नशा और आतंकवाद चरम पर था तब अपने जीवन की खेल जगत में शुरुआत कर रहे लाल कुमार ने पंजाब के बुरे हालात से परेशान होकर यूपी का रुख किया और धर्म नगरी बनारस को अपनी कर्मभूमि बनाने की ठानी. यहां पहुंचने के बाद उन्होंने जूडो को नई ऊंचाइयां देने के लिए वह प्रयास शुरू किए, जो आज कईयों की जिंदगी सुधारने की वजह बन गए.
लाल कुमार को यूपी में जूडो कुमार के नाम से जाना जाता है. यह कोच स्टेडियम के एसी कमरों में नहीं बल्कि गांव की मिट्टी में जाकर ग्रामीण परिवेश से अब तक सैकड़ों नेशनल-इंटरनेशनल खिलाड़ियों को तैयार कर चुका है, लेकिन तकलीफ इस बात की है कि सैकड़ों की जिंदगी संवारने वाला यह शानदार कोच अब तक अपने अंधेरे में गुम हुए भविष्य के लिए उजाला तलाश रहा है. सैकड़ों इंटरनेशनल और नेशनल प्लेयर तैयार करने वाले इस फाइटर कोच के पास अब तक न नौकरी है और न ही कोई उम्मीद.
निराश होकर छोड़ा अपना घर
लाल कुमार बताते हैं कि 1985 के राष्ट्रीय खेलों के कांस्य पदक विजेता के तौर पर उन्होंने राष्ट्रीय खेल संस्थान पटियाला से जूडो कोच का सर्टिफिकेट हासिल किया. इसके बाद अमृतसर में जब आतंकवाद और नशा अन्य युवाओं को अपनी गिरफ्त में लेना शुरू किया तब उन्हें यह समझ में आ गया कि वह पंजाब में रहकर अपने भविष्य को न संवार पाएंगे और न ही किसी युवा को तैयार कर पाएंगे. ऐसे में उन्होंने यूपी को अपनी कर्मभूमि बनाने की ठानी.
1993 में 300 रुपये से शुरू किया करियर
लाल कुमार बताते हैं कि 1993 में जब वह बनारस आए और वाराणसी के डॉक्टर संपूर्णानंद स्पोर्ट्स स्टेडियम में पहुंचे तब पूर्व अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी और तत्कालीन रीजनल स्पोर्ट्स ऑफिसर एनपी सिंह ने बनारस में जूडो के भविष्य को लेकर सवाल उठाए. उन्होंने एनपी सिंह से बतौर कोच जूडो सिखाने की बात कही, जिस पर 300 रुपये महीने पर स्टेडियम में बतौर जूडो कोच उन्हें तैनाती मिल गई. लाल कुमार का कहना है कि मुझे वह दिन आज भी याद है जब महज 300 रुपये में उन्होंने बनारस में जूडो सिखाने की शुरुआत की.
संसाधनों की कमी ने मोड़ा गांवों की तरफ
लाल कुमार बताते हैं कि दिक्कत इस बात की थी ना ही स्टेडियम में जूडो के लिए कोई व्यवस्था थी और न ही यहां के खिलाड़ी जूडो का नाम जानते थे, लेकिन उन्होंने भी हार नहीं मानी. खिलाड़ियों को तलाशने के लिए लाल कुमार शहर को छोड़कर ग्रामीण इलाकों में निकल गए और एक-एक करके उन्होंने लोहता, भट्टी, भरथरा, धननीपुर समेत 10 से ज्यादा गांवों से 100 से ज्यादा पहलवानों की टीम तैयार की. यह पहलवान गांव की मिट्टी में अखाड़े में कुश्ती लड़ते थे और जूडो से अनजान थे, लेकिन लाल कुमार ने इन्हें इस तरह तैयार किया कि एक-एक करके या खिलाड़ी नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर पहुंच गए.
एक के बाद एक निकले कई बड़े खिलाड़ी
लाल के शिष्यों की सूची बहुत लंबी है, लेकिन इनमें से वर्तमान समय में विवेक कुमार, राम आसरे, रामाश्रय यादव समेत 12 से ज्यादा इनके सिखाए शिष्य इंटरनेशनल लेवल पर खेल रहे हैं और पंजाब पुलिस, हरियाणा पुलिस, यूपी पुलिस, रेलवे और कई अन्य जगहों पर नौकरी भी कर रहे हैं. यहां तक कि इनके सिखाए कुछ लड़के तो स्पोर्ट्स कोच की ट्रेनिंग लेने के बाद सर्टिफिकेट हासिल करके कई स्पोर्ट्स हॉस्टल में कोच भी बन चुके हैं.