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पंच दिवसीय दीप पर्व शुरू, जानें शुभ मुहूर्त और विधि विधान

अंधेरे को मिटाकर उजाले की तरफ ले जाने वाले पंच दिवसीय ज्योति पर्व की शृंखला की धनतेरस से शुरुआत हो गई है. इस बार दिवाली का पर्व 14 नवंबर को मनाया जाना है . काशी हिंदू विश्वविद्यालय ज्योतिष विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. विनय कुमार पांडेय से जानें, दीपोत्सव के 5 दिनों तक चलने वाले पर्वों का महत्व और शुभ मुहूर्त.

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Published : Nov 12, 2020, 10:15 AM IST

Updated : Nov 12, 2020, 11:48 AM IST

धनतेरस.
धनतेरस.

वाराणसी: अंधेरे को मिटाकर उजाले की तरफ ले जाने वाले पंच दिवसीय ज्योति पर्व की शृंखला की शुरुआत धनतेरस से हो गई है. इस बार दिवाली का पर्व 14 नवंबर को मनाया जाना है, इसके पहले पंच दिवसीय ज्योति पर्व की शुरुआत गुरुवार से हो गई है. इन 5 दिनों तक अलग-अलग पर्वों का स्वरूप और महत्व जानिए काशी हिंदू विश्वविद्यालय ज्योतिष विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. विनय कुमार पांडेय की जुबानी. डॉ. पांडेय के अनुसार ज्योति प्रकाश पर्व दिवाली की शृंखला धनत्रयोदशी से ही शुरू हो जाती है. दीपों के पर्व में धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दिवाली, अन्नकूट और भैया दूज पर्व का विशेष महत्व और विधान है.

डॉ. विनय कुमार पांडेय, विभागाध्यक्ष-बीएचयू.

12 नवंबर, धनत्रयोदशी
डॉ. विनय कुमार पांडे का कहना है कि धनवंतरि जयंती या धनत्रयोदशी या धनतेरस इसे आप किसी भी नाम से पुकार सकते हैं. धनत्रयोदशी को आज के बदलते परिवेश में धन और संपदा से जोड़कर देखा जाता है. जबकि यह दिन भगवान धनवंतरि जो आरोग्य के देवता कहे जाते हैं उन्हें समर्पित होता है. इस दिन लक्ष्मी पूजन तो करिए लेकिन धनवंतरि भगवान का पूजन और दर्शन जरूर करना चाहिए. क्योंकि दिवाली के पहले धनत्रयोदशी या धनवंतरि जयंती की शुरुआत आरोग्य से होती है. शास्त्रों में वर्णित है जब आप आरोग्य रहेंगे, यानी स्वस्थ रहेंगे साफ-सुथरे रहेंगे तभी लक्ष्मी का आगमन होगा. इसलिए धनत्रयोदशी या धनवंतरि जयंती पर लक्ष्मी पूजन के साथ भगवान धनवंतरि का पूजन और दर्शन का विधान कहा गया है. 12 नवंबर को त्रयोदशी तिथि शाम को 6:31 पर लग रही है, जो 13 नवंबर की शाम 4:11 तक रहेगी.

धनतेरस पर शास्त्र में नहीं लिखा है खरीदारी करना
डॉक्टर विनय पांडेय का कहना है कि धनतेरस के दिन नए वस्त्र, बर्तन, चांदी-सोने के सामान या फिर नए किसी भी सामान को खरीदने का विधान शास्त्र सम्मत नहीं है. यह बातें शास्त्र में नहीं लिखी गई हैं कि आपको इस दिन कुछ खरीद के लाना चाहिए. हां यह जरूर है कि लक्ष्मी पूजन से पहले भगवान गणेश और माता लक्ष्मी का आगमन घर में हो. इसके लिए लोग लक्ष्मी स्वरूप बर्तन या सोने चांदी के आभूषण खरीदते हैं. लेकिन यह जरूरी नहीं है कि लक्ष्मी आगमन या लक्ष्मी को घर लाने की चाहत में अपनी आर्थिक स्थिति को खराब कर लें.

