वाराणसी: हिन्दुस्तान में कुछ लोगों ने अपनी सुविधा के मुताबिक कहावतें भी गढ़ ली हैं. मसलन 'नियम तो होते ही हैं तोड़ने के लिए' लेकिन जब इन बेतुका कहावतों पर सरकारी सिस्टम ही अमल कर नियमों से खेलने लग जाए, तो फिर बात गंभीर हो जाती है. ऐसे ही नियमों की धज्जियां उड़ाने में इन दिनों उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (U.P.S.R.T.C) पीछे नहीं है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा क्योंकि, केंद्रीय मोटर वाहन अधिनियम की बात करें, तो सरकारी और गैर सरकारी अनुबंधित बसों में प्राथमिक चिकित्सा किट यानी फर्स्ट एड किट होना बेहद जरूरी है. जब बसें खरीदी जाती हैं, तो हर बस में एक छोटा सा मेडिकल बॉक्स बस के भीतर घुसते ही लगा होता है. लेकिन ईटीवी भारत ने जब इस प्राथमिक चिकित्सा किट की हकीकत जानी, तो विश्वास मानिए पैरों तले जमीन खिसक गई. बसों में प्राथमिक चिकित्सा मजाक बनकर रह गई है. देखिए ये रिपोर्ट
रियलिटी चेक कर जाना हाल
दरअसल, एमवी एक्ट के मुताबिक प्राथमिक चिकित्सा किट उपलब्ध कराना हर गाड़ी स्वामी की जिम्मेदारी होती है. यही वजह है कि जब हम नई कार या बाइक भी खरीदते हैं, तो उनमें एक छोटी सी फर्स्ट एड किट जरूर मिलती है. जब कोई गाड़ी पब्लिक ट्रांसपोर्ट के रूप में यूज होता है, तो उसमें फर्स्ट एड किट का होना एमवी एक्ट के मुताबिक बेहद जरूरी है. लेकिन जब हम इस किट की हकीकत जानने के लिए वाराणसी के रोडवेज पहुंचे, तो शॉक्ड हो गये. दरअसल बनारस में करीब 10 से ज्यादा बसों का रियलिटी चेक किया गया. जिनमें हाई-फाई पिंक बस, एसी बसों के नाम पर संचालित होने वाली जनरथ बसें, सिटी बस और जनरल बसें शामिल थीं. सभी बसों के भीतर जब हमने प्राथमिक चिकित्सा किट की हकीकत देखी, तो हमें कुछ और ही मिला. ज्यादातर बसों के भीतर किट तो थी. लेकिन सामान नदारद थे. लाल प्लस के निशान के बने डिब्बे अंदर से खोखले थे. उसमें किसी भी तरह का कोई सामान नहीं मौजूद था.