वाराणसी: आज 'विश्व धरोहर दिवस' (World Heritage Day 2021) है, जिसे हर साल 18 अप्रैल को मनाया जाता है. इसे मनाने की पीछे का मुख्य उद्देश्य यह है कि लोग अपनी धरोहर को लेकर जागरूक रहें और उसकी सुरक्षा कर सकें. पूरे विश्व में मानव सभ्यता से जुड़े ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण के प्रति जागरूकता लाना बेहद जरूरी है, इसलिए भी ये दिन बहुत खास होता है.
पुराणों से प्राचीन काशी
शिव की नगरी काशी ने अपने आप में ऐसे धरोहरों को समेट रखा है, जो पुराणों से भी प्राचीन हैं. काशी अपने आप में धरोहरों और विरासतों का एक शहर है. गंगा तट पर बसे बनारस शहर को 'भारत का हेरिटेज' भी कहा जाता है. पुराणों की मानें तो 11वीं पीढ़ी के राजा काश के नाम पर काशी बसी तो दूसरी ओर वाराणसी नाम पड़ने के बारे में अथर्ववेद में कहा गया है.
काशी को कहते हैं 'मंदिरों का शहर.' बनारस के ऐतिहासिकता को लेकर प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन ने कहा है कि बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से भी पुराना है, किंवदंतियों से भी प्राचीन है. जब इन सबको एकत्र कर दिया जाए तो उस संग्रह से भी पुराना बनारस शहर है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, काशी नगर की स्थापना भगवान शिव ने 5 हजार वर्ष पूर्व की थी. यह हिंदुओं के पवित्र तीर्थों में से एक है. विभिन्न पौराणिक ग्रंथ, स्कंद पुराण, रामायण, महाभारत, प्राचीनतम वेद, ऋग्वेद में इस नगर का उल्लेख मिलता है. इसके साथ ही ऐतिहासिक बनारस शहर में कई अमूल्य धरोहर व पौराणिक स्थल भी मौजूद हैं.
ऐतिहासिक इमारतें काशी की हैं जान. 23000 से ज्यादा हैं मंदिर
बनारस में लगभग 23 हजार मंदिरों में कुछ मंदिरों का विशेष स्थान है. जिनमें काशी विश्वनाथ मंदिर, कर्मदेश्वर महादेव मंदिर, सुमेरू दुर्गा मंदिर, पंचकोशी मंदिर, वाराणसी के गंगा घाट किनारों पर बने हुए मंदिर इत्यादि शामिल हैं. इनकी अलग ऐतिहासिक कहानी है. यदि काशी विश्वनाथ मंदिर की बात की जाए तो यह हिंदू धर्म का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है. ज्ञानवापी मस्जिद है, जो गंगा यमुना तहजीब का संदेश देता है.
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काशी के घाटों का है अलग ठाठ
यदि वाराणसी के घाटों की बात करें तो यहां के घाटों का भी अपना एक अलग ठाठ है. वाराणसी के अधिकतर घाट अलग-अलग राजाओं द्वारा बनवाए गए हैं. इनमें मराठा, संध्या, होलकर, वंश ले और पेशवा शामिल हैं. इन घाटों के कारण ही बनारस की सुबह की खूबसूरती देखते ही बनती है. वहीं देर शाम में विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती बड़ी सहजता से सभी को अपनी ओर आकर्षित करती है.
वाराणसी के गंगा तट पर अनेक सुंदर घाट बने हुए हैं. ये सभी घाट किसी न किसी धार्मिक और पौरौणिक कथा से संबंधित हैं. वाराणसी में कुल 84 घाट हैं, जिनमें से पांच घाट बहुत ही पवित्र माने जाते हैं. इन्हें सामूहिक रूप से 'पंचतीर्थ' कहा जाता है. ये हैं असी घाट, दशाश्वमेध घाट, आदिकेशव घाट, पंचगंगा घाट और मणिकर्णिका घाट. इनमें से दश्वाश्वमेध घाट, काशी के सबसे प्रसिद्ध घाटों में से माना जाता है, यह श्मशान के पास स्थित है. हिंदू धर्म के लोग इसे परम पवित्र मानते हैं. दश्वाश्वमेध घाट गोदौलिया से गंगा जाने वाले मार्ग के अंतिम छोर पर पड़ता है.
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धरोहरों के लिहाज से अनमोल है बनारस
क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी सुभाष यादव ने बताया कि वाराणसी धरोहरों के लिहाज से बेहद अनमोल है. यहां पर कई सारे पुरातत्व स्थल व धरोहर हैं. वाराणसी में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की 19 साइटें हैं. इसमें अघोर पीठ, आलमगीर मस्जिद, अशोक स्तंभ, भारत कला भवन, भारत माता मंदिर, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ तिब्बतन स्टडीज, धन्वंतरी मंदिर, दुर्गा मंदिर, जंतर मंतर, काशी विश्वनाथ, संकट मोचन, हनुमान मंदिर, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, बीएचयू कैंपस स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर, रामनगर किला, बनारस के घाट, तुलसी मानस मंदिर यह सब बेहद ही ऐतिहासिक है.
प्राचीन विरासतें भी हैं मौजूद
उन्होंने बताया कि काशी को ऐतिहासिक स्थलों के नाम से भी जाना जाता है. वाराणसी में राजघाट, अकथा, पंचकोशी, सरस्वती फाटक तमाम ऐसे पुराने मोहल्ले हैं, जिससे यह प्रमाणित होता है कि काशी का इतिहास बेहद ही पुराना है. इसके साथ ही यदि प्राचीन ऐतिहासिक विरासत की बात की जाए तो सारनाथ, गुरुधाम मंदिर, रामनगर किला, चेत सिंह किला, मानमहल बेहद अलौकिक है. सारनाथ में जहां बौद्ध धर्म की छवि व पुराना इतिहास दिखाई देता है तो वहीं रामनगर किला में बनारस की 18वीं शताब्दी की एक अनोखी झलक दिखती है. वाराणसी का रामनगर किला और उसका संग्रहालय अब बनारस के राजाओं की ऐतिहासिक धरोहर के रूप में संरक्षित किया गया है.
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हृदय योजना से संरक्षित हो रहे ऐतिहासिक धरोहर
वर्तमान समय में सरकार काशी के ऐतिहासिक धरोहर व स्मारकों को संरक्षित और संवर्धित करने का काम कर रही है. 'हृदय योजना' के तहत वाराणसी के आस-पास के इलाकों में लगभग 24 करोड़ की परियोजना संचालित हो रही है. जिससे काशी नगरी के ऐतिहासिकता को संरक्षित किया जा सके और आने वाली पीढ़ी इन धरोहरों से रूबरू हो सके.