वाराणसीः बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का देश की आजादी के आंदोलन से लेकर हिंदी के विकास तक में बड़ा योगदान रहा है. पूरा देश हिंदी दिवस मना रहा है. ऐसे में हिंदी का जो विकसित रूप आज उपस्थित है. इसमें विश्वविद्यालय का अति महत्वपूर्ण योगदान है. महामना की बगिया के हिंदी भवन और ऐतिहासिक स्थल है, जहां पर हिंदी के छात्रों के लिए पहली बार पाठ्यक्रम तैयार हुआ था.
बात 19वीं शताब्दी की है. जब काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय ने 60 हजार लोगों से हस्ताक्षर करवा कर के, उस समय के गवर्नर जनरल मैकडॉनल्ड को एक प्रतिवेदन दिया था. जिसके फलस्वरूप 1900 ई. में कचहरी में हिंदी भाषा को मान्यता दी गई. प्रोफेसर श्री प्रकाश ने बताया हिंदी विभाग की स्थापना 1920 में की गई थी. हिंदी विभाग को परास्नातक की डिग्री देने (पोस्ट ग्रेजुएट) की मान्यता दी गई.
प्रोफेसर शिव प्रकाश शुक्ला बताते हैं कि, काशी हिंदू विश्वविद्यालय का हिंदी विभाग देश का पहला विभाग है, जिसने पाठ्यक्रम तैयार किया था. उसके साथ ही 1920 में हिंदी में पोस्ट ग्रेजुएशन डिग्री देने का काम किया. इससे पहले कोलकाता में 1918 में अनिवार्य हिंदी की पढ़ाई शुरू हो चुकी थी, लेकिन मुकम्मल हिंदी विभाग के रूप में काशी हिंदू विश्वविद्यालय का हिंदी विभाग रहा. बता दें कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का हिंदी विभाग अपना शताब्दी वर्ष भी मना रहा है.
अंग्रेजी हटाओ आंदोलन में भी लिया था हिस्सा
प्रोफेसर श्री प्रकाश शुक्ला ने बताया कि 1967 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र नेताओं ने हिंदी को लेकर एक बहुत बड़ा आंदोलन किया. इस आंदोलन की मांग थी कि, अंग्रेजी के समांतर हिंदी को विकसित किया जाए. अंग्रेजी को हटा करके भारतीय संविधान में हिंदी को राजभाषा के रूप में मान्यता दी जाए.
आज भी मौजूद है स्मृति
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी के विकास और महान विभूतियों की तस्वीरें भारत कला भवन में संजोकर रखी गई है. इसके साथ ही हिंदी विभाग में लगभग 90 वर्ष पुरानी वह कुर्सी आज भी रखी हुई है. जिस पर हिंदी के लिए जीवन भर संघर्ष करने वाले आचार्य रामचंद्र शुक्ल बैठा करते थे. हिंदी विभाग के पूरा छात्रों में नामवर सिंह, लेखक केदारनाथ सिंह, रविंद्र भ्रमर, रविंद्र नाथ श्रीवास्तव, राम दशरथ मिश्र, विश्वनाथ त्रिपाठी जैसे लोग हैं. जिन्होंने हिंदी जगत में ऐतिहासिक योगदान दिया. अपने नवाचारी दृष्टिकोण, परिवर्तनशील, संकल्प और अभिनव के रचनात्मक योगदान के कारण आज भी देश का यह सबसे बड़ा और अग्रणी हिंदी विभाग है.