वाराणसी:रात के अंधेरे में लालटेन लेकर घायलों की सेवा करने के साथ-साथ महिलाओं को नर्सिंग की ट्रेनिंग देने वाली फ्लोरेंस नाइटेंगल को भला कौन नहीं जानता. क्रीमिया युद्ध में घायल सैनिकों के उपचार में अहम भूमिका निभाने वाली फ्लोरेंस नाइटेंगल को 'लेडी विद द लैम्प' के नाम से भी जाना जाता है. हर वर्ष उनकी याद में 12 मई को 'अन्तर्राष्ट्रीय नर्स दिवस' मनाया जाता है. फ्लोरेंस नाइटेंगल तो अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके पदचिन्हों पर चलते हुए नर्सिंग सेवा कर रहीं महिलाओं की संख्या अनगिनत है. आध्यात्मिक नगरी काशी में भी नर्सिंग सेवा में जुटी ऐसी ही महिलाओं ने अपनी अलग पहचान बना रखी है.
फिर भी नहीं रुके कदम
मरीजों की सेवा को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना चुकीं नर्स सुनीता सिंह के जीवन में आये तमाम तूफान भी उनके कदमों को रोक न सके. कोविड काल में अपनी जान पर खेल कर मरीजों के लिए किए गए योगदान को जहां एक नजीर के तौर पर देखा जाता है. वहीं, किसी भी मरीज की अपने परिवार के सदस्य की तरह सेवा करना सुनीता को औरों से अलग पहचान दिलाता है.
मण्डलीय चिकित्सालय में नर्स सुनीता सिंह बताती हैं कि बचपन से ही उनके मन में मरीजों की सेवा करने का भाव था. यही कारण था कि उन्होंने नर्सिंग की पढ़ाई की ताकि अपने सपनों को वह साकार कर सकें. उनका सपना सच होता भी नजर आया जब उन्हें नर्स की नौकरी मिल गई. ड्यूटी को वह पूजा मान मरीजों की सेवा में जुट गई. वहीं, बाकी समय वह अपने परिवार की जिम्मेदारियों को संभालने में गुजार देती थी. सबकुछ अच्छा चल रहा था, परिवार में बेटा निशांत और बेटी तृप्ति के साथ वह खुशहाल जीवन गुजार रही थी. तभी उनके जीवन में अचानक तूफान आ गया. साल 2013 में उनके पति आशीष सिंह की हार्ट अटैक से हुई मौत ने उनका सारा सुख-चैन छीन लिया. इस हादसे से वह काफी दिनों तक सदमें में रहीं, लगा कि सबकुछ छिन गया. लेकिन कुछ ही दिनों बाद उन्होंने हिम्मत जुटाई और जीवन को पटरी पर धीरे-धीरे लाने का प्रयास करने के साथ ही पुनः मरीजों की सेवा में जुट गई. मरीजों की सेवा वह इस भावना के साथ करती है, जैसे वह उनके परिवार का ही सदस्य हो.