वाराणसी :धर्म और अध्यात्म का शहर बनारस, जहां पर मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति की बातें धर्म शास्त्रों में कहीं गई है. ऐसी मान्यता है कि इस नगरी में मृत्यु उपरांत मोक्ष प्राप्त करने की चाह रखने वाले हर प्राणी को भगवान शिव खुद तारक मंत्र देते हैं. इसी इच्छा के लिए लोग विश्व भर के कोने कोने से बनारस सिर्फ मृत्यु के लिए पहुंचते हैं. जो लोग काशी में मृत्यु हासिल करने के लिए नहीं आ पाते उनके परिजन महाश्मशान मणिकर्णिका पर उनके दाह संस्कार के लिए पहुंचते हैं. मणिकर्णिका घाट पर प्रतिदिन 100 से ज्यादा शवों का दाह संस्कार होता है और यहां जलने वाली चिताओं की आग कभी ठंडी नहीं होती.
काशी में चिता की राख से इस तरह पेट पाल रहे लोग. मणिकर्णिका घाट पर अनवरत 24 घंटे यहां चिताएं धधकती रहती हैं. मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट धधकती चिताओं के बीच जब शरीर राख में तब्दील हो जाता है और मृत्यु के बाद जीवन और शरीर दोनों का अंत माना जाता है. तब इसी राख में लोग जीवन की तलाश करते हैं. इन दोनों घाटों पर कई लोग चिताओं की राख में अपने और परिवार का पेट पालने की खातिर सोने-चांदी तलाशते हैं.
गंगा में चिता की राख को छानने वाले मिथुन रोज कम से कम 1000 रुपये की ज्वैलरी ढूंढ लेते हैं . कई बार इससे अधिक रकम का गहना भी मिल जाता है. वाराणसी में रहने वाले सैंकड़ों ऐसे परिवार हैं, जिनका गुजारा चिताओं की इस राख में मिलने वाले सोने-चांदी और जवाहरात से चलता है. ऐसे में परिवार के लोग चिता ठंडी होने के बाद राख में छिपे सोने, चांदी, हीरे जवाहरात की तलाश करते हैं. बनारस में चौधरी समाज और नाविक समाज के कई लोग इस काम में इंवॉल्व हैं. कई पीढ़ियों से चिताओं में उम्मीद तलाशने वाले मिथुन चौधरी ने बताया कि जब काशी में हरिश्चंद्र घाट की स्थापना हुई, तब से लेकर अब तक उनके खानदान की कई पीढ़ियां इस काम को कर रही हैं. चाहे गर्मी हो चाहे ठंडी, सुबह 8 बजे से लेकर शाम 4 बजे तक अलग-अलग शिफ्ट में उनका परिवार चिता की राख में पेट पालने के लिए महंगे आभूषण और रत्न तलाशते हैं.
इसका तरीका भी बड़ा अनूठा और अलग है. गंगा किनारे काले-काले कोयले के बीच हाथ में एक लोहे की कढ़ाई लेकर यह लोग घंटों राख को पानी में छान छान कर उससे सोना-चांदी और महंगे रत्न की तलाश करते हैं. मिथुन ने बताया कि वह पहले पैर से गंगा के अंदर जमी हुई मिट्टी को अंदर से खोदते हैं, फिर उस मिट्टी के ऊपर आने के बाद उसमें छिपी हुई अस्थियों और कोयले को छानते हैं. इसे छानने में काफी वक्त लगता है और इससे जो भी चीजें मिलती हैं, उसे हम सुरक्षित रखते जाते हैं.
मिथुन ने बताया कि परिवार का पेट पालने लायक चीजें रोज हर किसी को मिल जाती हैं. कभी हजार कभी 1500 तो कभी दो हजार से 3 हजार रुपये का सामान इन्हें मिलता है. राख में मिला सोना-चांदी सुनारों के पास ले जाते हैं और वहां बेचने के बाद जो पैसे मिलते हैं, यह अपना घर चलाते हैं. यह काम बहुत पुराने समय से कर रहे हैं और उन्हें कई बार तो लाखों रुपये का सामान मिला है. कभी सोने की चेन और अंगूठी के साथ चांदी की पायल, हीरे की लॉन्ग और कान के महंगे टॉप्स भी मिले हैं. कभी ऐसा वक्त भी जाता है कि हजार बारह सौ के सामान से ही गुजारा करना पड़ता है.
काशी में रहने वाले लोग चिता की राख से दौलत तलाशने के हुनर को बुरा नहीं मानते. यहां रहने वाले वाले रविकांत सिंह का कहना है कि हिंदुस्तान में पेट पालने के लिए इंसान क्या-क्या नहीं करता है. राख से उम्मीद की तलाश करने वाले लोग भी यह संदेश भी देते हैं कि जिंदगी बेहद कठिन है और इस कठिन जिंदगी को जीने का अंदाज भी अनूठा और निराला होना जरूरी है.
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