वाराणसी:गंगा जिसका कल कल बहता पानी कितनों के पापों को धोने के साथ ही लोगों को तारने का काम करता है. त्योहारों के मौसम के साथ ही पर्व पर स्नान का महीना भी अब शुरू हो चुकी है. कार्तिक के महीने में स्नान के साथ ही अभी देवोत्थान एकादशी और 27 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा का स्नान और उसके बाद एक के बाद एक कई अन्य स्नान भी होने वाले हैं.
मार्च के महीने तक लगातार स्नान का दौर जारी रहेगा. इन पर्वों पर विशेष तौर पर काशी में लोगों की जबरदस्त भीड़ भी देखने को मिलेगी. लेकिन, इन सब के बीच यह जानना बेहद जरूरी है कि क्या लंबे वक्त से चल रही गंगा निर्मलीकरण और स्वच्छता की कवायत काशी में अब पूरी हो चुकी है. इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने गंगा पर लंबे वक्त से काम कर रहे गंगा वैज्ञानिक और काशी हिंदू विश्वविद्यालय से रिटायर्ड वैज्ञानिक डॉ. बीडी त्रिपाठी से बातचीत की.
तीन बड़े नालों का पानी गंगा में: गंगा निर्मलीकरण अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले काशी हिंदू विश्वविद्यालय से रिटायर्ड गंगा वैज्ञानिक और गंगा बेसिन अथारिटी के सदस्य रह चुके प्रोफेसर बिजी त्रिपाठी ने खुलकर अपनी बातें रखीं. उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा की गंगा में पहले लगभग 35 नाले सीधे तौर पर गिरते थे. हालांकि अब इनमें से अधिकांश को बंद कर दिया गया है, फिर भी तीन ऐसे बड़े नाले हैं जो गंगा में सीधे तौर पर अभी भी गिराये जा रहे हैं. जिससे मल जल और गंदा पानी गंगा में जाता है. इसके अलावा अस्सी और वरुणा यह दो नदियां हैं जिनका पानी और इनमें मिलने वाले सीवर को फिल्टर ट्रीट करने के लिए अब तक कोई व्यवस्था हुई ही नहीं है. अगर अस्सी की बात की जाए तो लगभग 33 एमएलडी और यदि वरुणा की बात की जाए तो लगभग 37 एमएलडी बिना ट्रीटेड वॉटर सीधे गंगा में जा रहा है. यानी लगभग 70% प्रदूषण की वजह यह दो नदियां हैं. इसके अलावा शेष 30% में अस्सी और रविदास एरिया में सीधे गंगा में मिलने वाला बड़ा नाला, डाउनस्ट्रीम और सुजाबाद रामनगर के पास एक नाला और वरुण के जरिए आने वाला एक अन्य नाला यह तीन नल गंगा में लगभग 30% प्रदूषण के कारक बन रहे हैं.