वाराणसी: चाइनीज सामानों का बहिष्कार इन दिनों तेजी से चल रहा है. चाइना से आए कोरोना वायरस की वजह से हमारे देश को खुद के पैरों पर खड़ा होने का बड़ा कारण भी मिला है. वहीं भारत में चाइनीज ऐप्स पर प्रतिबंध लगाने के बाद चाइना से आने वाले प्रोडक्ट की जगह इंडिया में बनने वाले प्रोडक्ट्स के इस्तेमाल पर भी जोर देना शुरू कर दिया गया है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार लोगों से वोकल फॉर लोकल होने की अपील कर रहे हैं.
लकड़ी खिलौना व्यापारियों ने व्यापार में बढ़ोतरी की जताई उम्मीद. बीते दिनों प्रधानमंत्री ने मन की बात कार्यक्रम में खिलौने के इस्तेमाल पर चर्चा करते हुए काशी में तैयार होने वाले लकड़ी के खिलौनों के इस्तेमाल पर जोर देने की बात कही. इसके बाद बनारस में लकड़ी खिलौना कारोबार से जुड़े कारीगरों और व्यापारियों में खुशी की लहर है. हर कोई अब यह उम्मीद जता रहा है कि प्रधानमंत्री की इस अपील के बाद न सिर्फ उनके दिन बदलेंगे, बल्कि चाइना को टक्कर देने के लिए वह मजबूती के साथ आगे बढ़ेंगे.
पीएम की अपील के बाद वापस लौट रहे कारीगर
अभी बीते दिनों लघु उद्योग भारती की बैठक में भी लकड़ी के खिलौना कारोबार और इससे जुड़े कारोबारियों को प्रोत्साहित करने की पहल को लेकर प्रधानमंत्री की अपील के बाद इस उद्योग के फिर से उठने की उम्मीद जताई गई है. नेशनल अवार्ड पाने वाले लकड़ी खिलौना उद्योग से जुड़े रामेश्वर सिंह भी बेहद खुश हैं. उनका कहना है लॉकडाउन के दौरान बहुत से कारीगरों ने लकड़ी खिलौना बनाना बंद कर दिया, लेकिन जब प्रधानमंत्री ने इस दिशा में पहल की तो फिर से लोग अब इस कारोबार में लौट रहे हैं.
वाराणसी में लगभग 1500 से ज्यादा परिवार इस वक्त लकड़ी खिलौना बनाने का काम करते हैं. खोजवा इलाके का कश्मीरीगंज मोहल्ला न सिर्फ लकड़ी का खिलौना बनाने के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां तैयार होने वाला लकड़ी का सिंदूरदान, लकड़ी के खिलौने और सजावटी सामान सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि इंडोनेशिया, मलेशिया, चाइना, जापान और अमेरिका तक जाते हैं. रामेश्वर सिंह का कहना है कि प्रधानमंत्री की इस अपील के बाद निश्चित तौर पर 1500 से ज्यादा परिवारों के लिए राहत की बात होगी और हम चाइना को मजबूती के साथ टक्कर भी दे पाएंगे.
रामेश्वर सिंह ने बताया कि 2000 से 2010 का काल चाइना के खिलौनों का हुआ करता था. बैटरी से चलने वाले इलेक्ट्रॉनिक चाइनीज खिलौनों की गजब की डिमांड थी, लेकिन धीरे-धीरे लोगों को समझ में आने लगा कि इसमें इस्तेमाल होने वाले रंग जहरीले हैं और प्लास्टिक भी जानलेवा है. इसलिए धीरे-धीरे लोगों ने इससे दूरी बनाई. वर्ष 2013-14 में जब लकड़ी के खिलौनों को जीआई टैग मिला तो उम्मीद और जग गई और भारत में धीरे-धीरे कारोबार ने गति पकड़ी. उन्होंने बताया कि वह खुद 2019 में भारत सरकार के प्लान के तहत चाइना में जाकर 10 दिनों तक लकड़ी के खिलौनों को प्रमोट किया. हालात कुछ बिगड़े जरूर थे, लेकिन अब उम्मीद है कि सब कुछ बदलेगा.
हाईटेक टेक्नॉलॉजी के साथ अपडेट होने की जरूरत
लकड़ी के खिलौने बनाने के लिए सामने आने वाली समस्याओं के बारे में भी रामेश्वर सिंह ने अवगत कराया. रामेश्वर सिंह का कहना है कि हम चाइना के सामानों को टक्कर दे सकते हैं, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि चाइना जैसी हाईटेक टेक्नॉलॉजी के साथ इस कारोबार को आगे बढ़ाया जाए. मशीनों से लेकर हमें मिलने वाली बिजली आदि सारी चीजें अपडेट होनी चाहिए. बिजली दरों में सब्सिडी मिलनी चाहिए, एजुकेशन का स्तर सुधारा जाना चाहिए. ताकि लकड़ी खिलौना कारीगर अपने स्तर पर खिलौने से सपोर्ट कर सकें और बिचौलियों की भूमिका खत्म होगी तो यह उद्योग और तेजी से आगे बढ़ेगा.
वहीं लकड़ी खिलौना बनाने वाले कारीगर भी बेहद खुश हैं. खिलौना कारीगर रामू का कहना है कि अब यह जरूरी है कि हर व्यक्ति के घर में कम से कम दो लकड़ी के खिलौने का सजावटी सामान होगा तो जरूर कारीगरों को मजबूती मिलेगी और उन्हें काम करने का मन भी करेगा. वहीं कारोबार से जुड़े व्यापारी राजकुमार ने बताया कि खिलौनो को पारंपरिक तरीके से आगे बढ़कर अब नए डिजाइन और नए सजावटी चीजों के साथ तैयार करवाया जा रहा है. प्रधानमंत्री की अपील के बाद अब उम्मीद है कि तेजी से ऑर्डर आएंगे. फिलहाल दिल्ली, मुंबई और आसपास के कई राज्यों से ऑर्डर बड़ी संख्या में आएं ऐसी उम्मीद है, सरकार इस पर ध्यान दे.
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