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जर्मनी की कंपनी साफ कर रही वाराणसी की नदियों का कचरा

वाराणसी में गंगा, वरुणा और अस्सी नदी को साफ करने का बीड़ा जर्मनी की कंपनी ने उठाया. यह कंपनी अभी तक इन नदियों से 38 टन कचरा निकाल चुकी है.

वाराणसी में ऐसे साफ हो रहीं नदियां.
वाराणसी में ऐसे साफ हो रहीं नदियां.

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Published : Apr 10, 2022, 4:02 PM IST

वाराणसी : वाराणसी में गंगा, वरुणा और अस्सी नदी को साफ करने का बीड़ा जर्मनी की कंपनी प्लास्टिक फिशर ने उठाया. यह कंपनी अभी तक इन नदियों से 38 टन कचरा निकाल चुकी है. इस कचरे की रिसाइकिलिंग की जा रही है.


वाराणसी के वरुणा तट एवं संत रविदास घाट पर जर्मनी की कंपनी प्लास्टिक फिशर इन दिनों नदियों से कचरा निकालने का काम तेजी से कर रही है. बनारस के अलावा कंपनी बंगलूरू और तिरुवनंतपुरम में भी नदियों की सफाई की जिम्मेदारी निभा रही है.

वाराणसी में ऐसे साफ हो रहीं नदियां.
प्लास्टिक फिशर इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक ऋषभ सिन्हा ने बताया की हमने अस्सी नदी में चार और वरुणा नदी में तीन प्रणालियों से कचरा निकालने का काम शुरू किया है. इसके लिए 13 लोगों की टीम लगाई गई है. नदी से निकले कचरे को साफ करने के बाद अर्दली बाजार में रिसाइकिलिंग के लिए एमआरएफ भेजा जा रहा है. हर माह नदी से छह टन कचरा निकाला जा रहा है. आगे प्रति माह दस टन की क्षमता और बढ़ाने की तैयारी है.



उन्होंने कहा कि कंपनी का उद्देश्य है कि नदियों के सहारे समुद्र में प्लास्टिंक का कचरा न जाए. कंपनी भारत में तीन जगह काम कर रही है. इनमें वाराणसी, बंगलूरू और तिरुवनंतपुरम शामिल है. ऋषभ सिन्हा ने बताया की कंपनी ने अभी तक 38 टन कचरा निकाला है. इसका इस्तेमाल ऊर्जा और रिसाइकिलिंग में किया जा रहा है.




वह बोले कि वाराणसी में नदियों में कूड़ा-कचरा फेंकने से रोकने के लिए हमने जीआईसी संस्था से हाथ मिलाया है. इस संस्था के लोग घर-घर जाकर डस्टबिन उपलब्ध करा रहे हैं और लोगों को नदी में कचरा न फेकने के लिए जागरूक कर रहे हैं.

ऋषभ सिन्हा ने बताया की नदी में 30 एलिमेंट अलग - अलग लगाए गए हैं. इसमें स्टील वायर ऊपर नीचे लगे हैं. इसमें लगे पीवीसी की पाइप लोकल मेड है. कोई भी बाहर का सामान नहीं लगाया है.वह बोले इसमें फ्लोटर लगा हुआ है जो तैर रहा है. इससे नदी को हम लोग घेरे है. इसमें साइड से गैप किया गया है, जिससे कोई बोट जा सकें. जितने प्लास्टिक जमे है हर दो दिन में कचड़ा निकल कर आगे भेजा जाता है. प्रोजेक्ट को हर माह चलाने का खर्च करीब 1.50 लाख रुपए आता है.

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