वाराणसी: सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले को अब जिला जज न्यायालय में सुनवाई के लिए कहा है. इस आदेश के बाद अब 23 मई को सिविल जज सीनियर डिवीजन के कोर्ट में होने वाली सुनवाई जिला जज के यहां शुरू होगी. इसे लेकर कानूनी दांव-पेंच कि यदि बात करें तो आज इस पूरे मुकदमे की फाइल और समस्त वीडियोग्राफी सबूत के साथ कमीशन कार्यवाही की रिपोर्ट फाइल तैयार करने के बाद सिविल जज सीनियर डिवीजन के कोर्ट के तरफ से जिला जज कोर्ट को हैंडओवर कर दी जाएगी. जिसके बाद सोमवार को जिला जज के यहां इस पूरे दस्तावेज को सूचीबद्ध करते हुए इस पर सुनवाई शुरू की जाएगी. वहीं इस पूरे मामले में वादी पक्ष के वकील सुभाष नंदन चतुर्वेदी ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए कानूनी बिंदुओं को स्पष्ट किया.
ज्ञानवापी मामले की 23 को होगी सुनवाई, जान लीजिए कानूनी दांव-पेंच के बारे में
वाराणसी के ज्ञानवापी मामले की सुनवाई 23 मई को जिला जज कोर्ट में होगी. चलिए जानते हैं इस केस से जुड़े अहम कानूनी दांव-पेंच के बारे में.
अगस्त 2021 में राखी सिंह समेत चार अन्य महिलाओं की तरफ से श्रृंगार गौरी के नियमित दर्शन की याचिका दायर की गई थी. सीनियर जज सिविल डिवीजन के न्यायालय में इसकी सुनवाई शुरू हुई और सीनियर जज सिविल डिविजन रवि कुमार दिवाकर ने ताबड़तोड़ 8 महीने में ही कई ऐसे फैसले दे डाले. जिसने सभी को अचरज में डाल दिया.
इस बारे में वादी पक्ष के वकील सुभाष नंदन चतुर्वेदी ने बताया कि इस पूरे प्रकरण में अब न्यायिक तौर पर यदि बात की जाए तो जिला जज सोमवार से इस मामले में सुनवाई शुरू करेंगे. इस मामले में अभी कुछ दिन लग सकता है, क्योंकि कानूनी दांव पेंच के मुताबिक जिला जज इस पूरे प्रकरण में इंडेक्स तैयार करने के बाद दोनों पक्षों को सुनेंगे.
सुनने के बाद तारीखों के साथ ही आगे की स्थिति स्पष्ट होती जाएगी. उनका कहना है कि हमारा दावा शुरू से मजबूत रहा है और कमीशन की रिपोर्ट दाखिल होने के बाद दावा और भी मजबूत हो गया है. उनका कहना था कि मुस्लिम पक्ष वरशिप ऐड की बात करके मामले को खारिज करवाना चाह रहा है, वह 1947 के पहले कि इस स्तर पर लागू ही नहीं होता है, क्योंकि वरशिप एक्ट के मुताबिक 1947 के बाद जो पूजा स्थल जिस स्थिति में था उस स्थिति में रहने के आदेश हैं, लेकिन मुस्लिम के पास 1947 के पहले इस स्ट्रक्चर को लेकर यह साफ करें कि यह मस्जिद थी या नहीं थी. जब यह साफ ही नहीं है कि उक्त स्थान पर मस्जिद था या मंदिर तो इसे लेकर कुछ भी नियम या कानून इस पर लागू ही नहीं होते हैं.
सुभाष चंद्र चतुर्वेदी का कहना है कि प्रमाण इतने हैं कि जिसे कोर्ट भी खारिज नहीं कर सकता है. अंदर पूजा की अनुमति के लिए जो याचिका हमने दायर की थी उसकी वीडियोग्राफी के दौरान कई ऐसे साक्ष्य मिले हैं जो इसे मंदिर साबित कर रहे हैं. हमने मांग रखी है, अंदर दीवार हटाकर वीडियोग्राफी करवाई जाए, क्योंकि जिस स्थान पर शिवलिंग मिलने का हम दावा कर रहे हैं. उसके ठीक नीचे मंदिर के शिखर और कई अन्य चीजों के प्रमाण भी मौजूद हैं. जिसको स्पष्ट करना अति आवश्यक है इसकी सुनवाई जिला जज के यहां शुरू हो रही है और जल्द ही सब साफ हो जाएगा.
वहीं मुस्लिम पक्ष ने कैमरे पर तो नहीं लेकिन ऑफ द कैमरा बहुत सी बातें की. मुस्लिम पक्ष के वकील तोहिद खान का कहना है कि हमें इस बात की बेहद खुशी है कि अब जिला जज के यहां इस पूरे मामले की सुनवाई होगी और 7 (11) के तहत 1947 के वरशिप एक्ट के प्रावधानों के अनुसार इस पर कोर्ट निश्चित तौर पर ध्यान देगा. मामला यह नहीं है कि अंदर क्या है, क्या नहीं है लेकिन इस पर नियमित तौर पर सुनवाई शुरू होगी, तो बहुत जल्द ही साफ हो जाएगा कि कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ.
वहीं, इस पूरे मामले पर ईटीवी भारत से वकील कमिश्नर विशाल सिंह ने भी बातचीत की. उन्होंने साफ तौर पर बताया कि मैंने अपनी रिपोर्ट में यह लिखा ही नहीं है नहीं है कि अंदर शिवलिंग मिला है. मैंने लिखा है कि वजूखाने में एक काला पत्थर मिला है. जिसको हिंदू पक्ष शिवलिंग और मुस्लिम पक्ष फव्वारा बता रहा है इसकी क्या सच्चाई है यह तो जांच के बाद साफ होगा. उन्होंने पूर्व वकील कमिश्नर अजय मिश्रा की तरफ से उन पर लगाए गए आरोपों पर भी जवाब दिया उनका कहना था कि मैंने किसी की शिकायत नहीं की थी. न्यायालय को जो सही लगा वह किया है मेरे द्वारा रिपोर्ट फाइल की जा चुकी है रिपोर्ट में जो चीजें हैं. वह सभी के सामने है मैंने कोई भी गलत बात नहीं कही है ना रिपोर्ट में शामिल की है, जो वादी प्रतिवादी ने कहा उसके आधार पर कार्रवाई करते हुए मैंने अपनी रिपोर्ट न्यायालय को सौंपी है.
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