वाराणसी: मां कूष्मांडा को प्रसन्न करने के उपाय, मिलेगी भय से मुक्ति
आज नवरात्र का चौथा दिन यानि कूष्मांडा देवी की आराधना का दिन है. मां दुर्गा अपने चौथे रुप में भक्तों को सुखमय जीवन व्यतीत करने का आशीर्वाद प्रदान करती हैं.
वाराणसी:शारदीय नवरात्र के 3 दिन बीत चुके हैं और आज नवरात्र का चौथा दिन यानि कूष्मांडा देवी के पूजन अर्चन करने का दिन है. आठ भुजाओं वाली माता कूष्मांडा का अद्भुत रूप देखते ही बनता है. लाल वस्त्रों में एक हाथ में कमंडल दूसरे में अमृत कलश के साथ धनुष बाण, रुद्राक्ष की माला, गदा और चक्र के साथ कमल का फूल लिए माता कूष्मांडा ब्रह्मांड को जन्म देने वाली देवी के रूप में पूजी जाती हैं. तो कैसे करें माता कूष्मांडा देवी की आराधना और क्या अर्पित करें माता के आगे जिससे मनचाहा फल मिले.
क्या है इस रूप और नाम का मतलब पंडित पवन त्रिपाठी बताते हैं कि देवी कूष्मांडा सुखमय जीवन व्यतीत करने का आशीर्वाद प्रदान करती हैं. माता के इस स्वरूप का मतलब है ब्रह्मांड को पैदा करने वाली. ब्रह्मांड निर्माता शास्त्रों में वर्णित है कि कूष्मांडा देवी ने अपने उदर से अंड अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न किया था. इसी वजह से देवी के इस रूप को कूष्मांडा के नाम से जाना जाता है. माता के इस स्वरूप को आदि शक्ति देवी के रूप में भी पूजा जाता है, क्योंकि माता ने ही सृष्टि की रचना की है. जब सारा ब्रह्मांड अंधेरे में डूबा हुआ था तब माता ने ब्रह्मांड की रचना कर चारों तरफ उजाला फैलाया था. माता का यह स्वरूप सूर्य लोक में निवास करता है.देवी के आगे दी जाती है इस चीज की बलिदेवी कूष्मांडा के पूजन अर्चन का विधान कुछ अलग है. वैसे देवियों के सामने बलि देने की पुरानी परंपरा है. माना जाता है देवी बलि से खुश होती हैं. यह बलि नरियल या किसी अन्य रूप में भी हो सकती है, लेकिन कूष्मांडा देवी के आगे उन्हें प्रसन्न करने के लिए कोहड़े की बलि दी जाती है. कोहड़ा माता रानी को पसंद है. इसकी बलि देने से उनकी विशेष कृपा भक्तों पर बरसती है. इसके साथ ही माता को लाल गुड़हल के फूल की माला चढ़ाई जाती है. नारियल भी माता को अति प्रिय है. इसके अलावा माता रानी को मालपुआ चढ़ाकर उसे दान देना चाहिए. माता को लाल चुनरी के साथ लाल चूड़ियां भी अर्पित होती है.ये है आराधना मंत्रसुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेवच।दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्मांडा शुभदास्तु मे।ये भी है मंत्रया देवी सर्वभूतेषु सृष्टि रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।