वाराणसी:धर्म अध्यात्म की नगरी वाराणसी जहां पर खाने-खिलाने का भी बेहद मजा है. यहां की चाट हो या बनारसी पान दुनिया में इसका कोई जोड़ नहीं है. वहीं अब बनारसी लंगडा आम भी किसी से पीछे नहीं है. कोरोना के इस दौर में बनारस का लंगड़ा आम अमेरिका और लंदन भेजा जा रहा है. गर्मियों के सीजन में अगर किसी ने बनारसी आम नहीं खाया तो शायद उसे आम का मजा ही न मिले. बनारस में मिलने वाला बनारसी लंगड़ा आम अब विदेशों तक पहुंच चुका है और अब इसको जीआई टैग दिलवाने की कवायद भी शुरू हो गई है. जीआई टैग मिलने के बाद यह कृषि क्षेत्र में बड़ा कदम तो होगा ही साथ में प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत को और भी बल मिलेगा.
क्या है जीआई टैग?
दरअसल जीआई टैग देश के उस भौगोलिक संकेतक के रूप में जाना जाता है जो किसी विशेष क्षेत्र राज्य या देश के उत्पाद निर्माता या व्यवसायियों के समूह के द्वारा तैयार किया जाता है. इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषताएं एवं प्रतिष्ठा की वजह से भौगोलिक स्थिति के आधार पर इन्हें विशेष राज्य, जिले या देश में उत्पादन के आधार पर दिए जाने वाले टैग को ही जीआई टैग कहते हैं. इस टैग के मिलने के बाद जीआई टैग वाले उत्पादन का निर्माण का उत्पादन अन्य कोई राज्य, देश या जिला नहीं कर सकते. इसके बाद उक्त प्रोडक्ट भौगोलिक स्थिति के आधार पर सिर्फ उसी स्थान के लिए विशेष रूप से सुरक्षित हो जाता है और उसके कॉपी करने का अधिकार भी किसी को नहीं होता.
पूर्वांचल के 13 प्रोडक्ट्स को पहले ही मिल चुका है जीआई टैग
दरअसल पहले से ही वाराणसी समेत आसपास के जिलों की विशिष्ट चीजों को जीआई टैग मिलने का सिलसिला बीते कुछ सालों से लगातार जारी है. अब बनारस के पान समेत 10 उत्पादों के जीआई पंजीकरण की प्रक्रिया वर्तमान में शुरू की गई है. इसमें बनारसी लंगड़ा आम, मिर्जापुर का आदम चीनी चावल, रामनगर का मशहूर बैंगन और बनारसी पान शामिल है.
नाबार्ड और उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग से शुरु हो चुका है पंजीकरण
इन 10 चीजों के जीआई पंजीकरण के लिए वहां की स्थानीय उत्पादक संस्थाओं द्वारा नाबार्ड और उत्तर प्रदेश सरकार (ओपीडी सेल-एमयसएमई विभाग) के सहयोग से ह्यूमन वेलफेयर एशोसिएशन संस्था द्वारा शुरू किया जा चुका है. जल्दी ही इसे जीआई रजिस्ट्रेशन के लिए चेन्नई भेज दिया जाएगा.