वाराणसी :शादियों का सीजन हो और बनारसी साड़ियों का जिक्र न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता है. इन साड़ियों को पहनकर हर महिला खूबसूरत दिखना चाहती है. खास मौके पर ये साड़ियां अलग तरह का फील देती हैं. देश के अलावा विदेश में भी बनारसी साड़ियों की काफी डिमांड रहती है. पूरी दुनिया से लोग इससी खरीदारी के लिए पहुंचते हैं. कई बार लोगों को असली और नकली साड़ी की पहचान नहीं हो पाती है, इससे वे ठग लिए जाते हैं. ऐसे में ये जानना बेहद जरूरी है कि कौन से बाजार में ब्रांडेड बनारसी साड़ियां अच्छी और सस्ती कीमतों पर मिल सकती है. इसके अलावा असली और नकली की पहचान कैसे हो सकती है, इसकी भी जानकारी होना आवश्यक है.
शादी-विवाह के लिए खास मानी जाती हैं बनारसी साड़ियां :बनारस की साड़ी का उद्योग विश्वभर में विख्यात है. यहां पर बनने वाले बनारसी वस्त्रों की मांग दुनियाभर के कई देशों में होती है. इतना ही नहीं शादी-विवाह में गिफ्ट देने के लिए भी बनारसी साड़ियां बेस्ट मानी जाती हैं. ऐसे में लोग न सिर्फ अपने पहनने के लिए शादी-विवाह के आयोजनों में बनारसी साड़ियां खरीदते हैं बल्कि दुल्हन के लिए भी शादी के जोड़ों में इसे शामिल किया जाता है. ऐसे में बनारस आने वाले लोगों को बनारसी साड़ियों की पहचान भी होना बेहद जरूरी हो जाता है. कौन सी बनारसी साड़ी असली है और कौन सी नकली है, जो बनारस के नाम पर बेची जा रही है. ग्राहकों को इसका पता होना जरूरी है कि बनारसी साड़ियां कहां से खरीदें और किस दाम में साड़ियां मिलेंगी.
भगवान राम भी पहनते थे बनारस के बुने वस्त्र :वाराणसी वस्त्र उद्योग एसोसिएशन के उपाध्यक्ष राजन बहल बताते हैं कि 'बनारसी साड़ियों का कोई इतिहास तो नहीं मिलता, लेकिन कहा जाता है कि भगवा रामचंद्र जी भी बनारस के बुने हुए रेशमी वस्त्र पहनते थे. भगवान कृष्ण जो पीतांबर पहनते थे, वह भी बनारस का बुना हुआ रेशमी वस्त्र होता था. कबीरदास भी जुलाहा थे. वे बुनकारी करते थे. वह बनारस के ही थे. ऐसे में यह नहीं बताया जा सकता है कि बनारसी साड़ियां कब से बनती आ रहीं हैं. कहा जा सकता है कि अनादि काल से बनारसी वस्त्र बनते आ रहे हैं. बनारसी साड़ियां देशभर में जाती हैं. विश्व में भी ये साड़ियां कई जगहों पर प्रचलित हैं. कनाडा, USA के साथ ही मुस्लिम आबादी वाले देशों में बनारस के कपड़े अधिक जाते हैं'.
15-20 लाख लोगों को मिल रहा रोजगार :उपाध्यक्ष बताते हैं कि, बनारसी वस्त्रों का लगभग 7000 करोड़ रुपये का सालाना टर्नओवर है. बनारस और बनारस के आसपास के शहर आजमगढ़, भदोही आदि को मिलाकर यहां से करीब 15 से 20 लाख लोग इससे अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्राप्त करते हैं. अप्रत्यक्ष की बात करें तो इसमें रंगाई, कढ़ाई, तानी बुनने और तनने का काम है. ये सब जोड़कर देखा जाए तो इससे बहुत बड़ी मात्रा में लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलता है'. वहीं साड़ियों की कीमत की बात पर उन्होंने कहा, बनारस की बनी हुई साड़ी 500 से लेकर 3 लाख रुपये तक की होती हैं'. ऐसे में बनारसी साड़ी से जुड़े लोगों का काबोबार अच्छा चल रहा है.
यहां से खरीद सकते हैं असली बनारसी साड़ी :राजन बहल बताते हैं कि 'बनारस की जरी आदि की कारीगरी वाली साड़ियां 3-3 लाख रुपये तक की बिकती हैं. ओरिजिनल बनारसी साड़ियां कई दुकानों पर मिल जाएंगी. होलसेल का बनारसी कारोबार होता है. रिटेल वाले सूरत के माल को भी बनारसी साड़ी कहकर बेंच दे रहे हैं'. वे बताते हैं कि 'असली-नकली की पहचान उसको जलाने से भी हो सकती है. अगर ग्राहक साड़ियां खरीदना चाहता है तो उसे बनारस से होलसेल मार्केट में साड़ियां खरीदनी होंगी. होलसेल वाले इस मामले में झूठ नहीं बोलते हैं. ग्राहकों को इतना विश्वास करना होगा'. बता दें कि बनारस में मणिकर्णिका, दशाश्वमेध, अस्सी घाट के आस-पास भी साड़ियों की दुकानें हैं, लेकिन असली-नकली में पहचान मुश्किल होगी.