वाराणसीः काशी में शनिवार को 3 दिवसीय शिक्षा समागम का समापन हो गया. इस मौके पर केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बताया कि इस समागम में नई शिक्षा नीति पर आगे का रोडमैप क्या होगा इस पर देशभर के कुलपति व विद्वानों ने चर्चा की. उन्होंने बताया कि समागम में 350 से ज्यादा विश्वविद्यालय व 600 से ज्यादा विद्वानों ने प्रतिनिधित्व किया. इसमें 9 विषयों पर चर्चा के साथ दो अलग सत्र में शिक्षाविदों ने अपने अनुभवों को साझा किया. कार्यक्रम के हर सत्र में पांच पैनलिस्ट थे.
समागम के बाद चर्चा को लेकर एक डिजिटल फॉर्मेट बनाकर सबको भेज दिया गया है. सभी लोगो से फीडबैक लिया जाएगा. उन्होंने कहा कि देश में सन् 1835 के बाद मैकाले शिक्षा पद्धति लागू की गई इसमें जो बिंदु थे, आजादी के बाद में संशोधन की जरूरत थी लेकिन ऐसा किसी सरकार ने नहीं किया.
यदि परिवर्तन हुए भी तो बहुत मामूली. 2020 की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में एक बड़ा बदलाव लाया गया है क्योंकि जब हम 21वीं सदी में नई शिक्षा नीति की बात करते हैं तो यह विद्यार्थियों और देश के हित से जुड़ा होता है.वर्तमान में हम दार्शनिक तत्व की बात करते हैं. दुनिया मे सबसे बड़ी दार्शनिक स्थली काशी है, जहां सीखने-सिखाने की परंपरा बेहद पुरानी है. यहां गुरुकुल शिक्षा पद्धति से विद्वानों ने शिक्षा ग्रहण की और देश को एक नया आयाम दिया.इन्ही बिंदुओं को ध्यान में रखकर काशी में शिक्षा का समागम आयोजित किया गया है.
उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में काशी की गुरु शिष्य परंपरा को लागू किया जाएगा क्योंकि नौकरी पेशा के लिए मैकाले की शिक्षा पद्धति बनी थी, लेकिन जब हम भारत को विश्वगुरु बनाना चाहते हैं, बौद्धिकता के स्तर को बढ़ाना चाहते हैं तो हमें शोध पर जोर देना चाहिए. युवा नौकरी लेने वाले नहीं बल्कि देने वाले बने. उन्होंने कहा कि ये देश का पहला समागम था, लेकिन अब समय-समय पर ऐसे समागम का आयोजन किया जाएगा.
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