वाराणसी: कबीर इस संसार को समझाऊ कै बार, पूंछ जो पकड़ै भेड़ को उतरन चाहे पर. अंधविश्वास और रूढ़िवादी बातों में जकड़े इस समाज को अपने इन दोहों के माध्यम से कबीर ने जगाने का काम किया. जिस कबीर को आज पूरा विश्व जानना चाहता है. उस कबीर को काशी ने ही कबीर बनाया. बनारस के लहरतारा इलाके के एक तालाब के निकट कबीर का प्राकट्य माना जाता है, लेकिन इसे दुर्भाग्य कहें या नजरअंदाजी जिसने आज तक कबीरदास के उस पवित्र स्थान के हालात को नहीं सुधरने दिया, जिसे कबीर पंथी बेहद पवित्र मानते हैं.
कबीर के प्राकट्य स्थल लहरतारा तालाब से लेकर उनके स्मारक तक के हालात सैकड़ों साल में नहीं बदले हैं. सरकारें आई और चली गई, लेकिन स्थितियां जस की तस बनी हुई हैं. हालांकि अब उम्मीद जगी है और सरकार पर्यटन मैप पर कबीर साहब से जुड़े स्थानों को लाने का प्रयास कर रही है. जिसका प्लान प्रशासनिक स्तर पर तैयार कर सरकार को भेजा भी जा चुका है और माना जा रहा है प्रारंभिक स्टेज में तीन करोड़ों रुपये से ज्यादा की लागत से कबीर से जुड़ी यादों को संजोकर उनका संरक्षण किया जा सकेगा.
कब बदलेगी सूरत है इंतजार
लगभग 600 साल से भी पहले काशी के लहरतारा इलाके से ही कबीर पंथ की शुरुआत मानी जाती है. लहरतारा तालाब के पास कबीर का प्राकट्य माना जाता है और इसी लहरतारा तालाब से कबीर पंथ की शुरुआत भी मानी जाती है. सैकड़ों साल पहले 15 एकड़ से ज्यादा एरिया में फैला यह तालाब आबादी के साथ सिकुड़ता जा रहा है. वर्तमान समय की बात करें तो तालाब का कुछ हिस्सा ही पूरी तरह से मुक्त दिखाई देता है. चारों तरफ घर बन चुके हैं और तालाब किनारे भी अतिक्रमण इस कदर है कि पूछिए मत.
तालाब में है गंदगी का बोलबाला
तालाब तो आपको दिखाई ही नहीं देगा क्योंकि गंदगी और जलकुंभी ने इस पर कब्जा जमा रखा है. बदहाली की हालत झेल रहा यह तालाब न सिर्फ कबीरसाहब की स्मृतियों को धूमिल कर रहा है बल्कि दूर-दूर से आने वाले कबीरपंथियों को भी निराश करता है. कबीरपंथियों का कहना है की कितनी सरकारें आई और कितनी गई, लेकिन कबीर से जुड़ी यह सबसे महत्वपूर्ण स्मारक और स्थान आज तक नहीं बदल सके. तालाब बदहाली की हालत में जस का तस पड़ा है और कबीर के स्मारक अपने जीणोद्धार का इंतजार कर रही है. इसी स्थान पर कबीर से जुड़ी तमाम चीजें मिलेंगी. वह तालाब जहां कबीर का प्राकट्य माना जाता है तो अंदर वह स्थान भी मौजूद है. जहां कबीर को गोद में उठाकर जुलाहा दंपत्ति नीरू और नीमा ने उन्हें जमीन पर रखकर थोड़ा देर विश्राम किया था. इतना ही नहीं अंदर कबीर स्मारक के तौर पर एक मंदिर भी है जो सिर्फ एक ढांचे के रूप में खड़ा है. सबसे बड़ी बात यह है कि साल के 365 दिन दूर दूर से कबीर पंथ को मानने वाले लोग इस स्थान पर आते हैं और इस पवित्र स्थल पर पूरी श्रद्धा से सिर झुकाते हैं, लेकिन अब तक कबीर को खुद इंतजार है किसी चमत्कार का ताकि उनकी स्मृतियों को सहेज कर उन्हें भव्य रुप दिया जा सके.