वाराणसी:काशी धर्म और अध्यात्म की नगरी है. उसकी पहचान यहां की सभ्यता संस्कृति और पौराणिक नदियों से है. लेकिन समय के साथ कुछ पौराणिक नदियां अपने अस्तित्व के संकट से जूझने लगीं. हालांकि विलुप्त हो रही नदियों को संरक्षित रखने के लिए सरकार की ओर से कदम उठाए जा रहे हैं. इसके तहत सरकार ने विलुप्त हो रही वरुणा नदी के संरक्षण के लिए तमाम कवायद करनी शुरू की है, जिसके तहत इन दिनों जहां एक ओर वरुणा कॉरिडोर बना के नदी को एक खूबसूरत आकार दिया जा रहा हैं, वहीं दूसरी ओर एनजीटी की सख्ती के बाद वरुणा नदी के पानी की गुणवत्ता में सुधार हो रहा है. विभाग के अधिकारियों का मानना है कि आने वाले कुछ महीनों में वरुणा का पानी काशी वासियों के लिए नहाने व आचमन के लायक हो जाएगा.
वाराणसी में वरूणा नदी के संरक्षण काम किया जा रहा है. देखिए खास रिपोर्ट... गिरते थे शहर के अपशिष्ट शहर के बीचों बीच बहने वाली वरुणा नदी समय के साथ बढ़ते प्रदूषण व गंदगी की मार झेल रही है. वरुणा नदी में लगभग 14 नाले गिरते थे, जिनमें शहर के होटलों और रेस्टोरेंटों के अपशिष्ट होते थे, जिनके कारण पानी की गुणवत्ता एकदम नील हो गई है और ऑक्सीजन भी ना के बराबर था. हालांकि इन दिनों काफी प्रयास के बाद वरुणा नदी में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ रही है, जिसकी वजह से पानी की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है.इसके साथ ही पानी के बहाव को निरन्तर बनाये रखने के लिए सरकार द्वारा ड्रैनेज सिस्टम की व्यवस्था की जा रही है.
बदल रही है स्थिति
इस बाबत स्थानीय नागरिक ने बताया कि पहले से नदी की स्थिति में काफ़ी सुधार हुआ है. पहले यहां खड़ा होने लायक भी नहीं था. लेकिन अब साफ सफाई के कारण यहां बैठने लायक हो गया है. लोग सुबह यहां टहलने भी आते हैं काफी अच्छा हो गया है. उम्मीद है कि आने वाले दिनों में वरुणा और भी साफ हो जाएगी.
11 नालों की किया गया है बंद
क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी कालिका सिंह ने बताया कि वरुणा नदी को स्वच्छ करने के लिए तमाम कवायदें की जा रही हैं. इसी क्रम में नदी में गिरने वाले 11 नालों को बंद कर दिया गया है और बाकी के बचे नाले भी जल्द ही बंद हो जाएंगे. उन्होंने बताया कि वरुणा नदी में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ी है जो हमारे लिए एक सकारात्मक चिन्ह है. यदि ऐसे ही ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती रही तो आने वाले दिनों में वरुणा का पानी आचमन और नहाने के लायक हो जाएगा.
तीन जिलों की सरहद से हुआ है उद्गम
वाराणसी को उसका नाम प्रदान करने वाली वरुणा नदी का उद्भव तीन जनपदों की सरहद से हुआ है. जौनपुर,इलाहाबाद, प्रतापगढ़ की सीमा पर स्थित इनउछ के मैलहन झील से निकलकर वरुणा नदी 202 किलोमीटर का सफर तय करके वाराणसी के आदिकेशव घाट पहुंचकर गंगा नदी से मिलती हैं.
ये हैं पौराणिक मान्यताएं
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वरुणा नदी गंगा से भी प्राचीन है. मैलहन झील के दक्षिण पूर्व में भगवान इंद्र, वरुण यम त्रिदेवों ने त्रिदेश्वर शिवलिंग स्थापित करके यज्ञ किया था. इस दौरान देवता और ऋषियों के प्रसाद ग्रहण के उपरांत हस्त प्रक्षालन से मैलहन झील भर गई, जिसके बाद त्रिदेव ने भर चुकी झील में नदी खुदवा कर गंगा नदी में मिलवा दिया. इसका वर्णन पुराणों में भी मिलता है और यही वजह है कि वरूणा पाप हरना, काशी पाप नाशी के नाम से जानी जाती है. फिलहाल सरकार की ओर से उसके अस्तित्व को बचाने के लिए प्रयास किया जा रहा है. उम्मीद है कि उनका यह प्रयास जल्द ही रंग लेकर के आएगा.