वाराणसीः धर्म नगरी काशी धर्म के साथ-साथ शिक्षा की राजधानी बनती जा रही है. यहां की चिकित्सा प्रणाली अपनी मुख्य भमिका निभा रही है. सरकारी से लेकर प्राइवेट संस्थानों तक इसकी डिमांड देखी जा रही है. ऐसे में सात समंदर पार से आने वाले विदेशी छात्र भी इसका लाभ ले रहे हैं. इसका एक उदाहरण जर्मनी की छात्रा सोफी हैं, जो इन दिनों वराणसी के एक निजी आई सर्जिकल इंस्टीयूट में भारत की इलाज पद्धति सीख रही हैं.
दरअसल, वाराणसी के एक अस्पताल में जर्मनी से आई एक डॉक्टर यहां की चिकित्सा पद्धति को सीख रही हैं. वह इसलिए क्योंकि जर्मनी भले ही हमसे डेवलप्ड देश है, लेकिन वहां पर मरीजों का तेजी से इलाज हमारे यहां जितना संभव नहीं है. जहां जर्मनी में इलाज में एक लंबा वक्त लग जाता है. वहीं, भारत में इलाज का तरीका सरल और कम समय का है.
भारत में मरीजों के लिए रिसोर्सेज जर्मनी से अलग हैं
इस बारे में आई इंस्टीट्यूट वाराणसी के फैलो डॉ. जय सिंह ने बताया कि 'हम एक-दूसरे से सीखते हैं. ये जर्मनी से आयी हैं और यहां के परिवेश में ट्रीटमेंट के तरीके हैं वो सीख रही हैं, क्योंकि हर जगह पर ये बीमारी कहीं पर कम होती है तो कहीं पर ज्यादा होती है'. उन्होंने कहा कि जर्मनी डेवलप्ड कंट्री है और भारत डेवलपिंग कंट्री है. यहां पर मरीजों की अपेक्षाएं और यहां की सहूलियत या कहें कि रिसोर्सेज अलग हैं.
सोफी हमारी चिकित्सा प्रणाली को सीख रही हैं
उन्होंने बताया कि 'हमारा देश विकासशील देश है. कम से कम खर्च में कितने बेहतर सुविधा हम मरीज को दे पाते हैं, ये हमारा फोकस रहता है. ये सब चीजें ये वहां से आने के बाद देख और सीख रही हैं. यह एक तरीके से जानकारियों और चिकित्सा प्रणाली का आदान-प्रदान हो रहा है. ये हमारी प्रणाली को सीख रहे हैं. हो सकता है भविष्य में हम भी जाएं और इनके जगह की शिक्षा प्रणाली हम कुछ सीखें'.
शॉर्ट इंटरनेशनल फेलोशिप के लिए आई हैं सोफी
जर्मनी से आईं डॉ. सोफी ने बताया कि वह डॉक्टर प्रत्युश रंजन और डॉ. कार्तिकेय के मेंटरशिप में शॉर्ट इंटरनेशनल फेलोशिप के लिए काशी आई हुई हैं. वह यहां पर जनवरी से आई हुई हैं. उन्होंने बताया कि म्युचुअल फ्रेंड से यहां के बारे में जानकारी मिली. उन्होंने मुझे यहां के बारे में और यहां डॉक्टरों की कार्यशैली के बारे में बताया.
यहां पर मरीजों के इलाज का तरीका अलग है
डॉ. सोफी ने बताया कि मैंने यहां आकर बहुत कुछ सीखा है. यहां पर बहुत ही पैशनेट टीचर हैं, जिन्होंने मुझे बहुत कुछ सिखाया है. यह मेरे लिए एक अलग माइंडसेट है, जिसे मैंने अपने यहां पर नहीं देखा. यहां पर मरीजों के इलाज का तरीका अलग है. साथ ही मरीजों की भी मानसिकता अलग है. इसलिए यह मेरे लिए अलग ही सोचने और सीखने का तरीका है. मैं बहुत कुछ समझ और सीख रही हूं.