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Hemp clothes : महाशिवरात्रि पर काशी में तैयार हुए भांग के कपड़े, देशी संग विदेशियों को आ रहे पसंद - भांग की खेती

महादेव की नगरी काशी में भांग को सिर्फ खाया ही नहीं जाता, बल्कि पहना भी जाता है. ये सच है और इस सच की तस्वीर इन दिनों काशी के बाजार में नजर आ रही है, जहां महाशिवरात्रि के मौके पर देशी विदेशी सभी लोगो भांग से बने कपड़े को खूब पसंद कर रहे हैं.

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भांग के कपड़े

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Published : Feb 17, 2023, 6:03 PM IST

वाराणसी में भांग से बने कपड़ों की बढ़ी मांग.

वाराणसीः शिव की नगरी काशी में हर रंग अपने आप में अद्भुत और विचित्र है. ऐसे में बात यदि शिव की पसंदीदा भांग की कर लें तो भांग के भी यहां पर अलग-अलग रूप नजर आते हैं. इन्हीं रूपों में एक रूप भांग के बने कपड़ों का है, जो देशी-विदेशी सभी सैलानी व लोगों को खूब पसंद आ रहा हैं. उत्तरखंड में उगाई जाने वाली इस भांग से वहां की महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं साथ ही भांग से बने कपड़े पहनने से त्वचा संबंधी रोगों भी नहीं होंगे. वहीं, इससे उत्तराखंड और काशी के संबंध में भी प्रगाढ़ता आएगी.

काशी में भांग से बने कपड़े आकर्षण का केंद्र बने
बता दें कि, इन कपड़ों को उतराखंड में तैयार किया जाता है. अल्मोड़ा जिले के हॉल बाग ब्लॉक के कुराली गांव में इसकी खेती होती है. वहां के कारीगरों के द्वारा इससे अलग-अलग उत्पाद को तैयार किया जाता है. भांग से बनने वाले कपड़ों की खासियत यह है कि यह पूरी तरीके से वातावरण के अनुकूल व आरामदायक है. यही वजह है कि महाशिवरात्रि के मौके पर बाजार में इन कपड़ों की देशी से लेकर विदेशी नागरिक हर कोई इस कपड़े को पसंद कर रहा है.

कपड़ा खरीदने आए दो विदेशी नागरिक मैरी और जॉन ने बताया कि, यह कपड़ा बेहद आरामदायक हैं. वह इसे गर्मियों के दिन में सहजता से पहन सकते हैं. यह न सिर्फ त्वचा को एलर्जी से सुरक्षित रखता है, बल्कि यह पर्यावरण को भी सुरक्षित रखता है. उन्होंने बताया कि कॉटन की तुलना में भांग के कपड़े उन्हें ज्यादा सेहतमंद व आरामदायक लग रहे हैं.

ऐसे बनते हैं भांग के कपड़े
वर्तमान में उत्तराखंड में इन कपड़ों को तैयार करने में लगभग 1,000 कारीगर जुटे हुए हैं. इस बारे में कपड़ा तैयार कराने वाले व्यापारी नरेंद्र चौहान बताया कि यह कपड़े पूरी तरह से भांग के रेशे से बनाए जाते हैं. इसे बनाने की प्रक्रिया बेहद जटिल होती है. सबसे पहले भांग की लकड़ी को 2 हफ्ते तक पानी में भिगोया जाता है, उसके बाद इसे पीटा जाता है.

पीटने के बाद इसकी रुई बनाई जाती है और रुई बनाने के बाद रेशे निकाले जाते हैं. फिर उस रेशे से कपड़े की बुनाई होती है. उन्होंने बताया कि कपड़ों को बुनने से लेकर उसे डिजाइन करने व सिलाई करने का काम गांव की महिला व पुरुषों के द्वारा किया जाता है.

ये कपड़े कैंसर से रखते हैं सुरक्षित
उन्होंने बताया कि इस धागे से इंडो वेस्टर्न हर प्रकार के डिजाइनर कपड़े तैयार किए जाते हैं. इन कपड़ों की खास बात यह है कि यह पर्यावरण के लिए बेहद लाभदायक होते हैं. इसके फाइबर में कैंसर रोधी तत्व पाए जाते हैं, जिस वजह से यह सेहत और त्वचा को सुरक्षित रखता है. उन्होंने बताया कि बाजार में बढ़ती डिमांड को देखते हुए अब इन धागों से महिलाओं की ज्वेलरी भी तैयार की जा रही है.

महाशिवरात्रि पर बाजार में भारी डिमांड
बाजार में डिमांड के बाबत उन्होंने बताया कि महाशिवरात्रि के मौके पर वाराणसी में इन कपड़ों की काफी डिमांड दिखाई दे रही है. यहां के लोग इसे खासा पसंद कर रहे हैं. बड़ी बात यह है कि विदेशों में भी इसकी खासा डिमांड है.अलग-अलग जगहों से इसके आर्डर आ रहे हैं. हमारे यहां इस समय इन कपड़ों को खरीदने के लिए लोगों की खासी भीड़ है. उन्होंने बताया कि इन कपड़ों की कीमत छह सौ से लेकर 10,000 रुपये तक है.

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