13 नवंबर, नरक चतुर्दशी
पंडित विनय पांडेय का कहना है कि आरोग्य के बाद सबसे जरूरी होता है खुद को और अपने घर और प्रतिष्ठान को साफ सुथरा रखना. इसलिए पंच दीपोत्सव पर्व के दूसरे दिन नरक चतुर्दशी का त्यौहार मनाया जाता है. इस दिन चौदस में चंद्रोदय व्यापिनी तिथि मानी जाती है. इस दौरान पूजन पाठ के अलावा शाम के वक्त यमराज के निमित्त दीपदान करना विशेष फलदाई माना जाता है और अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है. इसलिए अपने घर के द्वार पर चौमुखी यमराज का दीपक जरूर जलाएं. उत्तर भारत में इस दिन ही हनुमान जी की जयंती भी मनाई जाती है. कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी पर मंगलवार को मेष लग्न में शाम को हनुमान जी का जन्म माना जाता है.

14 नवंबर, दिवाली पर ये हैं शुभ मुहूर्त
पंडित विनय पांडेय के मुताबिक 14 नवंबर को प्रकाश पर्व दिवाली का त्यौहार मनाया जाएगा. कार्तिक अमावस्या 14 नवंबर को दिन में 1:49 पर लग रही है, जो 15 नवंबर को दिन में 11:27 तक रहेगी. पहले दिन प्रदोष व रात्रि कालीन अमावस्या में दिपावली दूसरे दिन उदया तिथि में स्नान दान की अमावस्या होगी. दिवाली पर लक्ष्मी पूजन के लिए प्रथम स्थिर लग्न कुंभ दिन में 12:57 से 2:28 तक है. जबकि दूसरा व प्रमुख स्थिर लग्न जिसे वृषभ लग्न में कहा जाता है और जो गोधूलि बेला में सर्वमान्य है, वह शाम 5:30 से लेकर शाम 7:30 बजे तक है. इस शुभ मुहूर्त में ही लक्ष्मी पूजन करना विशेष फलदाई भी है.

ईश्वर को धन्यवाद कहने का दिन, अन्नकूट व गोवर्धन पूजा
पंडित विनय पांडे के अनुसार पंच दिवसीय दीपोत्सव पर्व के चौथे दिन अन्नकूट और गोवर्धन पूजा का विधान है. पहले दिन आरोग्य, दूसरे दिन साफ-सफाई और तीसरे दिन दिवाली पर माता लक्ष्मी का आवाहन और सुख समृद्धि की कामना करने के बाद भगवान को धन्यवाद देने के लिए अन्नकूट का पर्व मनाया जाता है. माता लक्ष्मी के आशीर्वाद से जो भी संपन्नता और सुख मिलता है उसे भगवान को समर्पित करने के लिए अन्नकूट पर्व मनाया जाता है. इस दिन तरह-तरह के पकवान भगवान को समर्पित किए जाते हैं. देवालयों में भी 56 प्रकार के पकवानों का भोग लगता है. कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा यानी 15 नवंबर को ही गोवर्धन पूजा भी की जाती है, जिसमें गाय के पूजन का विधान है.


16 नवंबर भैया दूज व चित्रगुप्त जयंती
डॉक्टर विनय पांडे का कहना है कि पंच दिवसीय दीपोत्सव के अंतिम दिन यानी कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यम द्वितीय के नाम से जाना जाता है. इस दिन बहनें अपने भाई को टीका लगाती हैं. जिसके लिए भाई स्वयं बहनों के घर जाते हैं. बहनें भाइयों को टीका लगाकर मिठाइयां खिलाकर उनके आरोग्य और ऐश्वर्या की कामना करती हैं. इसके पीछे यम और उनकी बहन यमुना को लेकर भी कहानी जुड़ी है. इस दिन कलम-दवात के देवता चित्रगुप्त की भी पूजा होती है.

Last Updated : Nov 12, 2020, 11:48 AM IST

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