वाराणसी: नवरात्रि में महाअष्टमी और नवमी का खास महत्व होता है. इस बार एक तिथि की हानि की वजह से शारदीय नवरात्रि 8 दिनों की है. महाअष्टमी और महानवमी पर कन्या पूजन के बिना नवरात्रि अधूरी मानी जाती है. बहुत से लोग अष्टमी को तो वहीं कई लोग नवमी के दिन भी कन्या पूजन करते हैं. आइये जानते हैं इस बार महाअष्टमी और नवमी तिथि कब है और हवन व कन्या पूजन का शुभ मुहुर्त क्या है.
अष्टमी और नवमी पर माता की आराधना विशेष फलदाई होगी
अष्टमी के दिन मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी और नवमी पर मां के नवें स्वरूप सिद्धिदात्री की पूजा होती है. इस बार महाष्टमी का पर्व 13 अक्टूबर को जबकि महानवमी का पर्व 14 अक्टूबर को मनाया जाएगा. दशहरा 15 अक्टूबर को होगा, इसलिए महाअष्टमी और महानवमी पर माता की आराधना विशेष फलदाई होगी. इस बारे में काशी विद्वत परिषद के महामंत्री और ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि धर्म शास्त्रों में महाअष्टमी और महानवमी का विशेष महत्व बताया गया है. इन दोनों दिनों में कुमारी कन्याओं का पूजन करना विशेष फलदाई होता है. माता की ज्योति जगाना, हवन संपन्न करना 9 दिनों के अनुष्ठान को पूर्णं करता है. सबसे बड़ी बात यह है कि कन्या पूजन माता की त्रिशक्ति का आशीर्वाद देता है, जिसमें महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती शामिल हैं. नवरात्रि में 9 दिनों तक व्रत रहने वाले लोगों को कन्या पूजन और नवमी तिथि पर हवन जरूर करना चाहिए.
जानकारी देते ज्योतिषाचार्य. यह है मध्यरात्रि महानिशा पूजन का सही समय
कन्या पूजन करने से माता की विशेष अनुकंपा मिलती है और कन्याओं का आशीर्वाद मिलने से घर में सभी तरह के कष्ट और तकलीफों का निवारण होता है. पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि इस बार महानिशा पूजन 13 और 14 अक्टूबर की मध्य रात्रि में संपन्न होगा. अश्विन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 12 अक्टूबर मंगलवार को रात्रि लगभग 9:48 पर लग जाएगी, जो 13 अक्टूबर बुधवार की रात्रि 8:08 तक रहेगी. इसके बाद नवमी तिथि लग जाएगी, जो 14 अक्टूबर गुरुवार को शाम 6:53 तक रहेगी. इसके बाद दशमी तिथि शुरू हो जाएगी. 15 अक्टूबर शुक्रवार को सुबह 6:03 तक दशमी तिथि का मान होगा और इस दौरान ही 9 दिनों तक व्रत रहने वाले लोगों को 15 अक्टूबर की सुबह अपने व्रत का पारायण करना होगा.
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कन्या पूजन का अलग है महत्व
इस बारे में ज्योतिषाचार्य का कहना है कि अष्टमी और महानवमी के दिन कन्या पूजन करने का भी एक विधान होता है. इसमें कन्याओं की उम्र से लेकर अन्य बहुत सी चीजों का ध्यान देना चाहिए. धर्म शास्त्र के अनुसार ब्राह्मण वर्ण की कन्या और क्षत्रिय वर्ण की कन्याओं का पूजन करने से शिक्षा, ज्ञान और शत्रु पर विजय मिलती है. जबकि वैश्य वर्ण की कन्या का पूजन करने से आर्थिक समृद्धि व धन की प्राप्ति होती है. शूद्र वर्ण की कन्या का पूजन करने से हर कार्य में विजय मिलती है और कार्य सिद्धि होती है. याद रहे कि धर्म शास्त्रों में 2 वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक की कन्याओं का पूजन करने के लिए बताया गया है. धर्म शास्त्र के मुताबिक 2 वर्ष की कन्या को कुमारी, 3 वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति, 4 वर्ष की कन्या को कल्याणी, 5 वर्ष की कन्या को रोहिणी, 6 वर्ष की कन्या को काली, 7 वर्ष की कन्या को चंडिका, 8 वर्ष की कन्या को शांभवी, 9 वर्ष की कन्या को दुर्गा और 10 वर्ष की कन्या को सुभद्रा के नाम से उल्लेखित किया जाता है. इनका पूजन अर्चन करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति तो होती ही है साथ ही जीवन में आने वाले सभी तरह के कष्ट और तकलीफों का नाश भी होता है.
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इस प्रकार करें हवन
हवन हमेशा शुभ मुहूर्त में ही करना चहिए. इसके लिए पहले हवन कुंड की वेदी को साफ कर इस पर लेपन कर लें. वेदी में शुद्ध जल छिड़कें इसके बाद कुंड में आम की लकड़ी या फिर गाय के गोबर बने उपलों की अग्नि प्रज्वलित करके अग्निदेव का पूजन करें. इसके बाद नवग्रह के नाम या मंत्र से आहुति दें. गणेशजी की आहुति के बाद सप्तशती या नर्वाण मंत्र से जप करें. सप्तशती में प्रत्येक मंत्र के पश्चात स्वाहा का उच्चारण करके आहुति दें. हवन में पुष्प, सुपारी, पान, कमल गट्टा, लौंग, छोटी इलायची, शहद और अंत में नारियल की आहुति दें. इसके बाद पांच बार घी की आहुति दें.
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ये है कन्या पूजन की विधि
अष्टमी या नवमी तिथि को कन्या पूजन किया जाता है. इसके लिए कन्याओं को एक दिन पहले आमंत्रित कर देना चाहिए. अगले दिन जब माता स्वरुपी कन्याओं का गृह प्रवेश हो उस दौरान परिवार समेत उनका स्वागत पुष्प वर्षा से करें. इसके बाद इन कन्याओं के चरणों को दूध भरे थाल या फिर पानी से धोएं और आरामदायक व स्वच्छ जगह बैठाएं. फिर इनके माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम लगाएं. मां भगवती का ध्यान करके इन कन्याओं को शुद्ध शाकाहारी भोजन कराएं. भोजन के बाद कन्याओं को सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा व कुछ उपहार दें और उनके पैर छूकर आशीर्वाद लें. नौ कन्याओं के बीच में किसी बालक को भी कालभैरव के रूप में बैठाया जाता है.