वाराणसी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब 2014 में सत्ता में आए तब उन्होंने वाराणसी से मां गंगा के निर्मलीकरण को लेकर अभियान की शुरुआत की थी. मां गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने के लिए कई एसटीपी लगाए गए और करोड़ों रुपये खर्च किए गए. फिर भी वाराणसी में लगभग छह से ज्यादा नाले गंगा में गिर रहे हैं. इसको रोकने की कवायद अभी भी जारी है. इन सबको देखते हुए अब नगर निगम स्मार्ट सिटी प्लान के तहत जर्मन तकनीक का इस्तेमाल कर गंगा में सीधे गिर रहे नालों को रोकने की कवायद करने जा रहा है.
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तीन घाटों पर होगा ट्रायल
गंगा में प्लास्टिक जाने की वजह से प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ता जा रहा था. इसे देखते हुए नगर निगम ने जर्मनी की बबल बैरियर तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया है. पायलट प्रोजेक्ट के तहत इस प्रयास को 3 घाटों पर शुरू किया गया है. इसके तहत नाली के अंदर जगह-जगह पर ऐसे फिल्टर और जालियां लगाई जा रही हैं, जो बैरियर के जरिए नालों से आने वाले प्लास्टिक और अतिरिक्त सिल्ट को गंगा नदी में जाने से रोकेंगे. प्लास्टिक के कचरे की बढ़ रही क्षमता को देखते हुए नगर निगम ने जर्मनी की बबल बैरियर तकनीक का इस्तेमाल कर इसे रोकने का प्रयास शुरू किया है.
प्लास्टिक और सिल्ट से होता है ज्यादा नुकसान
गंगा में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण प्लास्टिक और सिल्ट को ही माना जाता है. इसको गंगा में जाने से रोककर निश्चित तौर पर गंगा की स्वच्छता को और बढ़ाने का काम हो सकेगा. इसका प्रयोग एक तरफ जहां नालों के मुहाने और अन्य जगहों पर लगाकर किया जाएगा. वहीं, औद्योगिक अपशिष्ट को रोकने के लिए औद्योगिक इकाइयों को भी अपने टेनरीज में जर्मन तकनीक का इस्तेमाल कर कचरे को गंगा में जाने से रोकने के लिए प्रयास करने के आदेश दिए गए हैं.
सफाई के लिए लगेगी अलग टीम
इस बारे में नगर निगम के अपर नगर आयुक्त देवी दयाल वर्मा का कहना है कि इस दिशा में प्रयास शुरू किया जा चुका है. 3 घाटों पर इसका प्रयोग किया जा रहा है. सफल प्रयोग होने के बाद जो भी नाले सीधे तौर में गंगा में जा रहे हैं. उसमें जर्मन तकनीक का प्रयोग करते हुए जालियां और फिल्टर लगाने का काम किया जाएगा. इसके लिए अलग से टीम को भी लगाया जा रहा है. जो समय-समय पर इन जालियों की सफाई भी करेगी. गंगा में जा रही गंदगी को रोका जा सके. इससे गंगा में प्रदूषण का स्तर और भी कम होगा. गंगा निर्मली करण का अभियान तेजी से आगे बढ़ेगा.