वाराणसी: रोहनियां के भूल्लनपुर गांव की 95 वर्षीया शांति देवी अब डाकघर से पैसा निकालते समय अंगूठा नहीं लगातीं, बल्कि हस्ताक्षर करती हैं. दो वर्ष पूर्व उन्होंने ककहरा सीखा था. इसके बाद तो उन्हें ऐसी पढ़ने की लगन लगी कि रात-दिन एक कर उन्होंने शब्दों को लिखना और पढ़ना सीखा. कांपते हाथों से वह छोटे-छोटे वाक्य भी लिख लेती हैं. जैसा कि हर साल मई के दूसरे रविवार को अंतरराष्ट्रीय मातृ दिवस मनाया जाता है. वाराणसी की ये बुजुर्ग महिलाएं मातृशक्ति का सशक्त उदाहरण हैं.
गौरतलब हो कि 70 वर्ष की तपेसरा देवी को भी कभी अंगूठा छाप के रूप में जाना जाता था, लेकिन अब वह भी जरूरी कागजातों पर अपना हस्ताक्षर कर लेती हैं. घर में आई हुई खाद्य सामाग्रियों और अन्य सामानों के पैकेट पर छपे नाम को पढ़ लेती हैं. घरेलू खर्च भी वह डायरी में दर्ज कर लेती हैं. रोहनियां के भूल्लनपुर गांव की रहने वाली सिर्फ शांति देवी और तपेसरा ही नहीं, इसी गांव की ललदेई, जड़ावती, सुगुना, लालती देवी जैसे दर्जनों वह नाम हैं, जो अब जरूरी कागजातों पर अपने अंगूठे का निशान नहीं लगातीं, बल्कि हस्ताक्षर करती हैं.
हाल ही में अक्षर ज्ञान हसिल कर उन्होंने अपना हस्ताक्षर करना तो सीखा ही, थोड़ा-बहुत लिखना पढ़ना भी शुरू कर दिया है. उम्र के आखिरी पड़ाव में भी इन बुजुर्ग महिलाओं में शिक्षा हासिल करने की हसरतें अपार हैं. घरेलू काम-काज से फुर्सत मिलते ही यह सभी लिखने-पढ़ने के अभ्यास में जुट जाती हैं. यह सब कुछ संभव हुआ है, इस गांव की रहने वाली बीना सिंह की मेहनत के चलते जो गांव में शिक्षा की अलख जगा रही हैं.
महिलाओं को साक्षर बनाने का उठाया बीड़ा
बीना सिंह बताती हैं कि उनका मायका मिर्जापुर में है. बचपन से ही उनके मन में समाजसेवा की इच्छा थी. वह महिलाओं और बेटियों को पढ़ाना चाहती थीं. ससुराल आने पर ससुर और पति से मिले प्रोत्साहन से उनके सपनों को पंख लग गए. घर की जिम्मेदारियों को संभालने के साथ ही उन्होंने पास-पड़ोस की महिलाओं को घर बुलाकर पढ़ाना शुरू किया, खासकर उनकों जो निरक्षर थीं. दो वर्ष के भीतर अबतक सिर्फ भूल्लनपुर गांव समेत पड़ोसी गांवों की दो सौ से अधिक महिलाओं को वह साक्षर बना चुकी हैं.
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