वाराणसी: भगवान शिव की नगरी काशी को यूं ही सात वार और नौ त्योहार का शहर नहीं कहा जाता है. यहां होने वाला हर त्योहार, हर परंपराएं अपने आप में बेहद खास है. क्योंकि काशी अपने आप में कई सारे इतिहास को समेटे हुए है. यहां जन्म और मृत्यु दोनों जश्न के साथ मनाया जाता है. इसी ऐतिहासिक शहर काशी में एक पिशाच मोचन कुंड भी है, जो अपने आप में कई सारे मान्यताओं को समेटे हुए है.
पिशाच मोचन कुंड का है ऐतिहासिक महत्व. काशी खंड में पिशाच मोचन की कथा का वर्णन है. भारत में सिर्फ पिशाच मोचन कुंड पर ही त्रिपिंडी श्राद्ध होता है, जो पितरों को प्रेत बाधा और अकाल मृत्यु से मुक्त करता है. कुंड का बखान कई सारे पुराणों में किया गया है. पितृपक्ष में उस कुंड का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है. बुधवार से पितृपक्ष शुरू हो रहा है. इस दौरान लोग पूर्वजों का तर्पण करते हैं.
काशी खंड में वर्णित है कि गंगा के धरती पर आने के पहले से ही इस कुंड का अस्तित्व है. मान्यता के अनुसार यहां पीपल के वृक्ष पर भटकती आत्माओं को बैठाया जाता है. उस पर सिक्का बैठाया जाता है ताकि पितरों का सभी उधार चुकता हो जाए और सभी बाधाओं से मुक्त होकर उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो.
यूं तो काशी में मरने वाले सभी लोगों को मोक्ष मिल जाता है, लेकिन अकाल मौत के कारण जो आत्मा भटकती रहती हैं, उन्हें भी यहां मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस बाबत सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के पूर्व संकायाध्यक्ष प्रोफेसर उमाशंकर शुक्ल ने बताया कि पिशाच मोचन कुंड का नाम पिशाच नाम के व्यक्ति से पड़ा था, जोकि बहुत पाप किया हुआ था. उसे वहीं पर मुक्ति मिली थी. इसके साथ ही जिन लोगों की अकाल मृत्यु होती हैं, उनके परिजन यहां आकर के पूजन अर्चन करते हैं. वे श्राद्ध कर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति हेतु तर्पण करते हैं.
सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के संकायाध्यक्ष प्रोफेसर अमित कुमार शुक्ला ने बताया कि काशी का विमल तीर्थ अति प्राचीन है. उसका वर्णन गरुड़ पुराण, स्कंद पुराण समेत तमाम शास्त्रों और पुराणों में मिलता है. काशी का ये इकलौता ऐसा स्थान है, जहां त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है. जिस भी व्यक्ति की अकाल मृत्यु होती है, उसे यहां मोक्ष मिलता है.
प्रोफेसर अमित कुमार शुक्ला ने बताया कि काशी को प्रथम पिंड कहते हैं. सबसे पहले लोग काशी में पिशाच मोचन कुंड पर आकर पिंड दान करते हैं. उसके बाद गया और फिर अंत में केदारनाथ जी जाते हैं, जहां पर वे आखिरी पिंडदान करते हैं. उन्होंने बताया कि इस कुंड में स्नान करने से तमाम तरीके की ऊपरी बाधाओं से मुक्ति मिलती है. उसके साथ ही यहां एक प्राचीन पीपल का वृक्ष भी है, जिसमें पिशाच को बैठाया जाता है.